शेष नारायण सिंह
1989 में जब मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी और महबूबा मुफ्ती की बहन रुबैय्या सईदका अपहरण हुआ तो पाकिस्तानी आतंकवादी निजाम को लगा था कि भारत की सरकार को मजबूर किया जा सकता है। तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी को

छुड़ाने के लिये सरकार ने बहुत सारे समझौते किये जिसके बाद पाकिस्तानी आतंकवादियों के हौसले बढ़ गये थे। नियंत्रण रेखा के रास्ते और अन्य रास्तों से आतंकवादी आते रहे, वारदात को अंजाम देते रहे और सीमा के दोनों तरफ शान्ति को झटका लगता रहा। उसके बाद सीमावर्ती इलाकों में रहने वालों की ज़िन्दगी बहुत ही मुश्किल हो गयी। छिटपुट आतंक की घटनाओं का सिलसिला जारी रहा और आखिर में 2003 के नवम्बर महीने में भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का समझौता हुआ। इलाके के किसानों से कोई पूछकर देखे तो पता लग जायेगा कि सीजफायर समझौते के पहले बॉर्डर के गाँवों में जिंदा रहना कितना मुश्किल हुआ करता था। सीजफायर लाइन के दोनों तरफ के गाँव वालों की ज़िन्दगी बारूद के ढेर पर ही मानी जाती थी। दोनों तरफ के गाँव वालों को पता है कि लगातार होने वाली गोलीबारी में कभी किसी का घर तबाह हो जाता था, तो कभी कोई किसान मौत का शिकार हो जाता था। लेकिन नवंबर 2003 के बाद सीमावर्ती इलाकों के सैकड़ों गाँवों में शान्ति है। सीमा पर कंटीले तार लगे हुये हैं और इन रास्तों से अब कोई आतंकवादी भारत में प्रवेश नहीं करता। सीजफायर समझौते के बाद यहाँ के गांवों में जो शान्ति का माहौल बना है उसे जारी रखने की दुआ इस इलाके के हर घर में होती ,हर गाँव में लोग यही प्रार्थना करते हैं कि सीमावर्ती इलाकों में फिर से झगड़ा न शुरू हो जाये। लेकिन दिल्ली और इस्लामाबाद में रहकर सत्ता का सुख भोगने वाले एक वर्ग को इन गाँव वालों से कोई मतलब नहीं है। उनको तो हर हाल में झगड़े की स्थिति चाहिए क्योंकि संघर्ष की स्थिति में मीडिया की दुकानें भी चलती हैं और सियासत का कारोबार भी परवाना चढ़ता है।

