नैसर्गिक रूप में स्वस्थ रहने का अधिकार नहीं अब भारत के किसी नागरिक को
नैसर्गिक रूप में स्वस्थ रहने का अधिकार नहीं अब भारत के किसी नागरिक को
No citizen of India has the right to remain healthy in the natural form.
भारत के किसी नागरिक को नैसर्गिक रूप में अब स्वस्थ रहने का अधिकार नहीं है। विदेशी पूंजी के हित में हम सबको बीमार होते जाना है। विदेशी कंपनियाँ जो मुनाफे के लिए पूँजी लगा रही हैं, वे पहले बीमारियाँ पैदा कर रही हैं और महँगी दवाइयाँ बेच रही हैं।
मित्रों, बेहद शर्मिदा हूँ कि वायदे के मुताबिक निरंतर अबाध सूचनाओं का सिलसिला बनाये रखने में शारीरिक तौर पर फिलहाल अक्षम हूँ।
सारे दिन सोये रहने के बाद अब जाकर पीसी के मुखातिब हूँ। ऐसा अमूमन रोज हो रहा है।
आज का ताजा स्टेटस है, खूब डीहाइड्रेशन हुआ है। डॉक्टर ने रोजाना तीन लीटर ओआरएस रोजाना पीने का नुस्खा दिया है। रक्तचाप तेजी से गिरता नजर आ रहा है। आज डॉक्टर ने जब देखा, तब 100-60 था। बीच-बीच में इससे नीचे रक्तचाप गिर जाता है, जिससे पूरे शरीर में ऐंठन और कँपकँपी का दौर हो जाने से लाचार हूँ।
1980 से लगातार पेशेवर पत्रकारिता में हूँ। फिल्मों में काम के लिए मैंने महीने-महीने भर की छुट्टी ली है। देश में कहीं भी दौड़ने के लिए, पिता की राह पर चलते हुए मेहनतकश सर्वहारा जनता के साथ खड़ा होने के लिए जब तब छुट्टी लेने से हिचकिचिया नहीं हूँ। लेकिन हमेशा कोशिश की है कि वैकल्पिक व्यवस्था जरूर रहे और मेरी वजह से अखबार के कामकाज में असुविधा न हो। बेवजह छुट्टी कभी किसी बहाने ली नहीं है कभी। घर बैठने की कभी कोशिश नहीं की।
मैंने अपने पत्रकारिता के जीवन में सिर्फ एकबार मलेरिया हो जाने से 1997 में सिक लीव लिया है। विडंबना है कि मेरी पत्रकारिता के आखिरी साल मैं इस बार हफ्ते मैं दो बार सिक लीव लेने को मजबूर हूँ।
बाकायदा पेशेवर पत्रकार शर्मिदा हूँ। मुद्दों को तुरंत संबोधित करने का वायदा निभा नहीं पा रहा हूँ। और न भाषा से भाषांतर जा पा रहा हूँ।
लेकिन यकीन मानिये, जब तक आँखें दगा न दें और साँसे टूटे नहीं, तब तक कमसकम दिन में एकबार आपके मुखातिब खड़े होकर सच बोलने की बदतमीजी करता रहूँगा।
अब करीब 24 साल से जिस अखबार में काम कर रहा हूँ, उस अखबार के प्रबंधन का मैं आभारी हूँ कि उसने मेरे निरंतर बागी तेवर को बर्दाश्त किया है।
संपादकों और जीएम तक से भिड़ जाने, सीईओ शेखर गुप्ता, प्रधान संपादक प्रभाष जोशी और फिलवक्त कार्यकारी संपादक ओम थानवी तक की सार्वजनिक आलोचना करते रहने के बावजूद न मेरे खिलाफ कभी अनुशासनात्मक कोई कार्यवाही हुई है और न मेरे लेखन या मेरी गतिविधिययों पर कभी अंकुश लगा है। पेशेवर पत्रकारिता में इस आजादी के लिए मेरी सक्रियता में कभी व्यवधान नहीं पड़ा है।
रिटायर मैं इस अखबार में काम करते हुए पच्चीस साल पूरे होने के चंद महीने पहले हो जाऊँगा। मैं चाहता हूँ कि रिटायर होने तक मैं मुश्तैदी से पेशेवर पत्रकारिता के काम निबटाऊँ।
इस सामयिक व्यवधान की पीड़ा मुझे इसलिए ज्यादा है कि एक्सप्रेस समूह के तमाम कर्मचारी मेरे निजी संकट पर मेरा साथ देते रहे हैं, मेरे गुस्से और मेरी बदतमीजियों को उन्होंने हमेशा नजरअंदाज करके मुझे भरपूर प्यार दिया है तो प्रबंधन ने भी मुझे मुकम्मल आजादी दी है।
Nobody forced me to become a corporate journalist.
