पद्मावती कंट्रोवर्सरी का अर्थशास्त्र, मोदीराज में उभरे बेहिसाब मुस्लिम विद्वेष को ध्यान में रखकर विकसित किया गया
पद्मावती कंट्रोवर्सरी का अर्थशास्त्र, मोदीराज में उभरे बेहिसाब मुस्लिम विद्वेष को ध्यान में रखकर विकसित किया गया

संजय लीला भंसाली (Sanjay Leela Bhansali) की रिलीज के लिए तैयार पद्मावती (Padmawati) को लेकर एक पखवाड़े पहले शुरू हुआ विरोध अब तुंग की और अग्रसर है. शायद ही कोई ऐसा चैनल या अखबार हो जो इसके लिए भरपूर स्पेस न दे रहा हो. वैसे तो असंख्य ऐसी फिल्मे हैं जिन्हें लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ, किन्तु इस मामले में यह फिल्म एक रिकॉर्ड स्थापित करती जा रही है. कोई भी चैनल खोलिए भंसाली के पुतले फूंकते और इसे लेकर उतप्त बयांन जारी करते गुस्सैल चेहरे दिख जा रहे हैं. तकनीकी कारणों से सेंसर बोर्ड में इसकी स्क्रीनिंग टल जाने और सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष द्वारा इसकी प्राइवेट स्क्रीनिंग के विरुद्ध असंतोष जाहिर किये जाने से इस फिल्म का प्रदर्शन रुकवाने पर आमादा लोगों का हौसला और बढ़ गया है. इसके खिलाफ हो रहे उग्र विरोध प्रदर्शनों को मीडिया में भारी स्पेस मिलने से जो फिल्मों में कोई रूचि नहीं रखते वे भी इसे लेकर उत्सुक हो चुके हैं. बहरहाल जो लोग फिल्मों में रूचि रखते हैं वे पद्मावती पर बनी फिल्मों का बॉक्स ऑफिस पर कारुणिक हस्र देखते हुए भंसाली द्वारा विपुलतम बजट में इसी विषय पर फिल्म बनाने निर्णय से जरुर विस्मित होंगे.
पद्मावती कंट्रोवर्सरी का अर्थशास्त्र !
इस विषय पर पहली बार 1963 में तमिल में फिल्म बनी, जिसमे राजा राजरतन सिंह की भूमिका में थे उस ज़माने के सुपर स्टार शिवाजी गणेशन और पद्मावती बनी थी अपार सौन्दर्य की स्वामिनी व् नृत्यांगना वैजयंती माला. उसके अगले ही साल हिंदी में इसी विषय पर एक फिल्म आई, जिसमें पद्मावती बनीं थीं हिंदी की भक्ति फिल्मों की चैम्पियन नायिका अनीता गुहा. किन्तु बड़े सितारों से लैस होने के बावजूद दोनों फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर रंग ज़माने में व्यर्थ रहीं. बहरहाल एक फ्लॉप विषय पर भंसाली ने जो करोड़ों का जुआ खेला है, इस गुत्थी को सुलझाने के लिए इस फिल्मकार के अतीत में झांकना पड़ेगा.
भंसाली फिल्म पेशे से जुड़े एक गुजराती माता-पिता की संतान हैं. फ़िल्मी परिवार में जन्मे भंसाली विधु विनोद चोपड़ा के असिस्टेंट के रूप फिल्म करियर शुरू करने बाद, 1996 में स्वतंत्र निर्देशक के रूप में लेकर आये ‘ख़ामोशी’, जिसे फिल्म फेयर क्रिटिक्स अवार्ड मिला. लेकिन बॉक्स ऑफिस धमाल मचाया ‘हम दिल दे चुके सनम’ ने. 1999 में आई इस फिल्म की बम्पर सफलता ने इंडस्ट्री में उनके कदम मजबूती से जमा दिए. उसके बाद एक-एक करके देवदास, ब्लैक, गोलियों की रासलीला: रामलीला, बाजीराव मस्तानी जैसी सफल फ़िल्में उनके नाम के साथ जुड़ती गईं. इन सबके लिए उन्हें 4 नॅशनल, 10 फिल्म फेयर अवार्ड के साथ पद्मश्री का खिताब भी मिल गया. देखते ही देखते नयी सदी में बॉलीवुड की शक्ल बदलने वाले सूरज बड़जात्या, आदित्य चोपड़ा और करण जोहर जैसे सफल फिल्मकारों के बीच भंसाली का भी स्थान पक्का हो गया.
