बंगाल सरकार के शहरीकरण नई नीति ऐलान में प्रोमोटर राज निरंकुश, पीपीपी गुजरात मॉडल के लिए यह पहल बेदखली के लिए
सिंगुर आंदोलन की वजह से नैनो कारखाना गुजरात स्थानांतरित करने के बाद बंगाल में फिर रतन टाटा की वापसी के मौके पर फिर नया विवाद
एक्सकैलिबर स्टीवेंस
सिंगुर की अधिग्रहित जमीन अभी टाटा मोटर्स ने नहीं छोड़ी है और बार-बार वे दोहराते रहे हैं कि बंगाल में निवेश करना और सिंगुर में प्रोजेक्ट चालू करना उनका मकसद है। बंगाल में मां माटी मानुष सरकार की ओर से नये शहरीकरण नीति के तहत पुराने मकान तोड़कर नये निर्माण पर सौ फीसद छूट के अलावा ग्रीन आवासीय परिसरों के लिए भी टैक्स में छूट का ऐलान किया गया है। वामपक्ष के मुताबिक यह निरंकुश प्रोमोटर राज का प्रारंभ है। जबकि बंगाल के शहरीकरण मंत्री का दावा है कि नई शहरीकर नीति के नतीजतन गुंडाराज और सिंडिकेटराज खत्म होगा। गौरतलब है कि बंगाल में शहरी इलाकों में वाम अवाम निरपेक्ष गुंडाराज और सिंडिकेटराज शहरी संस्कृति है सत्ता की।

दरअसल यह शहरीकरण नई नीति कुछ और नहीं है। यह नंदीग्राम सिंगुर मोड से निकलने की मां माटी मानुष सरकार की जान बचाओ कवायद है। इस सिलसिले में जनवरी में ही बिजनेस स्टैंडर्ड में एक रपट छप चुकी थी, जो इस आलेख के साथ नत्थी भी है। भूमि अधिग्रहण का विरोध मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भारी मजबूरी है क्योंकि सिंगुर नंदीग्राम भूमि आंदोलन बजरिये दीदी का ताजा यह स्टेटस है। लेकिन तीन साल बीत गये और जिन बाजारी तत्वों ने वाम अवसान के जरिये दीदी को सत्ता में पहुंचाया है, उनके सब्र का बांध टूटने लगा है। बंगाल में केसरिया प्रलय के मखोमुखी हैं दीदी और जो पूंजी अब तक दीदी से उम्माद करी रही थी, उसे नरेंद्र मोदी के स्थायित्व में दांव लगाना माफिक नजर आ रहा है।

बंगाल में औद्योगीकरण और कारोबार की बदहाली के आलम में कोई बदलाव लेकिन इन तीन सालों में आया नहीं है। निवेशकों के यक्ष प्रश्न जमीन अधिग्रहण पर फोकस है। पीपीपी गुजराती माडल भी राज्य सरकार की धूम अधिग्रहण नीति के कारण भी बेमतलब है क्योंकि बिना जमीन निवेश के लिए देशी विदेशी कंपनियां कतई तैयार नहीं हैं। जिन्होंने निवेश किया वे मैदान छोड़कर भागने लगे हैं और बाकी लोग श्रमिक अशांति का माहौर बनाकर एक के बाद एक इकाइयां बंद करते जा रहे हैं। इंतजार की इंतहा हो गयी और विधानसभा चुनावों की भारी चुनौती है।

बाजार को खुश करने केलिए दीदी ने बिना भूमि अधिग्रहण नीति में तब्दील किये शहरीकरण नई नीति के जरिये सांप मारने की कोशिश की है।

दरअसल वाम जनमाने में और बाकी देश में भी कांग्रेस भाजपा और दूसरी सरकारों के नवउदारवादी जमाने में औद्योगीकरण कहीं हुआ नहीं है। औद्योगीकरण के नाम पर, विकास के नाम पर उत्पादन प्रणाली को ध्वस्त करने वाली शहरीकरण सुनामी है, जिसके आधारस्तंभ हैं सेज, महासेज, स्वर्णिम चतुर्भुज, औद्योगिक गलियारा, स्मार्ट सिटी, एक्सप्रेसवे, बुलेट ट्रेन, बुलेट हीरक चतुर्भुज जो दरहकीकत शहर बसाने के लिए देहात भारत के साथ साथ, जल जंगल जमीन आजीविका के साथ साथ शहरी गरीबों के साथ-साथ मध्यवर्ग और उच्चमध्यवर्ग के सफाये जरिये अरबपति तबके का कार्निवाल है और दरअसल गुजराती पीपीपी विकास माडल है।

