राहुल गाँधी ने जिस तरह सपा-बसपा गठबंधन से कांग्रेस को बाहर रखने पर प्रतिक्रिया दी है, वह निश्चित ही ना सिर्फ एक सुलझे हुए अनुभवी राजनीतिज्ञ की प्रतिक्रिया थी, बल्कि शतरंज के एक माहिर खिलाड़ी की तरह अचानक ही विपक्षी को हतप्रभ कर देने वाली साबित हुई है। उन्होंने जनता से वादा किया कि कांग्रेस ना सिर्फ यूपी में अपनी पूरी ताकत से लड़ेगी बल्कि परिणामों के साथ सरप्राइज भी करेगी।

प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में उतरने के यूपी में मायने Priyanka Gandhi's entry into active politics means in UP

संदीप वर्मा

राहुल गांधी ने सरप्राईज दिया भी और खूब दिया। उनका सरप्राईज ऐसा था जैसे किसी अँधेरे कमरे में अचानक पाँच लाख वाट की हैलोजन ऑन कर दिए गये हों। अँधेरे कमरे में बैठे खुसुर-पुसुर कर रहे लोगों की आँखें उस पाँच लाख वाट की रोशनी से चौंक गई हों।

राहुल गाँधी का यूपी के लिए सरप्राईज प्रियंका गाँधी का पार्टी में महासचिव के पर पर उत्तरप्रदेश (पूर्व) की प्रभारी की जिम्मेदारी के साथ नियुक्ति देना।

प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने के लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं सहित मीडिया का भी एक बड़ा वर्ग जब हताशा भरी आशा रखे हुए था, राहुल गांधी का यह सरप्राईज कांग्रेस कार्यकर्ताओं सहित मीडिया के लिए किसी संजीवनी बूटी की तरह साबित हो रहा है।

मेरा साफ़ मानना है कि प्रियंका जी का इस तरह अचानक उत्तर प्रदेश के एक हिस्से की प्रभारी बनकर आना कतई पूर्व-नियोजित नहीं था। राहुल गांधी ने उनकी नियुक्ति को किसी शातिर पत्तों के खिलाड़ी की तरह अपनी आस्तीन में छुपा रखा था, जिसके बारे में वे निश्चिन्त थे कि बेहद जरूरत पड़ने पर ही इसका इस्तेमाल करेंगे।

व्यक्तिगत रूप से मैं संतुष्ट हूँ कि राहुल गाँधी ना सिर्फ एक बेहद सजीदा इंसान हैं, बल्कि एक अच्छे और सच्चे इंसान भी हैं। .

राजनीति में वादे हमेशा लिखित तो नहीं होते, मगर कहा सुना गया भी अपनी विश्वनीयता रखता है। गत विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन में यह तय था कि प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस, सपा के छोटे भाई की भूमिका निभाएगी और केंद्र की राजनीति में यह रिश्ता उलट जाएगा। मगर सपा-बसपा गठबंधन में सीटों के बंटवारे ने कांग्रेस को जिस तरह नकारा, उससे निश्चित ही राहुल गांधी के अन्दर के अच्छे आदमी को चोट लगनी स्वाभाविक थी। और इस तरह एक अच्छे और सच्चे आदमी ने किसी घायल शेर की तरह अपने होने के अहसास को साबित करने के लिए अपने हाथ में छिपे पत्ते के इस्तेमाल करने का निश्चय कर लिया। और परिणाम निकला श्रीमती प्रियंका गांधी के यूपी की जिम्मेदारी निभाने का।

तो मैं सलाह दूंगा अपने कांग्रेस पार्टी के उन पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को जो श्रीमती प्रियंका गांधी जी के जिम्मेदारी सम्हालने से हर्ष से उल्लास कर रहे हैं, वे अपने इस उल्लास के लिए सपा-बसपा गठबंधन आभार जरूर प्रकट कर दें। आप निश्चित जानिये, अगर सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल होती तो प्रियंका का सक्रिय राजनीति में उतरना अभी भी आगे की तारीख के लिए टलता रहता।

विपक्ष की बात करें तो भाजपा तो बेहद असमंजस में पड़ गयी है। अपने विरोधी के लिए किसी भी हद तक नीचे जाकर हमला करने वाली यह पार्टी और उसका शीर्ष नेतृत्व अपने विरोध के सुरों के असर को समझने की कोशिश में लगा है। फिलहाल भाजपा की बात बाद में। पहले सपा बसपा की राजनीति को समझा जाय।

यह किसी से छिपा नहीं है कि सपा-बसपा दोनों ही पार्टियों ने अपनी हैसियत कांग्रेस की जमीन लूट कर बनाई है। विभिन्न कारणों से कांग्रेस अपनी जमीन को लुटते देखने के लिए विवश रही है। मगर प्रियंका गांधी के आगमन का मतलब कांग्रेस का अपनी खोयी जमीन को वापस लेने के लिए अपनी दावेदारी पेश करना है। जाहिर सी बात है यह सपा-बसपा दोनों ही दलों को इसलिए नागवार लगनी है क्यों कि इससे उनके अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है। इसके बाद सपा-बसपा दोनों को ही अपनी जमीन बचाने के लिए पहले की तरह चोरी-चोरी भाजपा से अपनी दोस्ती की पींगें बढ़ाने का काम करेंगे।

फिलहाल सपा-बसपा गठबंधन के पास दो ही रास्ते बचे हैं या तो कांग्रेस के साथ अपने गठबंधन का गठबंधन करें या फिर भाजपा के साथ चुपके-चुपके वाला गठबंधन करके अपने अस्तित्व की रक्षा करें। यह तब और भी जरूरी हो जाता है जब राहुल गांधी ने घोषणा कर दी है कि उन्होंने नयी नियुक्तियां 2022 में यूपी में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए की हैं।

फिलहाल मैं तो भैया जी और बहन जी का आभार प्रकट कर रहा हूँ जिन्होंने यूपी की जनता के लिए अपना साफ सुथरा रास्ता चुनने के लिए एक अवसर दिलाने में जाने अनजाने में मदद की है।

(संदीप वर्मा, लेखक शिक्षक व राजनीतिक विश्लेषक हैं। पिछड़ों की राजनीति के विशेषज्ञ हैं।)

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