जाति उन्मूलन आन्दोलन का द्वितीय
अखिल भारत सम्मेलन लखनऊ में सफलतापूर्वक सम्पन्न
लखनऊ। भाकपा(माले) के महासचिव कामरेड के.एन. रामचन्द्रन ने कहा है कि जाति उन्मूलन आन्दोलन एक महत्वपूर्ण शुरूआत है, क्योंकि आज साम्राज्यवादी भूमण्डलीकरण के दौर में जातिवादी दमन ने ज्यादा घृणित और बर्बर रूप ले लिया है। आज साम्राज्यवाद द्वारा धर्म के समान ही जाति को भी जनता के बीच फूट डालने और अपनी साम्राज्यवादी लूट को तेज करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इसलिए, प्रगतिशील और जनवादी ताकतों को चाहिए कि वे जाति उन्मूलन आन्दोलन को जाति-विहीन समाज निर्माण की दिशा में आगे बढ़ाएं।

रामचन्द्रन बीते दिनों जाति उन्मूलन आन्दोलन के द्वितीय अखिल भारत सम्मेलन का उद्घाटन करते हुये अपने विचार रख रहे थे। जाति प्रथा के खत्म करने के लिये हुये संघर्षों में अपने प्राणों की आहुति देने वाले तमाम शहीदों की याद में दो मिनट का मौन रखकर सम्मेलन की शुरूआत हुयी।

स्वागत समिति के संयोजक कामरेड बृजबिहारी ने सभी अतिथियों एवं प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुये कहा कि जहाँ उत्तर प्रदेश ब्राह्मणवाद का गढ़ है, वहीं यह जाति प्रथा के खिलाफ प्रतिरोध संघर्षों की भी मजबूत जमीन रहा है। भक्ति आन्दोलन के समय संस्कृति के क्षेत्र में जाति प्रथा पर जोरदार प्रहार हुआ था। पेरियार ने लखनऊ में विशाल जाति-विरोधी सम्मेलन में शिरकत की थी। लेकिन आगे चलकर ‘‘पहचान की राजनीति’’ ने आन्दोलन की दिशा मोड़ दी। बसपा के विचलन के बावजूद कई सारे संगठन जाति प्रथा के खिलाफ लड़ रहे हैं।

सम्मेलन के प्रतिनिधि सत्र में जे.पी. नरेला ने जाति उन्मूलन आन्दोलन के पिछले एक वर्ष के ‘‘कार्यों की रिपोर्ट और समीक्षा’’ पेश की, जिसे चर्चा के बाद स्वीकार कर लिया गया। इसके पश्चात उमाकान्त ने ‘‘वर्तमान परिस्थिति और फौरी कार्यभार’’ पर प्रस्ताव पेश किया। इस पर चर्चा के दौरान कुछ सुझाव रखे गये, जिसे स्वीकार करते हुये इस दस्तावेज को स्वीकार कर लिया गया।

उद्घाटन सत्र को अन्तर्राष्ट्रीय नेपाली एकता समाज के मित्रलाल शर्मा, जाति तोड़क मंडल के कामरेड सुरेश पंजम, अर्जक संघ के प्रदेश अध्यक्ष कन्हैया लाल कनौजिया, ओ.पी. सिन्हा, लता राय, बाबूराम शर्मा एवं अन्य साथियों ने सम्बोधित किया ।

सम्मेलन में अखिल भारत समन्वय परिषद की नई कमेटी का चुनाव किया गया। इस कमेटी में 16 साथी चुने गए हैं जिसके संयोजक जे.पी. नरेला को चुना गया। साथ ही पांच सदस्यीय केन्द्रीय कार्यदल का चुनाव भी किया गया, जिसमें जे.पी. नरेला, उमाकान्त, अरूण मांझी, दिगम्बर एवं ठाकुर खनाल शामिल हैं। ‘‘जाति उन्मूलन’’ पत्रिका के सम्पादक मण्डल में जे.पी. नरेला, अरूण मांझी, उमाकान्त एवं बुद्धेश मणी को चुना गया।

सम्मेलन में तीन प्रस्ताव पारित किए गए, जो इस प्रकार हैं: 1) देश भर में दलितों पर अत्याचार की घटनाओं की निन्दा करते हुये इसके विरूद्ध आन्दोलन तेज करने का प्रण लेते हुये प्रस्ताव, 2) साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा मुजफ्फरनगर में अब तक एक साथ मिलकर रहते आये लोगों के बीच दंगा करवाने और प्रदेश सरकार द्वारा इसे रोकने का प्रयास न कर इसे हवा देने की कार्यवाही की निन्दा करते हुये, तथा 3) जनता से यह अपील करते हुये प्रस्ताव कि वे ऐसी किसी पार्टी को वोट न दें जिनके घोषणापत्र में जाति उन्मूलन का मुद्दा शामिल नहीं है।

24 सितम्बर को लखनऊ के आस-पास के जिलों से आये सैकड़ों लोगों ने विधान सभा के सामने प्रदर्शन किया तथा जन सभा आयोजित की गयी। सम्मेलन के संयोजक जेपी नरेला ने बताया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हाल में हुयी साम्प्रदायिक हिन्सा के नाम पर धारा 144 लगा रखा गया था और लखनऊ जिला प्रशासन द्वारा रैली एवं जन सभा की अनुमति नहीं दी गयी थी। इसलिए लखनऊ में सांस्कृतिक टोली के जरिए एक सप्ताह का जो प्रचार अभियान चलाने की योजना थी, उसे टालना पड़ा था। साथ ही 24 सितम्बर को करीब 3000 लोगों की रैली की तैयारी की गयी थी, वह भी नहीं हो सकी। फिर भी जाति उन्मूलन आन्दोलन के सम्मेलन के लिये समूचे अवध क्षेत्र में एवं राज्य में पोस्टर एवं पर्चा के जरिए व्यापक प्रचार अभियान चलाया गया और 24 सितम्बर के प्रदर्शन में करीब 500 लोगों ने हिस्सा लिया।

जनसभा को भाकपा(माले) के महासचिव कामरेड के.एन. रामचन्द्रन, उत्तर प्रदेश राज्य सचिव कामरेड बृजबिहारी, जनवादी अधिकार मंच के राष्ट्रीय संयोजक सी.बी. सिंह, न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के कामरेड विशम्भर पटेल, मूल प्रवाह अखिल भारत नेपाली एकता समाज के कामरेड मित्रलाल एवं ठाकुर खनाल ने सम्बोधित किया तथा जाति प्रथा के खिलाफ आन्दोलन तेज करने का आह्वान किया।