दीदी नये शहरीकरण नीति के मारफत दरअसल गुजराती पीपीपी माडल की बुलेट ट्रेन का ट्रैक ही बढ़ा रही हैं बंगाल में। वे शांतिनिकेतन को भी स्मार्ट शहर बनाना चाहतीं हैं और नया कोलकाता और कल्याणी समेत दस स्मार्ट सिटी के लिए केंद्र सरकार के साथ उनकी सौदेबाजी है।

वैसे भी महानगरों और उपनगरों की क्या कहें, बाकी शहरों में भी पुश्तैनी मकान अब सारे के सारे बेदखल हो रहे हैं और वहां प्रोमोटरों की बहुमंजिली इमारतें बन रही हैं।

मां माटी मानुष सरकार की नई शहरीकरण नीति के तहत पुराने मकानों को संकटग्रस्त साबित करके गिराने के बाद वहां नये निर्माण पर शत प्रतिशत टैक्स छूट है। ग्रीन हाउसिंग नई इंफ्रा कंपनियों का फंडा है पर्यावरण के सत्यानाश के लिए। अब इस शहरीकरण नीति के तहत आवासीय परिसर में झीलें ,स्वीमिंग पुल इत्यादि डालते ही प्रामोटरों को टैक्स,रजिस्ट्रेशन फीस और म्युटेशन में भी भारी छूट मिलने वाली है।

शापिंग माल,निजी अस्पताल,नालेज इकोनामी के लिए भी इफरात छूट का ऐलान है। इसके अलावा रेलवे और मेट्रो लाइनों के आसपास निर्माण की शर्तों में भी ढील दी गयी है।

कृपया इसी आलोक में टाटा बंगाल विवाद का मजा लें।
प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा ने अपने बारे में की गई पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्रा की टिप्पणियों पर पलटवार करते हुए कहा कि उनका गुस्सा गैरजरूरी है। राज्य में औद्योगीकरण की कमी के बारे में रतन टाटा की टिप्पणी पर मित्रा ने आज सुबह कहा था कि लगता है कि टाटा 'भ्रांतिग्रस्त' हो गए हैं।

टाटा ने कहा कि उन्होंने पश्चिम बंगाल में औद्योगिक विकास के बारे में कभी बात नहीं की, बल्कि हवाई अड्डे से राजरहाट होकर शहर में आने की अपनी यात्रा के दौरान जो कुछ देखा उसके आधार पर ही कल कुछ टिप्पणियां की थीं।

टाटा ने ट्विटर पर लिखा, 'कल की मेरी टिप्पणियां हवाई अड्डे से राजरहाट होकर मौर्या तक की यात्रा से जुड़ी थीं। मैंने बहुत सा आवासीय व वाणिज्यिक विकास देखा, लेकिन मुझे औद्योगिक विकास नजर नहीं आया।' उन्होंने कहा, 'मैंने राज्य के औद्योगिक विकास के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की। इसलिए मित्रा की टिप्पणियां हैरान करने वाली हैं।'

मित्रा की टिप्पणियों पर नाराजगी दिखाते हुए टाटा ने कहा 'मित्रा को शायद लगता है कि 'मेरा दिमाग गड़बड़ा गया है'। मुझे खुशी होगी अगर वे मुझे बता सकें कि राजरहाट से गुजरते हुए मैं किस औद्योगिक गतिविधि को नहीं देख सका। अगर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो मुझे यही निष्कर्ष निकालना पड़ेगा कि वे बहुत कल्पनाशील हैं।'

