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भारत-अमेरिका परमाणु करार पर सवाल
अमेरिकी कम्पनियों से मिलेगी काफी मंहगी बिजली
नई दिल्ली/लखनऊ। परमाणु जवाबदेही मुद्दे पर अमेरिकी कम्पनियों को राहत देने की खबरों पर बिजली इन्जीनियरों ने  केन्द्र सरकार से पुनर्विचार करने की मांग करते हुए कहा है कि परमाणु बिजली उत्पादन के लिए अमेरिकी कम्पनियों से काफी मंहगे रियेक्टर खरीदना किसी भी प्रकार जनहित में नहीं है, क्योंकि इससे काफी मंहगी बिजली मिलेगी।
       आल इण्डिया पावर इन्जीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे और उप्रराविप अभियन्ता संघ के महासचिव डी सी दीक्षित ने एक बयान में कहा कि अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक और वेस्टिंग हाउस कम्पनियां भारत के परमाणु दायित्व कानून की धारा 17 में बदलाव के लिए विगत सात साल से प्रयत्नशील थीं। धारा 17 के अनुसार रियेक्टरों में खराबी अथवा दुर्घटना के कारण होने वाली क्षति की सारी जिम्मेदारी सप्लायर कम्पनियों की होगी। अब कम्पनियों को इस दायित्व से मुक्त कर दिया जायेगा और यह जिम्मेदारी भारत सरकार व भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कम्पनियाँ उठायेंगी।
अभियन्ता पदाधिकारियों ने कहा कि इससे अमेरिकी कम्पनियों से परमाणु बिजली घरों को रियेक्टर मिलने का रास्ता साफ हो जायेगा किन्तु भारत व अन्य देशों की तुलना में अमेरिकी कम्पनियों के रियेक्टर काफी मंहगे होने के कारण इनसे काफी मंहगी बिजली मिलेगी। ध्यान रहे कि अमेरिका भी जनरल इलेक्ट्रिक और वेस्टिंग हाउस कम्पनियों के रियेक्टरों पर एक मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए 25 से 30 करोड़ रूपये का खर्च जायेगा जो भारत व कुछ अन्य देशों के 7 करोड़ रूपये प्रति मेगावाट की तुलना में चार गुना ज्यादा है। अतः केन्द्र सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इतनी मंहगी बिजली का खरीददार कौन होगा और क्या मंहगी बिजली का बोझ टैरिफ बढ़ाकर अन्ततः आम जनता पर नहीं डाला जायेगा? वेस्टिंग हाउस कम्पनी गुजरात के मिठीवर्दी में 1000-1000 मेगवाट के 6 रियेक्टर और जनरल इलेक्ट्रिक कम्पनी आन्ध्रप्रदेश में इतनी

ही क्षमता के बिजली घर लगाना चाहती है।
परमाणु दायित्व कानून में रियायत पर बिजली अभियन्ताओं ने सवाल किया कि भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों के जरिये अमेरिकी कम्पनियों को बीमा कम्पनियों से वाणिज्यिक दरों पर बीमा हासिल करना चाहिए किन्तु ऐसा न कर भारतीय कम्पनियों पर भार लादना गलत है। उन्होंने कहा कि वेसे भी परमाणु बिजली घर सुरक्षित नहीं है। चेर्नोबिल और फुकुशिमा में दुर्घटना के बाद दुनिया के बड़े देश फ्रान्स, जर्मनी और जापान ने परमाणु बिजली घर बन्द करने का फैसला ले लिया है जबकि अमेरिका में 1986 के बाद कोई परमाणु बिजली घर नहीं लगा ऐसे में असुरक्षित और अत्यधिक मंहगी बिजली का रास्ता किसी भी प्रकार आम जनता के हित में नहीं है।
उन्होंने कहा कि परमाणु बिजली संयंत्रों से पैदा होने वाला भयानक जहरीला रेडियोर्धनी कचरा परमाणु उद्योग का सबसे बड़ा सरदर्द है। इस कचरे को प्लूटोनियम से अलग करते समय बेहद सावधानी की जरूरत तो होती ही है साथ ही हजारों साल तक उसके सुरक्षित भंडारण का इंतजाम भी करना होता है। अतः बेहतर विकल्प सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और ऊर्जा संरक्षण है जिसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

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