पत्थर तो उछाल ही दिया समाजवादियों ने
पत्थर तो उछाल ही दिया समाजवादियों ने
जंतर मंतर पर जनता परिवार
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आज समाजवादियों ने जिस अंदाज में दिल्ली के जंतर मंतर पर चुनौती दी है वह आगे की राजनीति का संकेत और संदेश दोनों है। जनता परिवार की हर तरह की आलोचना के बावजूद यह सभी जानते हैं कि इसमें शामिल दल जमीनी लड़ाई लड़ने में हमेशा आगे रहे हैं। आगे तो वे आपस में भी लड़ने के लिए जाने जाते हैं पर देश की दो ध्रुवीय राजनीति में इस तीसरी ताकत ने कई बार बड़ा बदलाव किया है यह जरूर ध्यान रखना चाहिए। अब फिर जनता परिवार इस अभियान में जुट गया है। मुलायम, लालू, नीतीश से लेकर शरद यादव तक ने आज मोदी को पूरे दम-ख़म के साथ चुनौती दी है और वह भी समाजवादी एजेंडे के साथ। रेलवे के निजीकरण का सवाल हो या फिर किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम दिलाने का या फिर नौजवानों को रोजगार का सभी सवाल कारगर ढंग से उठाए गए। मोदी ने लोकसभा चुनाव में जो वादे किए नीतीश कुमार उसका भाषण लेकर आए और लोगों से पूछा, आवाज पहचानते हो। जवाब मिला, हां। और भाषण में मोदी ने काला धन लाकर देश में हर गरीब के खाते में पंद्रह बीस लाख जमा करा देने का वादा कर रहे थे। ऐसे ही कई और वायदे थे। लालू ने भी याद दिलाया तो मुलायम ने भी।
मुलायम ने कहा कि नरेंद्र मोदी ने जो वादे किए, वो कहां हैं ? देश की सीमा सुरक्षित नहीं है, जवान सुरक्षित नहीं हैं। किसान परेशान हैं। सरकार सिर्फ बयानबाजी और हिंदू-मुस्लिम में फंसी है। सरकार लोगों को भ्रमित कर रही है। मुलायम ने कहा कि कोई एक बात तो करके दिखाइये। लोगों से वादे करके आप सत्ता में आए और पीएम बन गए लेकिन वादे कब पूरे करेंगे। सरकार की वादा खिलाफी के खिलाफ हमें सड़क पर उतरना पड़ा। लालू ने कहा कि सरकार धर्म के नाम पर लोगों को उलझा रही है। वो विकास कार्यों की जगह विपक्षियों को आपस में लड़ाना चाहती है। लेकिन हम कल की बात पीछे छोड़कर एकजुट हो चुके हैं।
लालू ने मोदी पर हमला बोलते हुए कहा कि देश की सीमा सुरक्षित नहीं है और वो अच्छे दिनों की बात करते हैं। उन्होंने रेलवे को सौ फीसद विदेशियों के हाथों में सौंप दिया है। डिफेंस को भी विदेशियों के हाथों में सौंप रहे हैं। दुनिया में भारत का मजाक उड़वा रहे हैं। आगे बोले, ये पत्थर के गणेश को दूध पिलाने वाले लोग हैं। आजम खान ने पीएम मोदी से सीधा सवाल किया कि पीएम मोदी सबसे पहले ये साफ करेंगे कि सरकार किसकी है ? उन्होंने कहा कि पीएम मोदी बताएं कि सरकार उनकी है, या बीजेपी की है, या फिर संघ की ? उन्होंने भी काले धन पर सौ दिनों के वादों की याद दिलाई।
यह एक बानगी है जनता परिवार के नेताओं के भाषण की। असली बात यह है कि साझा लड़ाई लड़ने का जज्बा है नहीं ? इस बात का जवाब आज जंतर-मंतर पर जरूर दिखा। कड़ाके की इस ठंढ में समाजवादी पार्टी के बड़ी संख्या में आए कार्यकर्ताओं को यह भरोसा तो हुआ कि मजहबी गोलबंदी और आर्थिक साम्राज्यवाद के खिलाफ कई बार बना बिखरा यह कुनबा फिर सड़क की लड़ाई के मूड में है। कांग्रेस यह नहीं कर सकती। उसकी मुख्य वजह नेतृत्व और आर्थिक नीतियां हैं। मोदी जिस आर्थिक नीति के रास्ते पर जा रहे हैं, वह रास्ता कांग्रेस का ही बनाया है। रेल से लेकर रक्षा तक विदेशी निवेश के लिए खोल देना हो या किसानों को लेकर बनाई नीतियां हो, पहल तो कांग्रेस ने ही की थी। कांग्रेस आज छतीसगढ़ में धान किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम दिलाने की लड़ाई लड़ रही है तो उसकी इस लड़ाई को इसी लिए बहुत ताकत भी नहीं मिल रही है। जमीन तो कांग्रेस की ही तैयार की हुई है। ऐसे में समाजवादियों और वामपंथियों से ही सड़क पर उतर कर संघर्ष करने की अपेक्षा है। किसानों का सवाल आज उठा भी और ताकत से उठा। केंद्र की कृषि नीतियों के खिलाफ कई प्रदेशों में हलचल शुरू हो चुकी है। समाजवादियों की इस पहल से किसानों के आंदोलन को भी ताकत मिलेगी। पर इस सबसे ज्यादा बड़ा मुद्दा फिलहाल मजहबी गोलबंदी का है जिसके लिए संघ के सारे फ्रंटल संगठन सामने आ चुके हैं। भागवत ने तो काम शुरू कर दिया है। इस लिहाज से समाजवादियों का यह अभियान महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। बाकी आलोचना के लिए इसे बूढ़ों का क्लब कह देने से काम नहीं चलेगा, मोदी भी आम लोगों की रिटायरर्मेंट की उम्र के बाद प्रधानमंत्री बने है और आडवाणी, जोशी की उम्र का मुद्दा कोई उठा भी नहीं रहा। साथ यह भी कि राजनीति में कभी कुछ स्थिर नहीं होता है, यह जरूर ध्यान रखना चाहिए।
O- अंबरीश कुमार
जनादेश
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