पाकिस्तान से आ रही गर्म हवाएँ चढ़ा रही हैं दिल्ली में पारा
पाकिस्तान से आ रही गर्म हवाएँ चढ़ा रही हैं दिल्ली में पारा
Warm winds coming from Pakistan are raising the temperature in Delhi
मानसून के लुका-छिपी खेलने के साथ, दिल्ली पिछले कुछ दिनों से लगातार हीटवेव से जूझ रही है। 29 जून से 1 जुलाई तक लगातार तीन दिनों अधिकतम तापमान 43 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहा। वास्तव में, यह 2012 के बाद से, जब दिन का अधिकतम तापमान 43.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था, जुलाई के सबसे गर्म दिन के रूप में दर्ज किया गया है। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि जुलाई के दौरान इस तरह का उच्च तापमान बहुत ही असामान्य है।
दक्षिण-पश्चिम मानसून की अनुपस्थिति के कारण गर्मी | Summer due to absence of southwest monsoon
पूर्व एवीएम जी.पी. शर्मा, अध्यक्ष-मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन, स्काईमेट वेदर (Skymet Weather) ने कहा,
“यह बिलकुल स्पष्ट है कि यह भीषण गर्मी इस क्षेत्र में दक्षिण-पश्चिम मानसून की अनुपस्थिति का परिणाम है। मानसून आमतौर पर 28 जून के आसपास +/- 2 दिनों के एरर मार्जिन (त्रुटि अंतर) के साथ दिल्ली पहुंचता है। इसलिए, दिल्ली में उत्तर-पश्चिमी हवाएं जारी रहीं।”
किसी भी मौसम सिस्टम (प्रणाली) के अभाव में, दिल्ली-एनसीआर अपनी हवाएँ उत्तर-पश्चिम दिशा से प्राप्त करता है जो पाकिस्तान और पश्चिमी राजस्थान के अधिक गर्म क्षेत्र से होकर आ रही हैं। रेगिस्तान चिलचिलाती गर्मी से जूझ रहा है, पूरे क्षेत्र में तापमान 45 डिग्री या उससे भी ऊपर पहुंच गए हैं। इन गर्म हवाओं की अनवरत प्रवाह दिल्ली पहुंच रही है और पारा स्तर को ऊपर उठा रहा है।
उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में मानसून के गुम होने के क्या कारण | What are the reasons for the disappearance of monsoon in the Northwest region?
जी.पी. शर्मा ने यह भी कहा कि,
“दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की घटना प्रकृति में अस्थिर और जटिल होने के लिए जानी जाती है। हालांकि यह पिछले 15 वर्षों में दिल्ली में मानसून की शुरुआत में सबसे लंबी देरी है, फिर भी मैं यह नहीं कहूंगा कि यह कोई असामान्य बात है। इस देरी को 'इंट्रा-सीज़नल मॉनसून वेरिएशन' कहा जा सकता है।"
मॉनसून के लिए देश के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों को कवर करना सबसे कठिन फेज़ है। क्षेत्र का भूगोल और भूभाग मानसून की धारा को खींचने में ज़्यादा सहायक नहीं है। मानसून को आगे बढ़ने के लिए एक ज़ोर की आवश्यकता होती है, जो किसी भी मानसून सिस्टम (प्रणाली) के रूप में आना होता है या दो का संयोजन हो सकता है।
जी.पी. शर्मा ने कहा,
"उत्तर भारत में मानसून पहुंचना हमेशा से बहुत कारणों की वजह से एक कठिन टास्क रहा है। बंगाल की खाड़ी में बनने वाले मानसून सिस्टम (प्रणालियाँ) मानसूनी धारा की प्रमुख चालक हैं। ये मॉनसून ट्रफ की स्थापना के लिए भी ज़िम्मेदार हैं, जो बारिश को उत्तर भारत के भीतरी इलाकों में ले जाने के लिए एक और महत्वपूर्ण कारक और विशेषता है। बंगाल की खाड़ी में बनने वाले मॉनसून सिस्टम (प्रणालियों) को उत्तर पश्चिमी भारत तक पहुंचने में आमतौर पर लगभग 3-4 दिन लगते हैं। इस यात्रा अवधि के दौरान, ये सिस्टम (प्रणालियाँ) लंबी भूमि यात्रा के कारण नमी शेड करते (खोते) हैं और ऊर्जा खो कर कमज़ोर हो जाते हैं। एक सक्रिय मॉनसून ट्रफ या एक मज़बूत पश्चिमी डिस्टर्बेंस (खलबली) के रूप में अतिरिक्त धक्का की ज़रूरत होती है ताकि नए चार्ज को डाल सकें और उनकी पहुंच बढ़ाई जा सके।"
