नीतीश कुमार का सत्ता प्रेम-गज़ब लीला राजनीति की
नीतीश कुमार का सत्ता प्रेम-गज़ब लीला राजनीति की
नीतीश कुमार का सत्ता प्रेम- सामाजिक न्याय (?) के ध्वजवाहक नीतीश कुमार जी का सत्ता प्रेम
सामाजिक न्याय (?) के ध्वजवाहक नीतीश कुमार का सत्ता प्रेम - मुख्यमंत्री पद पर दुबारा काबिज होने की अकुलाहट, तड़प और बौखलाहट इन दिनों प्रति दिन प्रदर्शित हो ही रही है। शरद यादव जी और लालू यादव जी दोनों लोग अपनी अपनी राजनीति में सफल हो ह्रदय में आनंदित हो रहे होंगे। यही नीतीश कुमार जी हैं न जिन्होंने राजद यानि लालू राज के कार्यकाल को गुंडाराज करार करके भाजपा से गठबंधन करके सत्ता हासिल की थी और सुशासन बाबू बन गए थे। शरद यादव जी थे तो जनता दल यू अध्यक्ष लेकिन पहले बिहार फिर हर राज्य के संगठन - चुनाव में नीतीश कुमार मनमानी करने लगे थे यहाँ तक कि अभी जीतन राम मांझी को अपनी जगह बिहार का मुख्यमंत्री भी नीतीश कुमार ने ही बनाया था जबकि भीतर खाने चर्चा - सोच थी कि शरद यादव जी को मुख्यमंत्री बना दिया जाये लेकिन तब शरद यादव जी की जगह अपनी कठपुतली समझ जीतन राम मांझी को महादलित कार्ड खेलकर आगे किया।
और आज ?? नीतीश कुमार जी कितने बेबस राजनेता हो गए कि शरद यादव जी और लालू यादव जी के सहारे उस महादलित जीतन राम मांझी से मुकाबिल हो चुके हैं जो खुद नीतीश कुमार जी को अपना नेता - गरीब गुरबों वंचितों दलितों का हमदर्द मानता था, उनके प्रति समर्पित था। सामाजिक न्याय के स्थान पर नीतीश कुमार जी सामंतवादी आचरण का प्रदर्शन करते हुए यह आरोप भी लगा रहे हैं कि जीतन राम मांझी के मुख्यमंत्री पद न छोड़ने के पीछे भाजपा का हाथ है और बिहार की वर्तमान राजनैतिक स्थिति के लिए भाजपा जिम्मेदार है। सर्वथा असत्य बोल रहे हैं नीतीश कुमार जी — यह स्थिति सिर्फ इसलिए बनी कि बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन एक महादलित जीतन राम मांझी ने नव सामंत - तानाशाह नीतीश कुमार की कठपुतली बनने के स्थान पर बिहार के ग्रामीणों - वंचितों और शोषकों की आवाज बुलंद की और उनको अधिकार सम्मान देना शुरू किया। एक नए नेता का उभरना वो भी दलित, कैसे पचा पाते सामंती प्रवृत्ति के लोग? इसीलिए उसको अपमानित करने और मुख्यमंत्री पद से हटाने की कोशिश - षडयंत्र शुरू हुए जिसकी परिणिति ताजा घटनाक्रम में हुई।
मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी सदन में बहुमत सिद्ध करने को तैयार है। अभी आज कुछ देर पूर्व महामहिम राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी से मिलकर बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने स्पष्ट कर दिया कि जब राज्यपाल कहें वो सदन में विश्वास मत हासिल करने को तैयार हैं फिर अब बैचैनी क्यूँ नीतीश कुमार जी ?????
बिहार विधानसभा में विश्वास मत पर चर्चा हो,मतदान हो, विधायकों के विचार और सदन के नेता के प्रति उनका क्या विश्वास है इसका निर्णय सदन में ही होना चाहिए न कि सड़क पर। यही संवैधानिक परिदृश्य है।
डटे रहिये, जमे रहिये जीतन राम मांझी जी — सामाजिक न्याय? के तमाम नाम वाले राजनेताओं का वर्तमान असल चेहरा सामने आ रहा है। शत्रु का शत्रु मित्र होता है याद रखियेगा।
अरविन्द विद्रोही


