प्रचंड बहुमत की मोदी सरकार और संघ की चेतावनी !
प्रचंड बहुमत की मोदी सरकार और संघ की चेतावनी !
नई दिल्ली। 'घर वापसी' पर कुछ दिनों से मोदी सरकार और भाजपा में हिंदुत्व के झंडाबरदार नेताओं के बीच टकराव की खबरें छन-छन कर बाहर आ रही थीं। शुक्रवार और शनिवार को भी प्रिंट मीडिया के एक हिस्से ऐसी खबरें दिखीं। लब्बोलुआब यह था कि विकास का नया एजेंडा लेकर चल रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी के ही कुछ नेताओं से नाराज हैं। इनमें पूर्वांचल में हिंदुत्व की प्रयोगशाला चला रहे योगी आदित्यनाथ का खास तौर पर जिक्र किया गया। योगी को जो जानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में भाजपा नहीं योगी खुद ही पार्टी है और वे हिंदुत्व के स्वयंभू प्रवक्ता भी हैं। वे किसी से कोई लाइन नहीं लेते बल्कि अपनी लाइन देते हैं। ऐसे में वे किसी की सुनें या दबाव में आ जाएं यह संभव नहीं। कोशिश हो रही थी कि योगी के पर कतरे जाएं, पर वह तो हुआ नहीं उलट आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने केंद्र सरकार के साथ सभी राजनैतिक दलों को चेतावनी दे डाली। छह महीने की प्रचंड बहुमत की सरकार के सामने यह नई चुनौती कड़ी हो गई है।
कोलकाता में आज आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि घर छोड़कर गए लोगों को वापस लाने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। भागवत ने ये भी कहा कि अगर किसी को इस पर कोई आपत्ति है तो संसद में कानून बना लें। भागवत ने कहा कि संसद में कानून बनाने की बात कही गई तो लोगों को उस पर भी आपत्ति है। भागवत ने आगे एक बात और कही कि पकिस्तान तो भारत की भूमि है। जो खुछ ख़ास घटनाक्रम की वजह से बन गया।
अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपनी ख़ास जगह बनाने में जुटे मोदी के लिए भागवत की यह टिप्पणी नया संकट पैदा कर सकती है तो हिंदुत्ववादी ताकतों को अब नया मैदान मिल सकता है। भागवत ने हिंदुत्व पर लंबा भाषण दिया पर कहा कि यह छोटा भाषण है। संसद में घर वापसी को लेकर एक टकराव पहले से चल रहा था ऐसे में संघ का खुलकर मैदान में आना आने वाले दिनों की राजनीति का संकेत देने लगी है। संघ का संकट अलग है मोदी के विकास का संकट अलग है। संघ जड़ मूल स्तर पर लोगों से संवाद करती है और इससे पहले हर बार यह सफाई देती थी कि साझा सरकार से हिंदुत्व का कोई एजेंडा पूरा नहीं हो सकता। चाहे राम मंदिर का मुद्दा हो या धारा 370 या फिर कामन सिविल कोड का मामला। पर अबकी तो छप्पर फाड़ सरकार मिली है तो फिर किसका डर ? यह सवाल संघ के कार्यकर्त्ता से वह हिंदू पूछ रहा है जिसे ठोकपीट संघ ने 'हिंदू' बनाया था। यह कानून वाला मामला भी इसी से जुड़ा है। दरअसल संघ परिवार से लेकर संघ सरकार तक एक पुख्ता कानून चाहती है जिससे हिन्दुओं का धर्मांतरण आगे से न होने पाए। यह संघ का पुराना एजेंडा भी रहा है और आम हिंदू भी किसी हिन्दू परिवार के ईसाई होने या इस्लाम ग्रहण करने पर काफी दुखी नजर आता है। यह बात अलग है कि हिंदू समाज में निचली जातियों को लेकर उसकी सोच अठारहवीं शताब्दी वाली ही है। कुछ दशक में पिछड़े तो लाठी की ताकत से अगड़ों के साथ खड़े हो गए पर दलित, आदिवासी और अति पिछड़ी जातियां आज भी हाशिए पर है और धर्म परिवर्तन इन्हीं तबके में ज्यादा होता है। बाभन-राजपूत के धर्म बदलने की घटना बहुत कम होती है। संघ परिवार इसी तबकों को लेकर रणनीति बनाता रहा है। जातीय भेदभाव दूर करने के लिए हिंदू युवा वाहिनी पूर्वांचल में दलितों के साथ भोज का आयोजन करती रही है जो गोरक्ष धाम की पुरानी परम्परा रही है। पर अब यह सब हिंदुत्व के एजेंडा का हिस्सा है। संघ परिवार इस एजेंडा से पीछे हटने को तैयार भी नहीं है। घर वापसी इस एजंडा का एक आजमाया हुआ औजार है। छतीसगढ़ में जूदेव इस ' घरवापसी' अभियान से ही मशहूर हुए थे। पूर्वोत्तर में भी संघ इस एजंडा पर काम कर रहा है। उत्तर प्रदेश में शुरुआत जरुर नई है। वे घर वापस ला रहे हैं। पर कोई कसाई घर वापस आकर सरयूपारी नही बन सकता है यह भी इसकी एक विशेषता है तो यही इसकी कमजोरी भी। इसलिए यह अभियान कोई ज्यादा सफल होने वाला नहीं है पर समाज में मजहबी गोलबंदी जरूर तेज हो जाएगी। यह संघ भी चाहता है। पर मोदी का विकास और नए भारत का एजेंडा इसके साथ नहीं चल सकता। गुजरात पर भी ध्यान दे। प्रवीण भाई तोगड़िया वहां हिंदुत्व का चेहरा थे। मोदी के आने के बाद वे हाशिए पर गए, तभी विकास का नारा चला भी। वही चुनौती फिर एक बार सामने है।
O- अंबरीश कुमार
जनादेश
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