Modi's hypocrisy of Janmat App on demonetisation

पी एम नरेन्द्र मोदी संसद में किसी हॉल में बैठकर भाजपा सांसदों को सम्बोधित कर सकते हैं, संसद शुरू होने के बाद वे दो बार उनको सम्बोधित कर चुके हैं लेकिन वहीं पास में संसद के सदन में आकर भाषण देने में क्यों डर रहे हैं ?

वे संसद की बिल्डिंग में जा रहे हैं लेकिन सदन में नहीं जा रहे। सदन से वे कन्नी क्यों काट रहे हैं ? उनसे क्या कोई संवैधानिक चूक हुई है ?

जी हां, हमने फेसबुक पर जितने भी मसले संवैधानिक उल्लंघन के रेखांकित किए थे, आज वे सभी मुद्दे विपक्ष भी उठा रहा है।

मोदीजी सदन में बोलते हैं तो वे अपने बयान की संवैधानिक पुष्टि के लिए मजबूर होंगे।

दिलचस्प बात है मोदी मंत्रीमंडल के सभी लोग संसद में बोलने को तैयार हैं, एकमात्र मोदी बोलना नहीं चाहते, क्योंकि वे अपने को संवैधानिक जवाबदेही से बाहर रखना चाहते हैं।

मसलन्, संसद में यदि वे कहते हैं कि मैंने नोट बंदी का फैसला लिया तो यह संवैधानिक बयान होगा जो सीधे संविधान के उल्लंघन के दायरे में आता है। मोदी को नोट बंदी का फैसला लेने का हक नहीं है।

यदि वे कहते हैं मंत्रिमंडल ने फैसला लिया, तो यह कहना भी असंवैधानिक होगा।

यही बुनियादी वजह है कि वे संसद से बाहर बोल रहे हैं, संसद के बाहर उनके बोलने का कोई संवैधानिक मूल्य नहीं है।

जो खबरें सामने आई हैं वे ये हैं कि मोदी ने नोट बंदी के लिए सभी संवैधानिक नियमों और संस्थाओं को अमान्य या दरकिनार करके नोटबंदी का फैसला लिया है।

वे मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए आम जनता की राय को मेनीपुलेट करना चाहते हैं।

यही वजह है कि उन्होंने एक एप के जरिए नोटबंदी से जुड़े 10 सवालों पर राय जानने की कोशिश की है।

पीएम की ओर से जो दस सवाल नागरिकों से पूछे गए हैं, वे सवाल गलत हैं और उन सवालों को जिस क्रम से रखा गया है उनके उत्तर पहले से ही तय हैं।

कायदे से नोटबंदी को लेकर पहले सभी आधिकारिक सूचनाएं जनता को दी जाएं और फिर सवाल किए जाएं तो कुछ हद तक संतुलित राय मिलेगी।

मसलन्, पहले जनता को यह बताया जाए कि नोटों पर पाबंदी लगाने का संवैधानिक अधिकार किस संस्था को है, हमारे देश में अधिकतर लोग नहीं जानते, कम से कम पीएम को नोटबंदी के फैसले लेने का संवैधानिक हक नहीं है, यह रिजर्व बैंक के अधिकार क्षेत्र में आता है।

दूसरी बात यह कि रिजर्व बैंक ने यह फैसला कब लिया, क्या यह फैसला कुछ मिनटों या घंटों में लिया? यदि हां तो इस तरह का गंभीर फैसला लेने के लिए बैंक के मुखिया पर किसने दवाब डाला?

नोटबंदी का फैसला सबसे बड़ा फैसला है, यह हठात नहीं लिया जा सकता। यह ऐसा फैसला है जिससे देश का हर नागरिक प्रभावित हुआ है और परेशान है, उसके संवैधानिक हक पर इस फैसले के जरिए हमला बोला गया है। बेहतर यही होगा कि रिजर्व बैंक सभी तथ्यों को आम जनता के सामने रखे।

जनता को नोट बंदी से जुड़े सभी तथ्यों की जानकारी देने के बाद ही पीएम को इस फैसले पर जनमत की राय लेनी चाहिए।

दिलचस्प बात यह है कि मीडिया तक को नहीं मालूम कि किसने फैसला लिया और क्यों फैसला लिया,। मीडिया एकतरफा ढंग से नोटबंदी के पक्ष में प्रचार कर रहा है और उसी भाषा में प्रचार कर रहा है जिस भाषा में 8नवम्बर2016 को आठ बजे मोदीजी बोले थे।

इस तरह नियोजित प्रचार और सूचनाओं के अभाव के आधार पर कोई भी जनमत की राय एकसिरे अवैज्ञानिक और निराधार ही कही जाएगी।
सूचनाओं के पर्याप्त प्रचार-प्रसार के बाद ही जनमत की राय ली जानी चाहिए।

इस प्रसंग में दूसरी बात यह कि मोदी को हठात् जनमत के समर्थन की जरूरत क्यों है ? वे तो मानकर चल रहे हैं कि उनके साथ सारा देश खड़ा है, वे सही कर रहे हैं, जनता खुश है, बस जरा सी तकलीफ है, सब कुछ यदि पचास दिन तक ऐसे ही चलता रहा तो मोदीजी किला फतह कर लेंगे।

जनमत की राय का एप जारी करके मोदीजी ने यह साफ संकेत दे दिया है कि आम जनता और खासकर भाजपा के सांसदों-विधायकों में एक अच्छा-खासा हिस्सा उनके पक्ष में नहीं है, इसलिए उन पर दवाब पैदा करने के लिए मोदी एप के जरिए जनमत की राय का औजार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

दूसरा, वे विपक्ष के खिलाफ प्रचार अभियान के अंग के रूप में इस एप को लेकर आए हैं, इसके सवालों में यह बात निहित है।

दिलचस्प बात यह है कि नोट बंदी पर रिजर्व बैंक के हक पर हमला बोला गया, संसद के हक पर हमला बोला गया, मीडिया-सोशलमीडिया के जरिए आम जनता के दिमाग पर हमले चल रहे हैं, अब एप के जरिए बमबर्षा की जाएगी।

जगदीश्वर चतुर्वेदी