नोटबंदी : मोदी- मुक्त भारत का सपना
नोटबंदी : मोदी- मुक्त भारत का सपना
नोटबंदी : मोदी- मुक्त भारत का सपना
एच.एल.दुसाध
30 दिन पूर्व, आठ नवम्बर की रात बारह बजे से उठी नोटबंदी की सुनामी का कहर पूर्ववत जारी है. किन्तु इससे जिस तरह विपक्ष में मोदी सरकार से मुक्ति चाह पैदा हुई है, उससे उनके तुगलकी फैसले से त्रस्त कुछ लोग भारी राहत महसूस कर रहे हैं. ऐसे लोगों में बहुतायत बहुजन छात्र और बुद्धिजीवियों की है, जो रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के बाद से ही मोदी राज के खात्मे की कामना करने लगे थे.
ऐसे में जब राहुल गाँधी और मायावती के साथ खास तौर से लाल दुर्ग ध्वस्त करने जैसा कठिन कार्य अंजाम देने वाली ममता बनर्जी और काले धन तथा भ्रष्टाचार-विरोधी जनांदोलन की जठर से निकले केजरीवाल ने नोटबंदी के मुद्दे पर जनांदोलन खड़ा करने का एलान किया, उनमें मोदी से मुक्ति की चाह हिलोरे मारने लगी.
नोटबंदी को ‘ब्लैक इमरजेंसी’ करार देते हुए इसके खिलाफ अभियान को ‘आजादी की लड़ाई’ का नाम देने वालीं ममता बनर्जी ने कह दिया है कि जीऊँ या मरूं पीएम मोदी को भारतीय राजनीति से हटा कर रहूँगी. उनके ख्याल से मोदी के कारण देश की आजादी को खतरा पैदा हो गया है, इसलिए वह मोदी से मुक्ति के लिए आखरी सांस लड़ाई जारी रखेंगी.
ममता के साथ केजरीवाल ने नोटबंदी को आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला बताते हुए दावा किया है कि इससे कोई काला धन सामने नहीं आएगा. साथ ही जोर गले से यह भी कहे जा रहे हैं कि कांग्रेस ने कोयला व टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जितना गबन किया है, उससे कहीं ज्यादा मोदी ने दो वर्ष में कर दिया है.
ऐसे में बाकी विपक्ष सहित ममता और केजरीवाल जैसे बेदाग़ और जुझारू नेताओं को साथ मिलकर जनांदोलन खड़ा करने प्रयास करते देख कुछ लोगों को लगने लगा है कि नोटबंदी शायद मोदी-मुक्त भारत का सबब बन सकती है.
किन्तु यहां सवाल पैदा होता है कि क्या विपक्ष के तरकश में ऐसा कोई तीर है जिससे मोदी का काम तमाम किया जा सके!
नोटबंदी के मुद्दे पर विपक्ष के तरकश का जो सबसे प्रभावी तीर है, वह यह है कि मोदी ने अपने चहेतों और अपनी पार्टी तथा संघ को काला धन सफ़ेद करने का भरपूर अवसर दिया है और पिछले दस महीने से कालेधन को सफ़ेद करने में व्यस्त रहने के कारण ही वह भरपूर तैयारी के साथ नोटबंदी का निर्णय न ले सके. इस कारण ही जनता को इतनी तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है.
दूसरा यह कि सत्ता में आने के सौ दिन के भीतर विदेशों से काला धन ला कर प्रत्येक के खाते में 15-15 लाख जमा कराने तथा हर वर्ष दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने की नाकामी को छिपाने के लिए ही नोटबंदी का कदम उठाया गया है.
तीसरा, यह कि देश में केवल 5-6 प्रतिशत काला धन ही नकदी के रूप में है और बाकी परिसंपत्तियों, सोने व बाहरी बैंकों में है तो सरकार नोटबंदी को काला धन खात्मे का निर्णायक कदम कैसे कह रही है?
बहरहाल अगर विपक्ष के शस्त्रागार में कोई गोपनीय हथियार नहीं है तो मानना पड़ेगा उसके तरकश के मौजूदा तीर मोदी-मुक्त भारत का सपना पूरा करने में व्यर्थ ही साबित होंगे.
ऐसा इसलिए कहना पड़ता है कि विपक्ष द्वारा इनका भरपूर इस्तेमाल किये जाने के बावजूद जनता नोटबंदी के पक्ष में है, यह आठ नवम्बर के बाद हुए चार राज्यों के विधानसभा एवं लोकसभा उपचुनाओं तथा महाराष्ट्र और गुजरात के स्थानीय निकायों के उपचुनाव परिणामों से स्पष्ट हो चुका है.
