नोटबंदी का कॉरपोरेट कार्यक्रम संघ परिवार का मृत्यु संगीत, मोदी पर अब संघ का नियंत्रण भी नहीं

पलाश विश्वास

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पेटीएम के बाद जिओ के विज्ञापनों में भी प्रधानमंत्री!

अब बिना इजाजत जिओ के विज्ञापन में प्रधानमंत्री की तस्वीर चस्पा करने के लिए मुकेश अंबानी को भारी घाटा उठाना पड़ेगा, क्योंकि भारत सरकार इस गुनाह के लिए रिलायंस पर भारी जुर्माना सिर्फ पांच सौ (दोबारा पढ़ें, सिर्फ पांच सौ) का लगाने जा रही है।

आयकर खत्म करके ट्रांजैक्शन टैक्स लगाकर अरबपतियों और करोड़पतियों को मेहनतकश जनता के बराबर खड़ा करने वालों की समाजवादी क्रांति की समता, समरसता और सामाजिक न्याय का यह जलवा है, तो आधार पहचान के जरिये लेन-देन के तहत कॉरपोरेट एकाधिकार कायम करने के साथ बहुजनों का सफाया करने के लिए उनके कॉरपोरेट महोत्सव के अश्वमेध यज्ञ का हिंदुत्व एजेंडा भी कैशलैस सोसाइटी है और नोटबंदी अभियान राममंदिर आंदोलन की निरंतरता है।
जाहिर है कि कॉरपोरेट सुपरमॉडल बने प्रधानमंत्री पर अब संघ परिवार का नियंत्रण भी नहीं है!
ग्लोबल हिंदुत्व के महानायक डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अमेरिकी लोकतंत्र की परंपरा के मुताबिक अपने को ढालने की कोशिश हैरतअंगेज तरीके से कर रहे हैं।

वैसे भी अमेरिका में राजकाज, कायदा कानून, राजनय, संधि समझौता से लेकर कानून व्यवस्था के मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति के सर्वेसर्वा सर्वशक्तिमान स्टेटस के बावजूद तानाशाही तौर तरीके अपनाने की मनमानी नहीं है और राष्ट्रपति प्रणाली होने के बावजूद अमेरिकी सरकार को कदम दर कदम संसदीय अनुमति की जरूरत होती है।

इसके विपरीत हमारे यहां संसदीय प्रणाली होने के बावजूद संसद की सहमति के बिना राजकाज, कायदा कानून, राजनय, संधि समझौता से लेकर कानून व्यवस्था के मामले में कैबिनेट की सांकेतिक अनुमति से ही जन प्रतिनिधियों को अंधेरे में रखकर बिना किसी संवैधानिक विशेषाधिकार के प्रधानमंत्री को फासिस्ट तौर तरीके अपनाने से रोकने की कोई लोकतांत्रिक तौर तरीका नहीं है।

मनमोहन सिंह ने भारत अमेरिका परमाणु संधि पर दस्तखत कर दिया था, बिना संसदीय अनुमति या सहमति के और वामपंथी अनास्था के बावजूद न सिर्फ उनकी सरकार गिरने से बची, अगला चुनाव जीतकर उनने वह समझौता बखूब लागू भी कर दिया जनमत, आम जनता या संसदीय अनुमति के बिना। जबकि इस संधि पर संसद की मुहर लगाकर बाकायदा समझौते को कानून बनाने में अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश की हालत पतली हो गयी थी।

यही वजह है कि नस्ली दिलोदिमाग के होने के बावजूद अमेरिकी प्रेसीडेंट इलेकट को सिर्फ अमेरिकी का प्रेसीडेंट ही बने रहना है। डोनाल्ड ट्रंप अरबपति होने के बावजूद तमाम दूसरे पद और हैसियत छोड़ने को मजबूर हैं।
दूसरी ओर, अपने प्रधानमंत्री पर कोई अंकुश किसी तरफ से नहीं है।
गुजरात के मुख्यमंत्री बतौर वे जो कुछ कर रहे थे, अब भी वही कर रहे हैं।

