कवि की जन्मशती पर जसम के दो दिवसीय कायर्क्रम का आयोजन
नई दिल्ली, 21 जनवरी। हिदी के प्रमुख कवि और गद्य शिल्पी शमशेर बहादुर सिंह को उनकी जन्मशती पर याद करने के लिए जनसंस्कृति मंच के दो दिन के कार्यक्रम की शुरुआत शुक्रवार को यहां चित्रकार अशोक भौमिक के बनाए चार कविता पोस्टरों के लोकार्पण से हुई। गांधी शांति प्रतिष्ठान में हुए जसम के इस आयोजन में शमशेर पर फिल्म उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा और काव्य पाठ जैसे विविध कार्यक्रम शामिल थे।
शमशेर, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल और फैज की रचनाओं पर आधारित अशोक भौमिक के चार कविता पोस्टरों और क्रांतिकारी कवि रमाशंकर विद्रोही की पहली कविता पुस्तक नई खेती का लोकार्पण वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पांडेय ने किया।
पांडेय ने किसानों की आत्महत्याओं के इस दौर में विद्रोही के काव्य संग्रह नई खेती को समसामयिक बताया और कहा कि हर कविता दरअसल किसान की खेती की प्रक्रिया से मिलती जुलती ही है। इस मौके पर शमशेर पर कुबेर दत्त द्वारा संपादित फिल्म कवियों के कवि शमशेर भी दिखाई गई।
शमशेर और मेरा कविकर्म विषयक संगोष्ठी में कवि वीरेन डंगवाल ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि शमशेर अपनी काव्य-प्रेरणाओं को ऐतिहासिक संदर्भों के साथ जोड़ते हैं। उनकी कविता में प्राइवेट-पब्लिक के बीच कोई अंतराल नहीं है। संगोष्ठी की शुरुआत में मदन कश्यप ने कहा कि शमशेर और नागार्जुन ऊपरी तौर पर अलग लगते हैं, पर इनकी काव्य-प्रक्रिया एक है। फर्क इतना है कि जहां नागार्जुन खुद बोलते हैं कि मैं प्रतिबद्ध हूं, वहीं शमशेर की बात बोलती है।
अनामिका ने कहा कि शमशेर की कविता आग के प्रकाश बन जाने की कविता है। उनकी भाषा आत्मीय प्रकाश मानो कंधे पर हाथ रखकर बतियाता है। शमशेर की कविता भाषण नहीं करती। त्रिनेत्र जोशी ने कहा कि शमशेर संवेदनात्मक ज्ञान के कवि हैं। हमारी पीढ़ी ने उनसे यही सीखा कि अपने ज्ञान और विचार को संवेदना के जरिए कैसे समेटा जाता है। शोभा सिंह का कहना था कि शमशेर बेहद उदार और जन पक्षधर थे। इब्बार रब्बी ने शमशेर की रचनाओं और जीवन में निजत्व के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि उनकी काव्यपंक्तियां मुहावरे की तरह बन गई हैं। नीलाभ का कहना था कि शमशेर की व्यक्तित्व जिस तरह से जीवन को देखता है, उनकी कविता उसी का लेखाजोखा है। गिरधर राठी ने कहा कि भाषा और शब्दों का जैसा इस्तेमाल शमशेर ने किया, वह बाद के कवियों के लिए एक चुनौती-सी रहा है। वे सामान्य-सी रचनाओं में नयापन ढूंढ़ लेने वाले आलोचक भी थे। मंगलेश डबराल ने कहा कि शमशेर मानते थे कि कविता वैज्ञानिक तथ्यों का निषेध नहीं करती। उनकी कविता आधुनिकतावादियों और प्रगितिवादियों, दोनों के लिए चुनौती की तरह रही है। इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत में डबराल ने कहा कि शमशेर की अनेक कविताएं प्रेम से लेकर जनवाद तक फैली हैं। उन्हें कई आलोचक कई सांचों और खंडित आइनों में देखते हैं। उन्होंने कहा कि शमशेर जहां प्रेम और सौंदर्य की रचना करते हैं, वह भी रूपवादियों से भिन्न है। उनके यहां प्रकृति और प्रेम में गतिशीलता व क्रियाशीलता है, जो उन्हें मार्क्सवाद की देन है।
दूसरा सत्र काव्यपाठ का था। इसकी शुरुआत शमशेर द्वारा पढ़ी गई उनकी कविताओं के वीडियो के प्रदर्श से हुई।
साभार जनसत्ता