मुझे किसी ने कॉरपोरेट पत्रकार बनने के लिए मजबूर नहीं किया। मुझे किसी ने मेरे मुद्दों के अलावा लिखने पर मजबूर नहीं किया है। मेरी असहमति और आलोचना का सम्मान किया है। इससे उनका यह हक तो बनता है कि आखिरी वक्त तक मैं पूरी मुश्तैदी से काम करुँ। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है।
आज भी बीमार होने की वजह से छुट्टी लेनी पड़ी कि सविता बाबू को बहुत फिक्र हो गयी है और जोखिम उठाकर उनने मुझे दफ्तर जाने से रोक दिया।
मेरी तरह मेरे अभिन्न मित्र और सहकर्मी डॉ. मांधाता सिंह भी बीमार चल रहे हैं। वे भी एंटी बायोटिक जी रहे हैं। फ्लू महामारी की तरह कोलकाता और आसपास के इलाके को अपने शिकंजे में ले लिया है।
डॉक्टर साहेब बाकायदा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से इतिहास से पीएचडी करके निकले हैं। प्रोफेसरी के बदले उनने भी पत्रकारिता को पेशा बनाया है। हमसे ज्यादा पढ़े लिखे होने के बावजूद उन्होंने कभी महसूस ही होने नहीं दिया कि हम सिर्फ सहकर्मी हैं। आज डॉक्टर साहेब दफ्तर में अकेले हैं। मुझे इसके लिए भी शर्म आ रही है।
हमारे इलाहाबाद के दिनों से मित्र शैलेंद्र से मई में लंबे समय का साथ का अंत हो रहा है, जब वे रिटायर हो जायेंगे। उनकी संपादकीय क्षमता का केंद्रीयकरण की वजह से परीक्षण हुआ नहीं है। लेकिन करीब एक दशक से ज्यादा समय तक संपादक रहते हुए उन्होंने किसी मौके पर अपने संपादक के लिए हमें शर्मिंदा होने नहीं दिया और कोलकाता में जैसे व्यापार और उद्योग जगत की गोद में बैठ जाने की संपादको की रीति है, उसके उलट उन्होंने बाजार से हमेशा अपने को अलग रखा है।
अखबार के कामकाज के सिलसिले में गाहे बगाहे मैंने कभी कभार गुस्से में आकर उन्हें बहुत खरी खोटी भी सुनायी, लेकिन कवि संपादक शैलेंद्र ने इसे कभी दिल से नहीं लिया और न हमारी मित्रता के रिश्ते पर आंच आयी। बतौर मित्र मैं उनके लिए गर्वित हूँ। मैं चाहता था कि आखिरी वक्त तक यह साथ न छूटे और कमसकम हमारे रिटायर होने तक उनका एक्सटेंशन हो जाये। लेकिन इसके आसार नहीं लगते।
शैलेंद्र ने फोन पर आज कहा कि थोड़ा आराम भी कर लिया करो और कभी कभार देश दुनिया के मुद्दों के भोज से अपने को रिहा कर लिया करो। यह असंभव है। थोड़ी सी हालत बेहतर होते ही मोर्चे पर जमने की बुरी आदत से मैं बाज नहीं आ सकता।
Foreign companies which are investing capital for profit, they are first creating diseases and selling expensive medicines.
