पश्चिम में ऐसी मजहबी गोलबंदी पहली बार
पश्चिम में ऐसी मजहबी गोलबंदी पहली बार
अंबरीश कुमार
बागपत। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाल के सालों में पहली बार ऐसी मजहबी गोलबंदी में लोकसभा चुनाव होने जा रहा है कि इस अंचल के सबसे बड़े दिग्गज अजित सिंह भी कांटे के मुकाबले में फंसे नजर आ रहे हैं। वे लगातार सभाएं करते रहे और साथ ही जयंत भी जीजान से जुटे। बावजूद इसके शहरी जाट का मन बदला नहीं था। पर अंतिम समय में अजित सिंह ने जाट बिरादरी के सामने प्रतिष्ठा का सवाल उठाया है जिससे समीकरण कुछ बदल जाए। यह सब हुआ मुजफ्फरनगर के दंगों की वजह से जिसने जाट और मुसलमान को बाँट दिया है। दंगों की फसल जिन कट्टरपंथियों ने रोपी थी अब वे फसल काटने जा रहे हैं। भाजपा अपनी रणनीति में सफल रही है। कुछ कसर बाकी थी तो अंत में अमित शाह को आगे कर उसे भी पूरा कर दिया गया। इस मजहबी गोलबंदी में भाजपा सभी जगह मुकाबले में आ गई है और सहारनपुर मंडल में वह अप्रत्याशित फायदा भी ले सकती है। यह फायदा बहुजन समाज पार्टी की कीमत पर होगा। भाजपा बढ़ी तो ज्यादा बड़ा नुकसान बसपा का होगा उसके बाद लोकदल कांग्रेस गठबंधन का नंबर है। सपा को न पहले कोई उम्मीद इस अंचल से थी और न अब है। तिकोने मुकाबले में एक दो सीट आ गई तो वह राजनैतिक बोनस होगा। इस अंचल में जाट भी नाराज है तो मुस्लिम भी। खुश है तो राष्ट्रवादी ताकते जिन्होंने इस अंचल के सामाजिक ताने बाने को तोड़ दिया। खेत से उद्योग तक के साझा रिश्ते को तोड़ दिया। चुनाव तो भाजपा भले जीत जाए पर इस अंचल की साझी विरासत वाली जनता हार चुकी है। जो समाज बंट गया है उसे जुड़ने में समय लगेगा।
पश्चिम में उन सभी सीटों पर मजहबी गोलबंदी नजर आ रही है जहाँ जाट और मुस्लिम समाज आसपास है। अब टकराव दोनों तरफ से है और भड़काने का कोई मौका कोई दल नहीं छोड़ रहा है। कल मेरठ, बागपत, बुलंदशहर, अलीगढ़, सहारनपुर समेत जिन दस सीटों पर मतदान होगा वह सभी ध्रुवीकरण वाली सीटे हैं और इसके बाद सत्रह को जिन ग्यारह सीटों पर चुनाव होने जा रहा है वहां भी यही हाल है। ज्यादातर सीटें मुस्लिम बहुल हैं और मजहबी गोलबंदी की राजनीति के लिहाज से काफी संवेदनशील मानी जाती हैं मसलन नगीना, मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा और बरेली आदि। कल जिन सीटों के लिए चुनाव होने जा रहा है उनके वोटों के रुझान पर किसी मोदी नहीं बल्कि दंगों का होगा। मुजफ्फरनगर के दंगों की पृष्ठिभूमि में ही वोट पड़ने जा रहा है। जाट बिरादरी का बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ आ चुका है। यह दंगों की वजह से हुआ और भाजपा ने इस अंचल में इस सबके लिए काफी परिश्रम भी किया है। अल्पसंख्यक वोट बसपा के साथ लामबंद है पर बंटेगा भी। बुखारी आदि की अपील का कोई असर इस अंचल के मुसलमानों पर नहीं है। पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जिन सीटों पर मजबूत है वहां मुस्लिम वोट बंट सकता है। इसी वजह से बसपा के ज्यादा नुकसान की आशंका जताई जा रही है। मुजफ्फरनगर के शिक्षक संजीव चौधरी ने कहा-भाजपा को दो से तीन सीट का फायदा इस तरफ हो सकता है क्योंकि जाट मतदाता उसके साथ है जो अब तक लोकदल के साथ होते थे। ऐसे में भाजपा की ताकत बढ़ गई है जबकि वोटों के बंटवारे की वजह से बसपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
गौरतलब है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा, भाजपा और लोकदल का ही ज्यादा असर रहा है। पर दंगों के बाद जाट बिरादरी अजित सिंह से नाराज हो गई और भाजपा का खुला समर्थन कर दिया। जाट नौजवानों के नए नायक नरेंद्र मोदी हो गए है। जाट आरक्षण के जरिए अजित सिंह ने इसकी भरपाई करने की कोशिश की है पर इसका भी ज्यादा असर नहीं हुआ। लोकदल का जाट जनाधार अगर खिसका तो भाजपा बड़ी ताकत के रूप में उभरेगी। पर कुछ लोग भविष्य को लेकर आशंकित है। राजनैतिक टीकाकार वीरेन्द्र नाथ भट्ट ने कहा-मामला सिर्फ पश्चिम तक सीमित रहने वाला नहीं है बल्कि इस चरण के बाद लड़ाई उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल तक फैलेगी। कानपुर में एक धार्मिक जुलूस से इसकी शुरुआत हो गई है। इसलिए ज्यादा बड़ा खतरा अब अंतिम चरण का है जब मोदी भी मैदान में होंगे और मुलायम भी।
जनादेश न्यूज़ नेटवर्क


