डॉ डी एम मिश्र

खुद-ब -खुद हर चीज घर बैठे हुए मिल जायेगी
रामनामी ओढ़ कर कंठी पहनकर देखिये।
रात भर मुँह कीजिए काला किसी का डर नहीं
दिन में फिर रंगे सियारों की तरह से घूमिये।

कुछ ढोंगी बाबाओं का नाम सामने आते ही कितने और बाबाओं का सिंहासन डोलता नजर आ रहा। कितनों को अपना अस्तित्व खतरे में दिखायी दे रहा। कितने बाबाओं की दुकान बंद होने के कगार पर है। बाबाओं का बडा बुरा वक्त चल रहा। पूरा धंधा चौपट हो गया है। ‘‘ मंतर ‘‘ और ‘‘ दीक्षा ‘‘ लेने वालों की संख्या तेजी से घटने लगी है। जिससें बाबाओं, महन्तों, संतों के आश्रमों में खलबली मची है। हमारे देश में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बाबाओं का डंका बज रहा। पहले पूजा -पाठ का जिम्मा ब्राह्मणों के पास था। लेकिन अच्छी कमाई और ठाट -बाट को देखकर अब अन्य जातियों के लोग भी बाबा बनने लगे है। तमाम अपराधी बाबा बन बैठे हैं। यह सबसे महफूज जगह है। किसी मंदिर में पुजारी या सहायक पुजारी का जिम्मा मिल जाय तो क्या कहना ? और वह न मिल पाये तो भी अपना एक मठ या कुटी छवा कर बाबा बना जा सकता है। शुरू कर दें जादू -टोना, भूत -प्रेत बाधा दूर करना। जिन स्त्रियों के सन्तान न हो रही हो उन्हें आशीर्वाद देकर माँ बनाना। बस आप हो गये महात्मा। संसार के सारे सुख और ऐश्वर्य आपके कदमों में।

भगवान बनकर राज कीजिए। और अब तो मठ का रास्ता मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जाने लगा है। यदि कोई खुद मंत्री न बनना चाहे तो न सही। लेकिन वह मंत्री - मुख्यमंत्री बनाने में मदद तो कर ही सकता है। इन्दिरा गाँधी भी बाबाओं के आशीर्वाद पर बहुत भरोसा करती थी। बाबा लोग ही उनके लिए अच्छा ‘ मुहूरत ‘ निकालते थे। बिना किसी बाबा के आशीर्वाद के शायद ही कोई मंत्री, मुख्यमंत्री बन पाया हो।

बाबा रामदेव ने ही मोदी जी को सुझाया था कि विदेशों में जमा काला धन वह देश में लाने का वादा कर दें। फिर प्रधानमंत्री बनने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता।

एक समय था जब बाबा रामदेव सूचियाँ जारी करते थे कि किस देश में हमारे देश का कितना धन - काले धन के रूप में जमा है। मोदी जी ने चुनाव से पहले 100 दिन में विदेशों में जमा काला धन लाने का वादा किया था। मोदी जी तो भूल ही गये। पर, बाबा रामदेव भी अब उन्हें याद नही दिलाते।
हमें अच्छी तरह से याद है जब आसाराम बापू को पुलिस पकड रही थी तो वह यही चिल्ला- चिल्लाकर बोल रहे थे- तुम लोग मुझसे दूर हो जाओ। तुम्हारा मुख्यमंत्री मेरे पैर छूता है। अभी वह आयेगा और एक -एक की खबर लेगा। तुम सबकी नौकरी ले लूँगा।

लोगों का मानना है कि हरियाणा में उसी की सरकार बनती रही जिस पर बाबा रामपाल और बाबा राम रहीम का आशीर्वाद होता था। बाबा राम रहीम की घटना याद कीजिए। उसे अपने मुख्यमंत्री पर पूरा भरोसा था तभी तो धारा -144 के बावजूद वह सैकडों गाडियों और लाखों भक्तों का काफिला लेकर निकला था। य़द्यपि इन बाबाओं को इतना भी पता नही कि जब जहाज डूबने लगता है तो चूहे पहले कूदकर भागते है। वो तो नेता हैं।
अभी हाल ही में इलाहाबाद में अखिल भारतीय अखाडा परिषद की बैठक हुई। बैठक में परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरि ने 14 फर्जी बाबाओं की सूची जारी की है जिनमें आसाराम बापू, राधे माँ, सच्चिदानंद गिरि, बाबा राम रहीम, ओमबाबा, निर्मल बाबा, इच्छाधारी बाबा भीमानंद, स्वामी असीमानंद, ओम नमः शिवाय बाबा, नारायण साईं, रामपाल, आचार्य कुशमुनि, बृहस्पति गिरि, मलखान सिंह आदि शामिल हैं।

परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरि ने कहा है कि इस सूची को जारी करते ही उनको धमकियाँ भी मिलने लगीं हैं। यह स्वाभाविक भी है जब माननीय न्यायालय के आदेश पर इसमें से कई बाबा सलाखों के पीछे हैं और सरकार में बैठे उनके भक्तगण जो मंत्री और बड़े नेता हैं खुलकर सामने नहीं आ पा रहे तो क्या सन्त बिरादरी भी इस तरह की सूची जारी करके उनका पक्ष कमजोर करेगी और उन्हें फर्जी बाबा बतायेगी।

यहाँ एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि किस हैसियत से अखिल भारतीय अखाडा परिषद ने 14 बाबाओं को फर्जी बताया है ?

क्या बाबा होने के लिए कोई विशेष योग्यता कहीं निर्धारित की गयी है जो वह नहीं पूरी करते ? क्या असली बाबाओं की कोई खास पहचान है ? कोई नियमावली या आचार -संहिता है ? कोई मानक निर्धारित किया गया है ? यदि हाँ तो उसे नरेन्द्र गिरि को लोगों को बता कर सावधान करना चाहिए।

एक बात और। नरेन्द्र गिरि ने जितने बाबाओं, तथाकथित सन्त -महात्माओं को फर्जी नहीं घोषित किया है या एक प्रकार से वास्तविक होने का क्लीन चिट दे दिया है, क्या वे सब असली सन्त है और उनके आचरण बिल्कुल ठीक है - महाकवि तुलसी की पंक्ति इस स्थल पर बरबस याद आ गयी: नारि मुई घर सम्पति नासी / मूड़ मुडाय भये सन्यासी। कवि तुलसी ने शायद इतनी दूर तक न सेाचा रहा हो। आज वह जिंदा होते और आसाराम व रामरहीम जैसे बाबाओं के काले कारनामें देखते तो रामायण लिखना भूल जाते। इन बाबाओं के नाम में ‘राम ‘ देखकर घबरा उठते। वह अपने आराध्य मर्यादा पुरूषोत्तम राम के लिए कोई नया नाम सोचते।

सच्चाई यह है कि नरेन्द्र गिरि समझ चुके हैं कि यह - गेरुआ वस्त्र, जटा-जूट और बढ़ी दाढ़ी देखकर जनता भय खाने लगी है। यह साधुओं का ‘‘ माडल‘‘ रूप बहुत बदनाम हो चुका है। हो भी क्यों न ? केवल उनकी दाढ़ी मुड़वाकर देख लीजिए हजारों फरार अपराधी इस मुखौटे में छिपे हुए मिल जायेंगे जिनकी पुलिस को एक लंबे अरसें से तलाश है। फाँसी और आजीवन कारावास के दण्ड से कहीं अच्छा है महात्मा का चोला धारण करना। क्या नरेन्द्र गिरि के पास असली साधु-सन्तों की पहचान की कोई कसौटी है ?
प्रसंगवश नरेन्द्रगिरि से एक सवाल और।

अयोध्या,मथुरा, काशी, प्रयाग, हरिद्वार जैसे किसी तीर्थ स्थल पर पहुँचतें ही साधू और पंडा तीर्थयात्रियों को घेर लेते है। इतना ही नहीं वह भक्तों को मोटा दक्षिणा देने के लिए मजबूर करते हैं यह कहकर कि तब वह आराम से भगवान का पूरा दर्शन करवा देगें। छीना झपटी और मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। और भक्त तो मानो श्रद्धा के नाम पर पहले से ही लुटने को तैयार रहता है। जहाँ इन बाबाओं के नाम पर एक तरफ पूरा देश थूक रहा है वही अंध भक्त अब भी आँख पर पट्टी बाँधें क्यों बैठे हैं ? समय आ गया है कि नरेन्द्र गिरि जैसे सन्त धर्म की सही व्याख्या करें और अपराधीनुमा बाबाओं से देश को बचायें।

—- लेखक जाने -माने कवि व साहित्यकार हैं