लेकिन सफलतम निर्माता, डायरेक्टर, स्क्रिप्ट राइटर, म्यूजिक डायरेक्टर भंसाली बड़जात्या, चोपड़ा, जौहर ही नहीं अन्य स्थापित मुम्बईया फिल्मकारों के मुकाबले बीस ही नहीं इक्कीस भी होकर कोई मौलिक छाप नहीं छोड़ पाए. इनकी एक से एक बम्पर हिट फिल्मों में यदि कोई नवीनता ढूंढेंगा तो उसे निराशा के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा.उन्होंने सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर सफलता की गारंटी माने जाने वाले सुरक्षित विषयों पर ही हाथ आजमाया, विशेषकर पुरानी हिट फिल्मों को भव्यतम रूप से रीमेक करके चांदी लूटा. लेकिन आजमाई हुई फिल्मों पर दांव खेलने के साथ उन्होंने अपनी फिल्मों को विवादित बनाने पर खास ध्यान दिया जिसके लिए ‘देवदास’ ने उन्हें खासतौर से प्रेरित किया. यह फिल्म जितनी गीत, संगीत, अभिनय और भव्यता के लिए सुर्खियाँ बटोरी, उससे कहीं ज्यादा वेश्यायों के घर की मिट्टी को दुर्गा प्रतिमा निर्माण के लिए जरुरी दिखा कर बटोरी. मैं अपनी लगभग पचास वर्ष की उम्र बिताकर 1995 में बंगाल छोड़ा, किन्तु 2004में ही भंसाली की देवदास के जरिये जाना कि दुर्गा देवी की प्रतिमा निर्माण का शुभारम्भ वेश्या बाड़ी की मिट्टी से होता है. कंट्रोवर्सिरी के जरिये देवदास में सफलता बड़ा स्वाद चखने के बाद व्यवसायी बुद्धि के लिए विख्यात गुजराती समाज के सपनों के इस सौदागर ने 2013 में गोलियों की रासलीला : रामलीला और 2015 में रिलीज बाजीराव मस्तानी में कंट्रोवर्सरी का जबरदस्त तड़का लगाया. 2017 की तरह 2013 और 2015 में भावना के आघात से जर्जरित लोगों इनके पुतले फूंके. लेकिन पुतले फूंकने से बॉक्स ऑफिस पर गर्मी आती है, इसका हिसाब लगाकर ही इस गुजराती नंदन ने कंट्रोवर्सरी के जरिये दौलत कमाने की और बड़ी परिकल्पना अपनी नयी पद्मावती के जरिये किया.
कल्पनाशील भंसाली को यह कल्पना करने में कोई चूक नहीं हुई कि मुस्लिम विद्वेष के एक्सट्रीम दौर में भारतीय इतिहास के किसी विवादित मुस्लिम शासक को खलनायक बनाकर फिल्म तैयार की जाय तो बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचना तय है. इसके लिए उन्हें अल्लाउद्दीन खिलजी से बेहतर चरित्र मिल ही कहाँ सकता था. लिहाजा उन्होंने अपनी पिछली दो फिल्मों हीरो उस रणवीर सिंह, जिनकी पद्वति बनी दीपिका के साथ रोमांस के चर्चे काफी मशहूर हो चुके हैं, को खौफनाक अंदाज में पेश की परिकल्पना किया और बड़ी चालांकी से फिल्म की रिलीज के महिना भर पहले उसी खौफनाक रूप वाले पोस्टर को जारी भी कर दिया. खिलजी बने रणवीर सिंह का वही खौफनाक रूप और व्यक्तिगत जीवन में उनकी प्रेमिका के रूप में पद्मावती बनी दीपिका की छवि ने मानसिंह और राणा प्रताप के भाइयों –बहनों के स्वाभिमान को ललकार दिया है. और अब वे पद्मावती की सम्मान रक्षा के लिए शौर्य प्रदर्शन पर आमादा हो गए हैं. लेकिन भंसाली को पता है यह राजपूती जोश शीघ्र ही सोडा वाटरी जोश में तब्दील हो जायेगा, लेकिन दर्शकों के इस फिल्म के प्रति कौतुहल का अंत नहीं होगा और इसका इच्छित परिणाम बॉक्स ऑफिस पर मिलेगा. तो सच्चाई यह है पद्मावती कंट्रोवर्सरी का अर्थशास्त्र, मोदीराज में उभरे बेहिसाब मुस्लिम विद्वेष को ध्यान में रखकर विकसित किया गया है.
पिछले कुछ सालों से स्थापित फिल्मकारों की फ़िल्में फ्लोर पर जाने से पहले ही उनकी रिलीज की तारीख घोषित हो जाती है. भंसाली को पता था यह पता था कि 2017 की सर्दियों में उनके गृह राज गुजरात में चुनाव होगा, जहाँ गोधरा के बाद उस दल विशेष का अप्रतिरोध्य शासन कायम हो गया है जो हिन्दू धर्म-संस्कृति का ठेकेदार है. देश भर के चप्पे-चप्पे पर फैले ये ठेकेदार मलिक मोहम्मद जायसी की कलम की नोक से पैदा हुई अप्रतिम सौन्दर्य की स्वामिनी व राजपूत गौरव की प्रतीक पद्मावती की सम्मान रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक चले जायेंगे. फिलहाल सबकुछ गुजराती संजय लीला भंसाली की हिसाब से चल रहा है. इस फिल्म को बिना एक पैसा खर्च किये पचासों करोड़ की जो पब्लिसिटी मिली है, उससे उम्मीद करना चाहिए कि फिल्मों में गुजराती गौरव का प्रतीक बन चुके भंसाली बड़ी आसानी से बॉक्स ऑफिस कोई नया कीर्तिमान स्थापित कर लेंगे.


