कर्मचारियों का नया नारा “आरक्षण का विरोध नहीं- तो लोकसभा में वोट नहीं”
भाजपा को स्पष्ट करना चाहिये कि वह पदोन्नति में आरक्षण के समर्थन में है या विरोध में
अंबरीश कुमार
लखनऊ 7 अप्रैल। अब आरक्षण के सवाल पर भाजपा कांग्रेस को घेरने की कवायद शुरू हो गई है। यह पहल सर्वजन हिताय संरक्षण समिति उप्र के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे ने की जो प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ उत्तर प्रदेश में बड़ा आन्दोलन कर चुके हैं और उस दौर में भाजपा के नेताओं का पुतला भी फूंका गया था। इस बारे में संविधान संशोधन बिल का भाजपा ने समर्थन किया था। इस वजह से अगड़ी जातियां भाजपा के विरोध में खड़ी गई थीं। अब यह जिन्न अगर बोतल से बाहर आया तो भाजपा के लिये दिक्कत पैदा हो सकती है।
शैलेन्द्र दुबे ने कहा- पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के लिये राज्य सभा में पारित 117वें संविधान संशोधन बिल को वापस कराने के लिये सर्वजन हिताय संरक्षण समिति ने भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह से कल लखनऊ में मिलकर उन्हें ज्ञापन दिया। समिति ने यह माँग की कि वे इस बाबत अपने चुनाव घोषणा-पत्र में दल की नीति स्पष्ट करें।
भाजपा की तरफ से आज जारी घोषणा-पत्र में इस बाबत बहुत साफ उल्लेख न होने पर निराशा जताते हुये समिति के अध्यक्ष ने कहा है कि उतर प्रदेश में पहले चरण के मतदान के पहले भाजपा को स्पष्ट करना चाहिये कि वह पदोन्नति में आरक्षण के समर्थन में है या विरोध में जिससे प्रदेश के 18 लाख कर्मचारी, अधिकारी व उनके परिवारजन यह तय कर सकें कि वे उन्हें वोट दे या न दें।
समिति का यह अल्टीमेटम दोनों राष्ट्रीय दलों के लिये दिक्कत पैदा करने वाला है। बसपा इसके समर्थन में है तो सपा इसके खिलाफ। ऐसे समय में जब अगड़ी जातियों के सहारे भाजपा आगे बढ़ रही हो तो अठारह लाख सरकारी कर्मचारियों का विरोध भारी पड़ सकता है। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने भी इस मुद्दे पर भाजपा को आड़े हाथों लिया है। पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा- यह तो इस पार्टी को अब साफ़ ही करना चाहिए कि ये प्रमोशन में आरक्षण के पक्ष में है या नहीं। हमारी पार्टी ने तो सड़क से संसद तक अपना नजरिया साफ़ कर दिया था।
गौरतलब है कि समिति ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल, रालोद अध्यक्ष अजीत सिंह को पिछले कुछ महीनों में अलग-अलग भेजे पत्र में लिखा था कि वोट की राजनीति के चलते मा0 सर्वोच्च न्यायालय के, 27 अप्रैल 2012 के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिये लोकतांत्रिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर राज्यसभा में 117वां संविधान संशोधन बिल पारित कराया गया। इसके पूर्व भी चार बार संविधान संशोधन कर मा0 सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को निष्प्रभावी किया जा चुका है। 17 जून 1995 का कांग्रेस सरकार ने 77वां संविधान संशोधन किया तो 09 जून2000 को 81वां, 08 सितम्बर 2000 को 82वां और 04 जनवरी2002 को 85वां संविधान संशोधन एनडीए सरकार ने किया गया। अब पांचवी बार 17 दिसम्बर 2012 को कांग्रेस व भाजपा ने मिलकर राज्यसभा में 117वां संविधान संशोधन बिल पारित कराया जिससे पूरे देश के सामान्य व अन्य पिछड़े वर्ग के कर्मचारियों व अधिकारियों में भारी रोष व्याप्त है।
पत्र में लिखा गया है कि एम नागराज बनाम भारत सरकार के मुकदमे में 19 अक्टूबर 2006 को दिये गये फैसले में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक स्थिति स्पष्ट करते हुये कहा है कि पदोन्नति में आरक्षण देने के पहले संख्यात्मक आंकड़े देकर, प्रत्येक मामले में पिछड़ापन, सचुचित प्रतिनिधित्व न होना और प्रशासनिक क्षमता पर प्रभाव जैसे बाध्यकारी कारण प्रमाणित करने होंगे। समिति के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि 117 वें संविधान संशोधन के जरिए तीनों बाध्यकारी कारण बताने की मा. सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक व्याख्या अब अप्रासांगिक हो जायेगी और अनुसूचित जाति/जनजाति के 20-25 साल कनिष्ठ कार्मिक, सामान्य व अन्य पिछड़े वर्ग के वरिष्ठ कार्मिकों के बॉस और सुपर बॉस बन जाएंगे जो कि न केवल अन्यायपूर्ण होगा अपितु इससे विभाग तथा कार्मिकों की कार्यक्षमता प्रभावित होगी, सामाजिक समरसता बिगड़ेगी और आपसी मनमुटाव फैलेगा जो राष्ट्रहित में नहीं होगा।
जनादेश