पाकिस्तान में जब भी नवाज़ शरीफ की सरकार बनती है तो पाकिस्तानी फौज में मौजूद उनके पुराने साथियों को लगता है कि अब मनमानी की जा सकेगी लेकिन नवाज शरीफ दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के सपने देखने लगते हैं। नवाज शरीफ की इस कोशिश को आई एस आई और फौज में मौजूद उनके साथी धोखा मानते हैं। पाकिस्तान की राजनीति में नवाज़ शरीफ को स्थापित करने के श्रेय पाकिस्तान के पूर्व फौजी तानाशाह, जनरल जिया उल हक को जाता है। नवाज शरीफ अपने शुरुआती राजनीतिक जीवन में जनरल जिया के बहुत बड़े चेले हुआ करते थे। पाकिस्तानी फौज में भी आजकल शीर्ष पर वही लोग बैठे हैं जो जनरल जिया के वक़्त में नौजवान अफसर होते थे। पाकिस्तानी सेना और समाज का इस्लामीकरण करने की अपनी मुहिम में इन अफसरों का जिया ने पूरी तरह से इस्तेमाल किया था। आज के पाकिस्तानी सेना के अध्यक्ष जनरल अशफाक कयानी और उनके जूनियर जनरलों ने भारत के हाथों पाकितान को 1971 में बुरी तरह से हारते देखा है। जब 1971 में भारत की सैनिक क्षमता के सामने पाकिस्तानी फौज ने घुटने टेके थे, उसी साल जनरल अशफाक परवेज़ कयानी ने लेफ्टीनेंट के रूप में नौकरी शुरू की थी। उन्होंने बार- बार यह स्वीकार किया है कि वे 1971 का बदला लेना चाहते हैं लेकिन उनकी इस जिद का नतीजा दुनिया के लिये जो भी हो, उनके अपने देश को भी तबाह कर सकता है। यह बात जनरल अशफाक कयानी को मालूम है कि अगर उन्होंने परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की गलती कर दी तो अगले कुछ घंटों में भारत उनकी सारी सैनिक क्षमता को तबाह कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो वह विश्व शान्ति के लिये बहुत ही खतरनाक संकेत होगा। शायद इसीलिये वे कोशिश करते रहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी सूरत में रिश्ते सुधरने न पायें और उनको भारत को तबाह करने के अपने सपने को जिंदा रखने में मदद मिलती रहे। पाकिस्तानी फौजी लीडरशिप की इसी ज़हनियत की वजह से 1990 के बाद से जब भी कोई सिविलियन सरकार दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने की बात करती है तो पाकिस्तानी फौज या तो आतंकवादियों के ज़रिये और या आई एस आई के ज़रिये कोई ऐसा काम कर देती है जिस से सामान्य होने की दिशा में चल पड़े रिश्ते तबाह हो जायें या उस प्रक्रिया में पक्के तौर पर अड़चन ज़रूर आ जाये। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस में बैठकर लाहौर गए थे तो पाकिस्तानी फौज ने कारगिल शुरू कर दिया था। अब तो सबको मालूम है कि कारगिल में जो भी हुआ उसके लिये शुद्ध रूप से उस वक़्त के सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ ज़िम्मेदार थे, प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को तो पता भी नहीं था। लेकिन उस घटना के बहुत सारी राजनीतिक नतीजे निकले थे। नवाज़ शरीफ की गद्दी चली गयी थी, मुशर्रफ ने सत्ता हथिया ली थी, कारगिल की लड़ाई हुई थी, भारत ने कारगिल के इलाके से पाकिस्तानी फौज को खदेड़ दिया था और अटल बिहारी वाजपेयी 1999 के चुनावों विजेता के रूप में प्रचार करते हुये पाँच साल तक राज करने का जनादेश लाये थे।

जम्मू-कश्मीर के पुंछ इलाके में पाँच भारतीय सैनिकों के मारे जाने की घटना को भी जल्दबाजी में पाकिस्तानी हमला मान लेना ठीक नहीं होगा। इस बात की पूरी संभावना है कि पाकिस्तानी फौज ने नई नवाज़ शरीफ सरकार को भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने से रोकने के लिये यह काम किया हो। इस बात में तो शक नहीं हो सकता पाकिस्तानी फौज ने ही भारतीय सैनिकों की जघन्य ह्त्या करवाई है लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि पाकिस्तान की सिविलियन सरकार भी इसमें शामिल हो। इसे मुशर्रफ के उस एडवेंचर से मिलाकर देखना चाहिए जब लाहौर बस यात्रा से पैदा हुये माहौल को खराब करने के लिये मुशर्रफ की पाकिस्तानी फौज ने कारगिल कर दिया था।

पुंछ सेक्टर की ताज़ा घटना भारत और पाकिस्तान के आपसी सम्बंधों की परीक्षा लेने के लिये तैयार है। पाकिस्तानी आई एस आई और हाफ़िज़ सईद के अधीन काम करने वाले आतंकवादी संगठन कभी इस बात को स्वीकार नहीं करेगें कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी तरह के सामान्य सम्बन्ध कायम हों। इसका एक नतीजा यह भी होगा कि मुंबई हमलों के गुनाहगार हाफ़िज़ सईद को पाकिस्तान भारत के हवाले भी कर सकता है। अगर दोनों देशों में दोस्ती हो गयी तो भारत दाऊद इब्राहीम के प्रत्यर्पण की माँग भी कर सकता है। सबको मालूम है कि दाऊद इब्राहीम और हाफ़िज़ सईद पाकिस्तानी हुक्मरान की नज़र में कितने ताक़तवर हैं। इसलिये यह दोनों अपराधी किसी भी सूरत में दोनों देशों के बीच दोस्ती नहीं कायम होने देगें।