पूरे देश में मॉनसून सर्कुलेशन और लो प्रेशर वाले क्षेत्र मानसून के सर्ज (महोर्मि) के प्रमुख चालक हैं। अब किसी भी मौसम प्रणाली का गठन इस बार नदारद रहा है। अब तक, देश ने केवल एक मॉनसून लो देखा है, जो 11 जून को बना था।
इसके अलावा अन्य समुद्री पैरामीटर हैं जो मानसून के प्रदर्शन और प्रगति को प्रभावित करते हैं। चरण दो या तीन में एक पॉज़िटिव इंडियन ओसियन डिपोल (सकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुवीय) (IOD) (आईओडी) और मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO) (एमजेओ) द्वारा मानसून की बारिश बढ़ने की संभावना है। अब तक, IOD पूरे जून के दौरान नकारात्मक फेज़ (चरण) में रहा है और अभी भी उस ज़ोन (क्षेत्र) में बना हुआ है।
छवि सौजन्य: मौसम विज्ञान ब्यूरो
MJO दूर-दूर चक्कर भी लगा रहा है। फेज़ 2 और 3 हिंद महासागर के साथ सहसंबद्ध हैं और यही वह समय है जब यह मौसम प्रणालियों को संचालित करता है।
तीसरे, हम आमतौर पर वियतनाम, म्यांमार के माध्यम से प्रशांत महासागर से आने वाले सिस्टम (वाली प्रणाली) के बहुत सारे अवशेष देखते हैं जो बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करते हैं और एक बार फिर से ताक़तवर बनते हैं और बदले में मानसून की धारा चलाते हैं। उन मौसम सिस्टमों (प्रणालियों) ने भी इस बार भारतीय जल क्षेत्र में प्रवेश नहीं किया है।
मानसून की आखिरकार शुरुआत
दिल्ली एनसीआर सहित उत्तर पश्चिमी मैदानी इलाकों में मॉनसून की शुरुआत के लिए मौसम की स्थिति आखिरकार अनुकूल हो गई है।
जी.पी. शर्मा ने कहा,
“गंगीय पश्चिम बंगाल और आसपास के क्षेत्रों में एक चक्रवाती परिसंचरण पहले ही बन चुका है। अगले 48 घंटों के दौरान सिस्टम (प्रणाली) के और अधिक चिह्नित होने और पूर्व की ओर यात्रा करने की संभावना है, जो 10-11 जुलाई तक इंडो-गंगेटिक (सिन्धु-गंगा) मैदानों पर मानसून की धारा को आगे बढ़ाएगा। सिस्टम (प्रणाली) पंजाब और इससे सटे पाकिस्तान क्षेत्र पर एक चक्रवाती परिसंचरण का भी सामना कर रहा होगा। सिस्टम (प्रणाली) के ऑफिंग (दूर का समुद्री हिस्सा) में होने के साथ, हवा की दिशा पहले से ही पूर्व की ओर बदलने लगी है।”
इसके मद्देनजर, हम अब अगले कुछ दिनों में दिल्ली-एनसीआर में दिन के तापमान में गिरावट देखेंगे। फिर भी आर्द्रता (नमी) का स्तर काफ़ी अधिक रहेगा। दिल्ली में 10 जुलाई की शाम से बारिश शुरू हो सकती है। 11 जुलाई को तीव्रता अधिक होगी और 12 जुलाई को चरम पर होगी, जिससे भीषण गर्मी से राहत मिलेगी। मौसम विज्ञानी 11-16 जुलाई के बीच शहर में अलग-अलग तीव्रता की बारिश और गरज-बौछार पड़ने की भविष्यवाणी कर रहे हैं।
साथ ही, MJO (मैडेन जूलियन ऑसिलेशन) जो वर्तमान में अफ्रीकी क्षेत्र पर पश्चिमी गोलार्ध से गुज़र रहा है, भूमध्यरेखीय बेल्ट के साथ स्थानांतरित हो रहा है। मॉडल संकेत दे रहे हैं कि यह जल्द ही कभी भी हिंद महासागर में प्रवेश करेगा।
जी.पी. शर्मा ने कहा,
“हालांकि इसका आयाम कम हो रहा है, लेकिन फिर भी बंगाल की खाड़ी और तटीय क्षेत्र में मानसून की गतिविधि को अगले सप्ताह के मध्य में शुरू करने के लिए पर्याप्त होगा। यह मानसून गतिविधि को पुनर्जीवित करने के लिए उस समय के आसपास एक ताज़ा मौसम प्रणाली के गठन को कैटालाइज (उत्प्रेरित) कर सकता है।"


