प्रभाकर श्रोत्रिय का न होना, बहुत अकेला कर गया
प्रभाकर श्रोत्रिय का न होना, बहुत अकेला कर गया
प्रभाकर श्रोत्रिय का न होना, बहुत अकेला कर गया है निजी शोक का यह क्षण।
पलाश विश्वास
अभी अभी हिंदी के विशिष्ट साहित्यकार, आलोचक और संपादक प्रभाकर श्रोत्रिय के निधन की खबर मिली है। यह मेरे लिए निजी शोक का क्षण है, हिंदी दिवस के मौके पर हिंदी समाज के दस दिगंत सर्वनाश के मध्य यह एरक अपूरणीय क्षति है।
कोलकाता में भारतीय भाषा परिषद मैं उनके यहां से प्रस्थान करने के बाद रवीद्र कालिया के संपादक बनने के बाद एक दो दफा गया हूं, लेकिन कवि मित्र एकांत श्रीवास्तव से कभी मिलने नहीं गया।
वागर्थ के लिए लिखने और अनुवाद करने का काम भी मैंने प्रभाकर जी के संपादकत्व के दौरान किया।
उन्होने मेंरी सिक्कम डायरी का धारावाहिक प्रकाशन शुरु किया था जो अधूरा ही रह गया।
दिल्ली में जाने के बाद ज्ञानोदय के संपादक बनने के बाद पनेसर जी का इंटरव्यू भी मैंने उन्हीं के कहने पर किया। ज्ञानोदय के लिए उतना ही मेरा काम है। बाद में कृपा शंकर चौबे के साथ उनके दफ्तर में उनसे जाकर मैने उनसे मुलाकात की थी।
दरअसल रघुवीर सहाय की मृत्यु के बाद किसी संपादक से मेरी इतनी घनिष्ठता हुई ही नहीं है। संपादकों, आलोचकों और प्रकाशकों से मिलने की मेरी आदत नहीं रही है। प्रभाष जोशी के बाद जनसत्ता के संपादकों के साथ मुलाकात करने की मेरी कभी इच्छा हुई नहीं है।
ऐसा भी हुआ है कि बहुत पुराने मित्रों के संपादक बनने के बाद उनसे संवाद भी मेरा इसलिए खत्म हो गया कि कहीं वे ऐसा न समझने लगे कि उनकी हैसियत का मैं फायदा उठाना चाहता हूं। इनमें दशकों की मित्रता से नत्थी लोग भी शामिल हैं।
हमारे विचारों से प्रभाकर श्रोत्रिय सहमत नहीं थे और वैचारिक दृष्टि से हम कभी अंतरंग नहीं थे।
वैचारिक अंतरंगता तो हमारी रघुवीर सहाय के बाद किसी संपादक से हुई ही नहीं है।
वैचारिक असहमति के बावजूद भारतीय भाषा परिषद की गतिविधियों में शामिल न होने के बावजूद प्रभाकर श्रोत्रिय से अंतरंगता बने होने की वजह उनकी बैमिसाल सज्जनता और ईमानदारी रही है।
आलोचक, लेखक, साहित्यकार बाहैसियत यह उनकी सबसे बड़ी खूबी रही है और तमाम लोगों को साथ जोड़कर काम करने की बेजोड़ उनकी कार्यशैली रही है, जो हिंदी के संपादकों में अक्सर देखी नहीं जाती।
हमारा मोर्चा चूंकि अलग रहा है हमेशा, इसलिए हाल के वर्षों से उनसे भी कोई संवाद नहीं हो पाया है।
लेकिन इतने मुश्किल दिनों में अभिव्यक्ति के इस दुस्समय में उनका न होना कितना दूसरों को खलेगा मैं कह नहीं सकता, लेकिन मुझे बहुत अकेला कर गया है निजी शोक का यह क्षण।
मीडिया के मुताबिक हिंदी के प्रख्यात ओलाचक और साहित्यकार प्रभाकर श्रोत्रिय का 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उनका निधन गुरुवार की रात दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में हुआ. श्रोत्रिय जी लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनका अंतिम संस्कार हरिद्वार में किया जाएगा. प्रभाकर श्रोत्रिय ने हिंदी की कई प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादन किया. श्रोत्रिय के निधन से हिंदी साहित्य जगत को गहरा धक्का पहुंचा है.
डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय का जन्म मध्य प्रदेश के जावरा में 19 दिसंबर 1938 को हुआ था. हिंदी पट्टी में उनकी गिनती आलोचक और नाटककार के तौर पर होती थी. हिंदी आलोचना के अलावा उन्होंने साहित्य और नाटकों को भी एक नई दिशा प्रदान की.
श्रोत्रिय जी सबसे पहले मध्य प्रदेश साहित्य परिषद के सचिव एवं 'साक्षात्कार' व 'अक्षरा' के संपादक रहे हैं. इसके अलावा वे भारतीय भाषा परिषद के निदेशक एवं 'वागर्थ' के संपादक पद पर कार्य करने के साथ-साथ भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली के निदेशक पद पर भी रहे.