अजीब बात यह है कि भारत में पब्लिक ओपिनियन के कर्ता- धर्ता भी पाकिस्तानी आतंकवाद के सूत्रधारों के जाल में फँसते जा रहे हैं। भारत के टेलिविज़न चैनलों की चले तो वे आज ही पाकिस्तान पर भारतीय फौजों से हमला करवा दें। विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी का रवैया भी पुंछ में हुयी भारतीय सैनिकों की निर्मम हत्या के बाद ऐसा है कि वे पाकिस्तानी आतंकवादियों की मंशा को पूरी करते नज़र आ रहे हैं।

भाजपा के एक नेता ने लोकसभा में कह दिया कि भारत के पास ताक़त है, भारतीय सेना के पास ताक़त है, भारतीय संसद के पास ताक़त है कि पाकिस्तान को उसी भाषा में जवाब दिया जाये जो उसकी समझ में आती है। इस तरह की बयानबाजी से दोनों देशों के बीच के रिश्ते और खराब होंगे, पाकिस्तानी सेना में मौजूद वे लोग मज़बूत होंगे जो भारत से हर हाल में दुश्मनी रखना चाहते हैं और पाकिस्तान में रहकर भारत के खिलाफ काम करने वाला आतंक का तंत्र बहुत मज़बूत होगा। इसलिये ज़रूरत इस बात की है कि भारत का मीडिया और राजनीतिक बिरादरी पाकिस्तानी आतंकवादियों के जाल में न फँसे और उनके मंसूबों को नाकाम करने की कोशिश करे। इस मिशन में पाकिस्तानी सिविलियन सरकार की विश्वसनीयता बढ़ाने की कोशिश भी की जानी चाहिए।

भारत के रक्षा मंत्री ए के एंटोनी ने संसद में बताया कि भारी हथियारों से लैस करीब बीस आतंकवादियों और पाकिस्तानी सेना की वर्दी पहने कुछ लोगों ने पुंछ के इलाके में हमला किया और पांच भारतीय सैनिकों की जानें गयीं। संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि भारत को इस तरह के धोखेबाजी के तरीकों से परेशान नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान की सरकार ने कहा है कि भारतीय मीडिया ने आरोप लगाया है कि पुंछ की घटना में पाकिस्तान की सेना का हाथ है जिसे पाकिस्तानी सरकार खारिज करती है। पाकिस्तान सरकार की तरफ से जो बयान आया है उसके मुताबिक सीमा पर ऐसा कोई भी काम नहीं हुआ जिसके कारण दोनों देशों के बीच में तनाव आये। यह बयान सच्चाई को छुपाता है लेकिन फिर भी यह युद्ध की तरफ बढ़ने वाली कूटनीति को लगाम देने में इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत के विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि इस घटना से दोनों देशों के बीच सामान्य हो रहे रिश्तों में बाधा ज़रूर पड़ेगी। पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ की सरकार आने के बाद उम्मीद बढ़ी थी कि रिश्ते सामान्य होंगें। इसी साल जनवरी में एक भारतीय सैनिक का सिर काटे जाने के बाद रिश्तों में बहुत तल्खी आ गयी थी लेकिन पाकिस्तान में आम चुनाव के बाद आयी नवाज़ शरीफ की नई सरकार आने के बाद उम्मीदें थोडा बढ़ी थीं। सितम्बर में संयुक्त राष्ट्र के सम्मलेन के बहाने दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की मुलाक़ात की सम्भावना है लेकिन लगता है कि आई एस आई, पाकिस्तानी फौज और पाकिस्तानी आतंकवादियों की साज़िश के बाद मामला बिगड़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसे पाकिस्तानी ज़मीन पर रहकर, पाकिस्तानी सरकार की परवाह किये बिना भारत से रिश्ते खराब करने वालों के मँसूबों की जीत माना जायेगा। ज़ाहिर है इससे सीमा के दोनों तरफ रहने वाले शान्तिप्रेमी लोगों इच्छाओं को ज़बरदस्त धक्का लगेगा।