इसे लेकर जो एकाधिक सर्वे हुए उनमें भी बहुसंख्य जनता भारी कष्ट झेलने के बावजूद नोटबंदी के समर्थन में खड़ी दिखी.
यही नहीं चैनलों से लेकर संसद में जो बहस हुए, उनमें भी विपक्ष लाचार दिखा.
ऐसा इसलिए कि खुद विपक्ष भी मानता है कि नोटबंदी खूब गलत नहीं है, गलत है तो इसे लागू करने का तरीका.
इसमें कोई शक नहीं कि नोटबंदी से स्थाई रूप से काले धन और भ्रष्टाचार पर रोक न लग पाने की सम्भावना के बावजूद इससे कुछ फायदे हैं, जो खुद विपक्ष भी दबी जुबान से स्वीकार कर रहा है.
ऐसे में विमर्श को काले धन से कैशलेस इकॉनमी की ओर घुमा रहे मोदी 2017 के विधानसभा चुनावों की नैया नोटबंदी के सहारे पार लगा लेंगे, इसकी सत्योपलब्धि विपक्ष जितना जल्दी कर ले, उतना ही उसके हित में होगा. क्योंकि मीडिया के विपुल समर्थन और राई को पहाड़ बनाने में माहिर संघ के तीन दर्जन से अधिक संगठनों के मदद से पुष्ट मोदी अपनी सम्मोहनकारी भाषण कला के जरिये नोटबंदी के मामूली से फायदे को इतने बड़े फायदे के रूप में अवाम के जेहन में घुसा देंगे कि लोग भूल ही जायेंगे कि वे विदेशों से काला धन ला कर प्रत्येक के खाते 15-15 लाख जमा करा देने के वादे के सहारे ही सत्ता में आये थे.
ऐसे में यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि विपक्ष नोटबंदी के जरिये भारत को मोदी से आजादी नहीं दिला सकता.
शायद विपक्ष की इस लाचारी को दृष्टिगत रखते हुए ही आरएसएस के एक प्रोफ़ेसर प्रवक्ता ने टीवी पर हँसते हुए कह दिया था कि जिस तरह राम ने रावण की नाभि में तीर मारा था वैसे ही मोदी ने काले धन का तीर विपक्ष की नाभि में मारा है.
ऐसे में विपक्ष यदि मोदी-मुक्त भारत की चाह रखता है उसके सामने सामाजिक न्याय के अमोघ अस्त्र के इस्तेमाल से भिन्न कोई विकल्प नहीं है.
राजनीति विज्ञान के प्राइमरी स्तर के विद्यार्थी को भी पता है कि भाजपा का सम्पूर्ण इतिहास ही सामाजिक न्याय विरोधी है और इसके लिए इस पार्टी को राष्ट्र-विरोधी कार्यों से भी गुरेज नहीं है. इसीलिए तो 1990 में जब मंडल रिपोर्ट के जरिये पिछड़ों को आरक्षण मिला,इसने राम जन्मभूमि मुक्ति का मुद्दा छेड़ दिया. उसके फलस्वरूप ही यह सत्ता में जरूर आई किन्तु इस क्रम में उसने राष्ट्र के हजारों करोड़ की संपदा और असंख्य लोगों की प्राण-हानि करा दिया.
यह घोर सामजिक न्याय विरोधी है इसलिए राम जन्मभूमि मुक्ति के सहारे जब यह केन्द्रीय सत्ता पर काबिज हुई, इसके काबिल नेता वाजपेयी ने उन सरकारी उपक्रमों को बेचने के लिए बाकायदे विनिवेश मंत्रालय खोल दिया जहां हजारों साल से सामाजिक अन्याय का शिकार बनाये गए लोगों को आरक्षण मिलता रहा है.
यह घोर सामाजिक न्याय विरोधी पार्टी है इसलिए 2004 में जब इस पार्टी की फायर ब्रांड साध्वी मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं, उन्होंने रातोरात दिग्विजय सिंह द्वारा एससी/एसटी को समाज कल्याण विभाग की खरीदारी में दिए गए 30 प्रतिशत आरक्षण का बेरहमी से खात्मा कर डाला.
