लोकसभा के प्रथम चरण के चुनाव के लिए आज शाम देश भर में प्रचार समाप्त हो गया। कल बिहार में दो लोकसभा क्षेत्रों गया और पूर्णिया में प्रधानमंत्री मोदी की सभाएं हुईं और वहां मंच पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नदारद रहे। उनके बारे में सूचना है कि वो पटना में मुख्यमंत्री आवास में विश्राम कर रहे थे, हालांकि एनडीए की तरफ़ से कहा जा रहा है कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत नीतीश कुमार व्यस्त थे। लेकिन कल प्रधानमंत्री की सभा से नीतीश कुमार के अनुपस्थित रहने की पटकथा विगत सात अप्रैल को नवादा में हुई प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी रैली के बाद ही लिख दी गई थी और इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है।

नवादा में प्रधानमंत्री के मंच पर उस दिन जो कुछ हुआ जिस तरह से नीतीश कुमार को जनता के सामने मोदी से बहुत छोटा और कमतर दिखाने का प्रयास किया गया उसके बाद ही इस बात की कयास आराइयां तेज़ हो गई थीं कि अब नीतीश कुमार शायद ही प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा करते दिखाई देंगे।

उस दिन नवादा में मंच पर प्रधानमंत्री को माला पहनाते वक्त नीतीश कुमार कहीं किनारे खड़े दिखाई दिए और उसके बाद महिला कार्यकर्ताओं के साथ प्रधानमंत्री के फोटो सेशन के समय भी नीतीश कुमार को पीछे कर दिया गया। नवादा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2005 के बाद से अपने किए गए कामों का बखान करते हुए जनता को संबोधित कर रहे थे जहां उन्होंने बिहार में साइकिल योजना, पोशाक योजना, सड़क बिजली, नल जल योजना, सात निश्चय, शराब बंदी की चर्चा करते हुए कब्रिस्तानों की घेराबंदी और अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं की भी चर्चा की जिससे प्रधानमंत्री काफ़ी असहज होते हुए दिखाई दिए।

स्वाभाविक है प्रधान मंत्री के पास चुनावी सभाओं में मुस्लिम लीग, मटन, मछली, नवरात्रि, रामनवमी, पाकिस्तान एयर स्ट्राइक के अलावा बोलने और कुछ होता नहीं है वहां एक व्यक्ति जनकल्याण की योजनाओं के नाम पर वोट मांगे और कब्रिस्तानों की घेराबंदी एवम अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं की भी चर्चा हो जाए जब कि प्रधानमंत्री तो कब्रिस्तान और शमशान के बीच लकीर खींच कर हिंदुओं को ये संदेश देते हैं कि आप के साथ अन्याय हो रहा है और अल्पसंख्यक कल्याण की योजनाओं को प्रधानमंत्री विपक्ष के तुष्टिकरण का नाम देते हैं वहां कोई इस तरह की बात करे तो स्वाभाविक है कि मोदी के पूरे चुनावी कैंपेन को एक बड़ा Dent लग सकता है।

मोदी के भाषण में अपनी उपलब्धि के नाम पर अयोध्या में राम लला का मंदिर, विपक्ष दलों को सनातन विरोधी बता कर खुद को सनातन संस्कृति के रक्षक और गोदी मीडिया प्रायोजित अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश की बढ़ती कथित प्रतिष्ठा के जुमले के सिवा और है नहीं वहां कोई मुख्यमंत्री, हर घर बिजली, सरकारी आवास, स्वरोजगार, नौकरी, स्वास्थ्य सुविधाएं, बेहतर कानून व्यवस्था की अपनी उपलब्धि गिनाने लगे तो मोदी का असहज होना स्वाभाविक है। दूसरी सबसे बड़ी बात ये है कि नीतीश अपनी उपलब्धियों को मोदी जी कृपा से भी नहीं बता सकते क्यों कि नीतीश ने जब बिहार में अपनी सुशासन की छवि गढ़नी शुरू की थी तक मोदी जी ख़ुद एक मुख्यमंत्री थे। अब नीतीश जी ये तो कह नहीं सकते कि ये सब बिहार में जो उन्होंने 2005 से 2010 के दरमियान किया वो सब गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी जी की कृपा से किया।