देश का प्रधानमंत्री होने के बावजूद संसदीय अनुमति से नहीं, संघ परिवार के एजेंडा और दिशानिर्देश के तहत संघ मुख्यालय से वह फासिज्म का राजकाज चला रहे हैं।

अब तो लगता है कि संघ परिवार का भी उन पर कोई अंकुश नहीं है।

ओबीसी कार्ड खेलकर बहुसंख्य जनता का वोट हासिल करने के लिए जाति व्यवस्था और अस्मिता राजनीति के तहत भारत की सत्ता दखल करने में संघ परिवार को कामयाबी जरूर मिल गयी है, लेकिन संघी और भाजपाई भूल गये कि ब्राह्मण नेताओं जैसे अटल बिहारी वाजपेयी या मुरली मनोहर जोशी और अटल बिहारी वाजपेयी को नियंत्रण करने में उन्हें जो कामयाबी मिलती रही है, उसकी सबसे बड़ी वजह ब्राह्मण भारत की जनसंख्या के हिसाब से तीन फीसद भी नहीं है।

लालकृष्ण आडवाणी सिंधी हैं और सिंधियों की जनसंख्या ब्राह्मणों की जनसंख्या के बराबर भी नहीं है।

इसके विपरीत ओबीसी की जनसंख्या पचास फीसद से ज्यादा है और संघ परिवार की पैदल सेना में ओबीसी सभी स्तरों पर काबिज हैं।
सारे ओबीसी क्षत्रप राज्यों के मुख्यमंत्री हैं।
अब मोदी ओबीसी कार्ड संघ परिवार के खिलाफ खेल रहे हैं।

उनका ब्रह्मास्त्र उन्हीं के खिलाफ दाग रहे हैं।

लालू नीतीश नोटबंदी के हक में हैं।

मुलायम अखिलेश लगभग खामोश हैं।

यूपी बिहार सध गया तो नागपुर की परवाह क्यों करें।

संघ परिवार के ताबूत में कीलें अब ठुकने ही वाली हैं।

हिंदुत्व का राम मंदिर एजेंडा पहले शौचालय में खप गया।
राममंदिर के बदले शौचालय तो हिंदुत्व का एजेंडा अब नोटबंदी है।
मोदी इस ओबीसी समीकरण के तहत संघ परिवार की परवाह किये बिना निरंकुश राजकाज चला सकते हैं और हिंदुत्व का बैंड बाजा बजा सकते हैं तो ब्राह्मणों की खाट भी खड़ी कर सकते हैं।

पहले भी डॉ. मनमोहन सिंह को बचाने में पंजाब के अकाली उनका साथ संघ परिवार से नाभि नाल के संबंध के बावजूद सक्रिय थे और अकालियों ने ही अनास्था प्रस्ताव से मनमोहन को बचाया।

उन्हीं मनमोहन के कंधे पर सवार ओबीसी कॉरपोरेट अब मोदी राज में हर क्षेत्र में हिंदुत्व, शुद्धता और आयुर्वेद के ब्रांड के साथ तमाम कॉरपोरेट ब्रांड पर हावी है।
उनका सारा कारोबार आयकर और नोटबंदी के दायरे से बाहर है और वे ही नोटबंदी के सबसे बड़े प्रवक्ता हैं।
जाति व्यवस्था बहाल रखने के लिए, मनुस्मृति अनुशासन लागू करने के लिए यह कॉरपोरेट राज हिंदुत्व का एजेंडा है।

इसीलिए ओबीसी कार्ड बेहिचक खेल दिया संघ परिवार ने तो इसी ओबीसी कार्ड की ताकत और कॉरपोरेट समर्थन से मोदी अब आम जनता के लिए जो सबसे खतरनाक है, सो है, संघ परिवार के लिए भस्मासुर हैं अभूतपूर्व जिन्हें संघ परिवार ने भगवान विष्णु की तरह सर्व शक्तिमान बना दिया और आखिरकार वे पेटीएम और जिओ के सुपर मॉडल निकले।

नोटबंदी का यह कॉरपोरेट कार्यक्रम संघ परिवार का मृत्यु संगीत है।