इसके बौद्धिक सिद्धांतकार वर्षों से यह कह कर नरसिंह राव की नई अर्थिनीति का विरोध करते रहे कि इससे देश आर्थिक रूप से विदेशियों का गुलाम बन जायेगा. किन्तु सत्ता में आने के बाद भाजपाई इसलिए बार-बार निजीकरण, उदारीकरण, एफडीआई के मामले में राव को बौना बनाने की कोशिश किये कि इससे आरक्षण सिर्फ कागजों की शोभा बनकर रह जाए.
बहरहाल पूना-पैक्ट के जमाने से आरक्षण का विरोध करने वाले संघ का राजनीतिक संगठन भाजपा चरम सामाजिक न्याय विरोधी पार्टी है, इस बात को ध्यान में रखते हुए जब बिहार विधानसभा चुनाव-2015 में लालू प्रसाद यादव ने ठेकों सहित विकास की तमाम योजनाओं में दलित, पिछड़ों और अकलियतों के लिए 60 प्रतिशत आरक्षण देने का आश्वासन देते हुए सामाजिक न्याय की राजनीति को विस्तार दिया, मोदी का सारा सम्मोहन ध्वस्त हो गया.
ऐसा करके लालू प्रसाद यादव ने यह बता दिया कि सामाजिक न्याय के अमोघ अस्त्र से मोदी को आसानी से ढेर किया जा सकता है.
ऐसे में नोटबंदी से हलकान विपक्ष यदि सामाजिक न्याय की राजनीति का विस्तार करते हुए दलित, आदिवासी, पिछड़ों और अकलियतों को सप्लाई, डीलरशिप, ठेकों, पार्किंग, परिवहन, निजी क्षेत्र की नौकरियों, न्यायपालिका इत्यादि समस्त क्षेत्रों में संख्यानुपात में भागीदारी का वादा कर दे तो नोटबंदी के जरिये अपना राजनीतिक वजूद बचाने का सपना देख रहे मोदी 2017 में ही शर्तिया तौर पर ढेर हो जायेंगे. और 2017 के बाद 2019 तक भी विपक्ष यदि सामाजिक न्याय की राजनीति को विस्तार देता रहा, मोदी-मुक्त भारत का सपना निश्चित रूप से परवान चढ़ जायेगा.
किन्तु मोदी-मुक्त भारत की प्रबल सम्भावना के बावजूद सवाल पैदा होता है कि क्या विपक्ष सामाजिक न्याय की राजनीति के विस्तार की दिशा में आगे बढेगा?
अंततः केजरीवाल, ममता बनर्जी और राहुल गाँधी से तो उम्मीद नहीं ही की जा सकती. क्योंकि विशेषाधिकारयुक्त वर्ग के प्रति विशेष दुर्बलता पोषण करने के कारण ये इस दिशा में आगे बढ़ ही नहीं सकते.
ऐसे में ले दे कर सारी उम्मीदें बसपा सुप्रीमो मायावती पर टिक जाती हैं, क्योंकि वह एक ऐसी पार्टी की मुखिया हैं, जिसका वैचारिक आधार ही सामाजिक न्याय पर टिका है एवं जो सामाजिक और आर्थिक रूपांतरण के अपने घोषित लक्ष्य को पूरा करने के लिए संपदा-संसाधनों के बंटवारे में ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’ लागू करने के प्रति प्रतिबद्ध हैं.
स्मरण रहे मायावती के गुरु कांशीराम कहा करते थे- ‘मैं उत्तर प्रदेश पर इसलिए केन्द्रित करता हूँ कि यह ब्राह्मणवाद का पालना है. अगर आप भारतवर्ष को एक पुरुष के रूप में देखें तो उ.प्र. उसकी गर्दन है. जब मैं गर्दन मरोड़ता हूँ तो शरीर के दूसरे अंग अपने आप निष्क्रिय हो जाते हैं और उन पर हमारा नियंत्रण हो जाता है.’
अगर मायावती जी अपने गुरु का अनुसरण करते हुए अपनी पार्टी के भागीदारी दर्शन के जरिये आगामी विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणवाद की सबसे बड़ी पोषक भाजपा की गर्दन मरोड़ दें तब निश्चित तौर पर 2019 में मोदी-मुक्त भारत की सम्भावना उज्ज्वलतर हो जाएगी.
पर, इसके लिए उन्हें ब्राह्मण वोटों के मोह का परित्याग करना पड़ेगा, जिसकी सम्भावना फिलहाल दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है.
(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.)