मोदी के मंच पर मोदी से ज्यादा पॉलिटिकल सोशल माइलेज किसी सहयोगी दल के मुख्यमंत्री तो छोड़िए भाजपा का कोई कैबिनेट मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं ले सकता और राजनाथ सिंह तक माला से बाहर कर दिए जाते हैं तो वहां नीतीश कैसे बढ़त बना सकते हैं। और मोदी जैसा आत्ममुग्ध व्यक्ति इसे सहज स्वीकार कर ले ये कैसे संभव है।

कौन नहीं जानता कि योगी आदित्यनाथ, भूपेन पटेल से ले कर एकनाथ शिंदे तक अपने प्रदेशों में जो भी कर रहे हैं वो सब मोदी जी की कृपा से कर रहे हैं। ऐसा ही कहा और माना जाना चाहिए क्यों कि ये मोदी जी इच्छा है।

बिहार के राजनीतिक गलियारों में कल पूर्णिया और गया में हुई मोदी की सभाओं में नीतीश कुमार की अनुपस्थिति को ले कर दो तरह की चर्चाओं और अटकलों का बाजार गर्म है। एक तरफ ये कहा जा रहा है के मोदी और भाजपा ने जान बूझ कर नीतीश को प्रधानमंत्री की सभाओं से अलग रखने का निर्णय लिया है ताकी मोदी के One Man Show मुहिम को बदस्तूर जारी रखा जा सके और दूसरी तरफ़ इस बात की चर्चा भी जोरों पर है कि सी वोटर के सर्वे में जिस तरह नीतीश के कारण भाजपा को नुकसान की उम्मीद जताई गई है ऐसे में बिहार में एनडीए के ख़राब प्रदर्शन का ठीकरा पूरी कुटिलता के साथ नीतीश के माथे पर फोड़ने की योजना को नीतीश भांप गए हैं इसलिए उन्होंने मोदी के साथ ख़ुद को कैंपेन से अलग कर लिया है।

अंदरखाने ये भी खबर है कि नीतीश पहले ही भाजपा के लोकसभा के साथ-साथ बिहार में विधानसभा के चुनाव कराने को ले कर भाजपा की वादा खिलाफी से आहत हैं जब कि नीतीश को अपने साथ लाने के लिए भाजपा ने उनके साथ यही समझौता किया था कि लोकसभा के साथ-साथ विधान सभा के चुनाव भी कराए जाएंगे और विधानसभा भंग करने में भाजपा नीतीश का सहयोग करेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं इसलिए नीतीश अलग राह पर चलते दिखाई दे रहे हैं।

जदयू के उम्मीदवारों के सामने भाजपा के नेताओं द्वारा कई सीटों पर निर्दलीय चुनाव लडने की घोषणा से नीतीश को ये भी लग रहा है कि भाजपा उनके साथ फिर 2020 का कोई चिराग मॉडल अप्लाई कर रही है हालांकि व्यक्तिगत रूप से मुझे ऐसा लगता नहीं है क्यों कि उससे नुकसान मोदी के अबकी बार चार सौ पार की मुहिम का ही होना है।