इससे पहले भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा यहां आयोजित एक कार्यक्रम में मित्रा ने कहा, 'टाटा अब बूढ़े हो चुके हैं और भ्रम से ग्रस्त हो गए हैं। मै नहीं जानता कि वह जो कुछ हो रहा है उसे क्यों नहीं समझ पा रहे।' वहीं टाटा संस के मानद अध्यक्ष रतन टाटा ने कल टिप्पणी की थी, 'पश्चिम बंगाल में औद्योगिक विकास के कोई संकेत नहीं नजर आ रहे हैं।' टाटा ने यह टिप्पणी इंडियन चैंबर ऑफ कामर्स के महिला अध्ययन समूह की बैठक में की थी।
14 जनवरी को बिजनेस स्टैंडर्ट की यह खबर पढ़ें तो बंगाल में शहरीकरण नीति की पृष्ठभूमि साफ नजर आयेगीः


भूमि आवंटन के लिए नीलामी की प्रक्रिया से रियल एस्टेट कारोबारियों को मदद न मिलने और नए विकास कार्यों के लिए जमीन की भारी कमी को देखते हुए पश्चिम बंगाल सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए नई नीति लाने की तैयारी में है। यह नीति उस जमीन के लिए लागू होगी, जिसका मालिकाना निजी भूमि मालिकों या समूह के स्वामित्व में होगा।

बहरहाल सूत्रों ने बताया कि सरकार शहरी भूमि सीलिंग ऐक्ट को खत्म करने पर विचार नहीं कर रही है, जिससे डेवलपरों को निराशा हो सकती है। यह रियल एस्टेट कारोबारियोंं की ओर से एक प्रमुख मांग है। राज्य के लिए नई शहरीकरण नीति तैयार करने के लिए गठित कार्यबल को की गई सिफारिशों में रियल एस्टेट कारोबारियों ने हाउसिंग परियोजनाओं में 25 प्रतिशत एलआईजी फ्लैट सुरक्षित रखने के मामलों में शहरी भूमि सीलिंग ऐक्ट खत्म किए जाने की मांग की थी।

हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार ने सरकारी जमीन के लिए नई भूमि नीति पेश की थी। इसके मुताबिक सरकारी जमीन के वाणिज्यिक इस्तेमाल के आवंटन में नीलामी की प्रक्रिया अपनाई जानी है, जबकि पहले इसके लिए टेंडर की प्रक्रिया अपनाई जाती थी। इस नीति के तहत कम आय वर्ग (एलआईजी) या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए बनाए जाने वाले मकान की जमीन को बीली की प्रक्रिया से बाहर रखा गया है।

बहरहाल रियल एस्टेट कारोबारियोंं को इससे ज्यादा लाभ नहीं हुआ। डेवलपरों का कहना है कि एक तरफ जहां सरकार रियल एस्टेट क्षेत्र के विकास के लिए ज्यादा जमीन देना चाहती है, जबकि उसके पास जमीन कम है, वहींं दूसरी ओर बोली की प्रक्रिया से भूमि की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी। कॉनफेडरेशन आफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (क्रेडाई) के पूर्व अध्यक्ष और शहर के रियल एस्टेट कारोबारी संतोष रुंगटा ने कहा, 'हाउसिंग क्षेत्र की मांग पूरी करने के लिए सरकार के मालिकाना वाली पर्याप्त भूमि नहीं है। ऐसे में नई भूमि नीति डेवलपरों के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि नई शहरीकरण नीति में इस समस्या का समाधान होगा। हमने इस सिलसिले में पहले ही अपनी मांग रख दी है।Ó

पश्चिम बंगाल में नए टाउनशिप के विकास में सबसे बड़ी समस्या शहरी भूमि (सीलिंग एवं नियमन) अधिनियम (यूएलसीए) 1976 है। इस अधिनियम के मुताबिक कोलकाता जैसे ए श्रेणी के शहरों में खाली भूमि की सीलिंग सीमा 7.5 कट्ठा या करीब 500 वर्गमीटर है। पश्चिम बंगाल देश के उन कुछ राज्यों में शामिल है, जहां यूएलसीए जैसा कानून है।

यूएलसीए को हटाने की मांग पहली बार गोदरेज प्रॉपर्टीज के चेयरमैन आदि गोदरेज ने उठाई थी, जब मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ममता बनर्जी कारोबारियों से मिली थीं। सुरेका समूह के प्रबंध निदेशक प्रदीप सुरेका ने कहा, 'पश्चिम बंगाल में भूमि संबंधी मसलों को हल करने में नई भूमि नीति समस्याओं का समाधान नहीं कर सकी। हम आने वाली शहरीकरण नीति को लेकर आशान्वित हैं।Ó
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