अभी हाल में डॉक्टर मांधाता सिंह कह रहे थे कि भारत के किसी नागरिक को नैसर्गिक रूप में अब स्वस्थ रहने का अधिकार नहीं है। विदेशी पूंजी के हित में हम सबको बीमार होते जाना है। विदेशी कंपनियाँ जो मुनाफे के लिए पूँजी लगा रही हैं, वे पहले बीमारियाँ पैदा कर रही हैं और महँगी दवाइयाँ बेच रही हैं।
भारत के मौसम और जलवायु के हिसाब से खानपान की जो देशज व्यवस्था थी, पूँजी के फायदे के लिए वह छिन्न भिन्न है। खेती अब कीटनाशक और रासायनिक मिलावट के बिना होती नहीं है।
मनसैंटो राज का करिश्मा यही है।
दूध संपूर्ण आहार है।
उस दूध में क्या क्या मिल जाता है, हम जान नहीं सकते।
जीवन धारण के लिए जो अनाज है, वह मनसैंटो के शिकंजे में हैं।
हरित क्रांति से लेकर दूसरी हरित क्रांति तक का सफर भोपाल गैस त्रासदी का सफर साबित हो चुका है। हवाओं और पानियों में रेडियोएक्टिव हस्तक्षेप है और सारी कायनात जहरीली बना दी गयी है।
अब तक तो कुछ एनजीओ जीएम सीड्स (जेनेटिकली मॉडिफाइड सीड्स- Genetically modified seeds) पर सवाल उठाती थीं, अब सुप्रीम कोर्ट भी इन्हें खतरनाक मान रहा है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान जीएम सीड्स को खतरनाक माना हैं।
कारपोरेट दलील लेकिन अलग है जो केसरिया कारपोरेट राजकाज के मुताबिक है।
कारपोरेट दलील है कि हालांकि जीएम सीड्स को लेकर कुछ चिंताएं बनी हुई हैं लेकिन इनके लिए अच्छी तरह से टैस्ट किए जाने चाहिए। जीएम सीड्स का किसानों, कंपनियों को फायदा है क्योंकि इनके फायदे सामान्य फसल से अलग हैं। जिस तरह से जमीन कम होती जा रही है और जमीन की उर्वर्कता कम हो रही है उसके हिसाब से जीएम सीड्स काफी अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं।
बीमा कानून में संशोधन हो जाने से जो 49 फीसद विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की इजाजत है, उसके तहत अमेरिका की तर्ज पर सारे नागरिक अब अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा की जद में जाएंगे।
शून्य जमा बीमा इलाज से जो लूट खसोट का सिलसिला बना है, एक बार आप बीमा लिस्ट के मुताबिक अस्पताल में दाखिल हो जाये, तो मामूली से मामूली उपचार के लिए लाखों का न्यारा वारा तय है। बीमा रकम से कई कई गुणा ज्यादा बिल का भुगतान के बाद आप कितने स्वस्थ रह पायेंगे, कहना मुश्किल है। यह डकैती और तेज, और मारक होने वाली है।
FDI limit in insurance sector increased from 26% to 49%
बीमा क्षेत्र में एफडीआई सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी करने का प्रस्ताव है, जिससे इस क्षेत्र में निवेश से संबंधित जटिलताएं दूर होंगी और इससे बीमा क्षेत्र में एफडीआई के जरिये तत्काल 21, 805 करोड़ रुपये की नई पूंजी आने का अनुमान है। हालांकि इस क्षेत्र को 44, 805 करोड़ रुपये की पूंजी की जरूरत है।
संशोधन के बाद भारत की बड़ी आबादी को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने में मदद मिलेगी। बीमा में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ऩे का जश्न सरकार के साथ बीमा कंपनियां भी मना रही हैं, लेकिन ग्राहकों के लिए एक बुरी खबर इंतजार कर रही है। अगले महीने से शुरू हो रहे नए वित्त वर्ष में मोटर व स्वास्थ्य बीमा के प्रीमियम में भारी इजाफा होने के आसार हैं।
life saving drugs india
जीवन रक्षक दवाओं की कीमतें भी आसमान चूमने लगी हैं। डॉक्टर अब दवा कंपनियों के एजेंट बन गये हैं। बंगाल में कानून जेनेरिक नाम से दवाएं प्रस्क्राइब करने का प्रावधान है, जो अभी कहीं लागू नहीं है।
ब्रांड नाम से मामूली सी मामूली मसलन आइरन, कैल्सियम और विटामिन प्रेसक्राइब किये जाते हैं। एंटीबायोटिक का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। कोई एंटीबायोटिक एमोक्सिसिलिन से कम नहीं होता। ऊपर से गैर जरूरी आपरेशन निजी अस्पतालों का सबसे बड़ा फंडा है। कोई नियंत्रण है नहीं। नॉलेज इकानोमी की तरह अस्पताल अब हेल्थ हब है।
इस पर गौर करें कि बेयर के अध्ययन के अनुसार भारत में 7 दिन के इलाज के लिए (14 टेबलेट) बेयर सिप्रोफ्लेक्सिन की कीमत 3.99 डॉलर है। जबकि इसके जैसी जेनेरिक दवाओं की यही कीमत (Generic drugs price) 1.62 डॉलर है। अध्ययन के मुताबिक इसी दवा की इतनी टेबलेट के लिए बेयर कोलंबिया में 131.47 डॉलर वसूलती है।
अपने डॉक्टर साहेब ठीक ही कह रहे हैं कि अब मेकिंग इन अमेरिका के अबाध पूंजी के केसरिया कारपोरेट राजकाज समय में किसी नागरिक को स्वस्थ रहने का अधिकार नहीं है।
पलाश विश्वास


