नेतृत्वविहीन हुई सपा कंपनी, सांसदों से अखिलेश यादव ने कहा जिस को जहां जाना हो जाये
नेतृत्वविहीन हुई सपा कंपनी, सांसदों से अखिलेश यादव ने कहा जिस को जहां जाना हो जाये

New Delhi: Samajwadi Party President Akhilesh Yadav addresses during “NDTV Yuva 2018”, in New Delhi on Sept 16, 2018. (Photo: Amlan Paliwal/IANS)
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी। बदले-बदले से मेरी सरकार नज़र आते हैं, घर की बर्बादी के आसार नज़र आते हैं। सपा कंपनी में आजकल सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ( National President of the Samajwadi Party Akhilesh Yadav के बदले व्यवहार से पार्टी के बड़े नेता सकते में हैं। सपा के कुछ राज्यसभा सांसदों के मोदी की भाजपा में जाने की अटकलों के बीच अखिलेश यादव ने कहा है कि जिसको जहां जाना हो, चले जायें हम किसी को रोक नहीं रहे हैं।
अखिलेश यादव के इस बयान से पार्टी की चिंता करने वाले नेता सकते में हैं। सब अपने-अपने हिसाब से अखिलेश के इस बयान का मतलब ढूंढ रहे हैं। राज्यसभा सांसद नीरज शेखर सपा कंपनी छोड़कर मोदी की भाजपा में जा चुके हैं। ये वही नीरज है जिनके पिता अपने अंतिम साँस तक साम्प्रदायिकता का विरोध करते रहे। ख़ैर ये तो कोई ख़ास बात नहीं है। आजकल की सियासत में इसके कोई मायने नहीं है।
राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की ख़बरें चल रही हैं। कहीं ये दावा किया जा रहा था कि सपा कंपनी के चार सांसद मोदी की भाजपा में जा सकते हैं, तो कोई कह रहा था कि तीन सांसद समाजवादी कंपनी छोड़ सकते हैं। इसके साथ ही कुछ नाम भी चर्चा में थे। अखिलेश यादव इसी बात पर भड़के हुए हैं।
लगातार मिल रहे राजनीतिक झटकों से अखिलेश यादव परेशान हैं। जब से उन्होंने कंपनी का नेतृत्व सम्भाला है तब से कंपनी दिन-ब-दिन नुकसान में जा रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़े और 2019 में अपनी कट्टर विरोधी मायावती से मिलकर लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन समाजवादी कंपनी को कोई फ़ायदा नहीं हुआ। इसकी वजह सपा कंपनी का वोटबैंक यादव, सपा कंपनी का साथ छोड़ मोदी की भाजपा में चला गया था। अगर मुसलमान और दलित साथ न रहता तो मुलायम सिंह यादव और अखिलेश भी चुनाव हार जाते, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।
2017 के विधानसभा के चुनाव में भी यादवों का वोट बड़ी तादाद में मोदी की भाजपा के साथ चला गया था, तब भी उसके बंधुआ मज़दूर समझे जाने वाले (और हैं भी) मुसलमान ही मज़बूती के साथ सपा कंपनी के साथ खड़ा रहा था। बसपा ने चुनाव बाद ही अखिलेश पर तमाम आरोप लगाते हुए गठबंधन तोड़ लिया था।
असल में बसपा ने सपा के साथ गठबंधन मुसलमानों के वोटबैंक की वजह से किया था, क्योंकि मुसलमान पिछले काफ़ी दिनों से सपा कंपनी के साथ जुड़ा चला आ रहा है, नहीं तो यादव वोटबैंक पर तो बसपा, सपा से गठबंधन करने वाली नहीं थी।
सपा परिवार में मचे घमासान से भी सपा कंपनी को कम नुक़सान नहीं हुआ। अखिलेश की ज़िद ने सपा कंपनी को कहाँ से कहाँ लाकर खड़ा कर दिया, ये भी सभी जानते हैं। जो नेता अपना बूथ नहीं जिता पाए वही नेता विधान परिषद में सपा कंपनी का नेतृत्व कर रहे हैं। अखिलेश उनके कहे पर ही सपा कंपनी को शीर्ष पर ले जाने की सोच रहे हैं। एक चौकड़ी है जो सपा को बर्बादी की ओर ले जा रही है और अखिलेश हैं कि समझने को तैयार नहीं है।
अखिलेश सारे प्रयोग कर के अब थक चुके हैं। अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती मोदी की भाजपा से अपना घर बचाने की है। सपा कंपनी के नेताओं को ये बात भी समझ में नहीं आ रही है कि संसद का सत्र चलने के बावजूद अखिलेश दिल्ली के बजाय लखनऊ में क्यों जमे हुए हैं।
22 जुलाई को समाजवादी कंपनी के सभी सांसदों को सवेरे दस बजे संसद पहुंचने के लिए कहा गया, ये भी बताया गया कि सब सांसद गांधी जी की मूर्ति के पास इकट्ठा होंगे। सांसदों से कहा गया था कि अखिलेश यादव भी मौजूद रहेंगे, उनकी अगुवाई में सोमवार 22 जुलाई को सोनभद्र की घटना को लेकर विरोध प्रदर्शन होगा। यूपी के सोनभद्र में 10 लोगों की मौत पर योगी सरकार को घेरा जाएगा।
समाजवादी कंपनी के सांसद जब गांधी जी की मूर्ति पर पहुंचे, तो देखा वहां तो कांग्रेस के नेता पहुंचे हुए हैं। सपा सांसद अखिलेश का इंतज़ार करते रहे, लेकिन अखिलेश यादव नहीं आए, क्योंकि वे तो लखनऊ में थे। किसी को कुछ पता नहीं, आख़िर ऐसा क्यों हुआ ?
लोकसभा में समाजवादी कंपनी के पांच सांसद हैं। मुलायम सिंह यादव की तबियत ख़राब रहती है, इस बार अखिलेश यादव भी आज़मगढ़ से चुनाव जीत कर आए हैं, लेकिन अब तक संसद में वे मौन रहे हैं, एक भी सवाल नहीं उठाया। अखिलेश एक दो बार संसद आए भी, तो कुछ नेताओं से मिल कर सदन में कम, सेंट्रल हाल में ज़्यादा समय बिता कर लौट गए। रामपुर के सांसद आज़म खान ही चर्चा में बने रहे।
राज्यसभा में पार्टी के 12 सांसद हैं। रामगोपाल यादव (Ram Gopal Yadav) भी इस बार कंपनी सांसदों के साथ सक्रिय नहीं हैं। सपा कंपनी को खतम करने या कराने में रामगोपाल यादव को भी ज़िम्मेदार माना जाता है, उनकी मोदी की भाजपा से काफ़ी नज़दीकियाँ हैं, जो समय-समय पर सामने आती रहती हैं। सपा कंपनी के राज्यसभा के सांसदों की मोदी की भाजपा में जाने की चर्चाओं में उनके हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। संसद में एक तरह से सपा कंपनी नेतृत्व विहीन हो गई है।