बहरहाल जो भी है बिहार में NDA में सब कुछ सामान्य नहीं है। एक के बाद एक NDA के प्रत्याशियों के जन विरोध की खबरें और वीडियो सोशल मीडिया पर तैर रही हैं और उपेंद्र कुशवाहा, मांझी, से ले कर औरंगाबाद, नवादा, दरभंगा, आरा, मुंगेर, भागलपुर, बांका हर जगह जदयू भाजपा के उम्मीदवारों को विरोध का सामना करना पड़ रहा है। दबी जबान ये भी चर्चा है कि जदयू का संगठन भाजपा उम्मीदवारों से दूरी बनाए हुए है क्यों कि जदयू के कार्यकर्ताओं एक बड़ा वर्ग 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा चिराग प्रयोग से अभी तक आहत है। उन्हें लग रहा है कि लोकसभा चुनाव के परिणामों से जदयू का कुछ बुरा नहीं होने जा रहा है क्यों कि भाजपा की सरकार से समर्थन वापस लेने की स्थिति में राजद सरकार के रेस्क्यू के लिए कतार में खड़ा है और लालू यादव कह भी चुके हैं कि दरवाजा कभी बंद नहीं होता है।

जदयू के राज्यसभा सांसद संजय झा, जो जदयू में रहते हुए भाजपाई नेता हैं, वो प्रधानमंत्री की सभा से नीतीश जी के अनुपस्थित रहने को एनडीए की रणनीति का नाम दे रहे हैं लेकिन बिहार की धरती पर जहां उड़ती चिड़िया को हल्दी लगाने की कहावत आज भी अक्सर इस्तेमाल होती है वहां इतनी आसानी से जनता इसे रणनीति ही समझ लेगी ये लगता नहीं है।

एक बात और स्पष्ट है कि मैं जमुई, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, बेगुसराय, खगड़िया और मुंगेर के भ्रमण के बाद ये कह सकता हूं अभी तक जमीनी स्तर पर बिहार में तेजस्वी यादव नीतीश और मोदी की तुलना में काफ़ी बढ़त बनाए दिख रहे हैं और जातिगत समीकरणों से आगे निकल कर युवाओं की एक बड़ी संख्या तेजस्वी के पक्ष में गोलबंद होती जा रही है। मोदी के पक्ष में कोई लहर तो छोड़िए अब लोग मोदी की एक ही तरह की भाषण शैली से उकता चुके हैं। वो मोदी को देखने के लिए उनकी सभाओं में अवश्य जा रहे हैं लेकिन वोटिंग करते समय उसके सामने बेरोजगारी और महंगाई जैसे जमीनी मुद्दे ज्यादा मजबूती से खड़े दिखाई देते हैं।

मैं अक्सर चाय दुकानों, रेलवे स्टेशन और भीड़ भाड़ वाली जगहों पर अपनी राजनीतिक समझ के लिए इस तरह की चर्चा शुरू कर के माहौल भांपने का प्रयास कर रहा हूं तो अभी तक तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि फिलहाल मोदी के चुनावी हिंदुत्व के सामने इधर महंगाई, जातिगत जनगणना, तेजस्वी की नौकरी और केंद्र सरकार द्वारा लाई गई अग्निगीर योजना के खिलाफ युवाओं की बेबसी एक बड़ा चुनावी मुद्दा है।

सम्राट चौधरी द्वारा रोहिणी आचार्या के खिलाफ़ की गई अभद्र टिप्पणी (Indecent remarks made by Samrat Chaudhary against Rohini Acharya) और नवादा में योगी आदित्यनाथ का लालू को ठंडा करने की धमकी भी भाजपा के लिए बैक फायर होने जा रही है।

बहरहाल अभी बहुत समय है और इस दरमियान काफ़ी कुछ बदलेगा या जो आज दिख रही है वही रहेगा ये तो समय गुजरने के साथ-साथ स्पष्ट होगा लेकिन प्रथम चरण की चार सीटों पर होने वाले मतदान के लिए अब 48 घंटों से भी कम का समय बचा है और परसों शाम तक चुनाव किस दिशा में जा रहा है इसकी एक धुंधली सी तस्वीर अवश्य दिखाई दे जाएगी।

फर्रह शकेब

स्वतंत्र पत्रकार

मुंगेर (बिहार)

Nitish has realized the deceit of BJP!