फुटपाथ : 61 लाशें, मगर कहानी सबकी एक जैसी…न एफ़आरआई लिखी गयी, न मजिस्ट्रेटी जांच हुई और न दर्ज़ हुआ मुक़दमा
फुटपाथ : 61 लाशें, मगर कहानी सबकी एक जैसी…न एफ़आरआई लिखी गयी, न मजिस्ट्रेटी जांच हुई और न दर्ज़ हुआ मुक़दमा

Footpath: 61 dead bodies, but the story is the same for all… neither FRI was written, no magisterial inquiry was done nor a case was registered
जो मर गए, वे अपनी कहानी नहीं कह पाते
अंगरेज़ी में एक कहावत है, जिसका कामचलाऊ तर्ज़ुमा कुछ इस तरह होगाः जो लोग मर गए हैं, वे अपनी कहानी नहीं कह पाते। क्या वह 61 लोग, जो उत्तर प्रदेश में 20 मार्च 2017 से 7 जुलाई 2018 के बीच तथाकथित पुलिस मुठभेड़ों में मार डाले गए, अपनी-अपनी कहानी कह पाएंगे ? मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी पार्टियों का कहना है कि 90 प्रतिशत से ज़्यादा इस तरह की मुठभेड़ें नकली व फ़र्ज़ी हैं और इनका मक़सद कानून व व्यवस्था की स्थिति सुधारने की आड़ में पुलिस द्वारा मुठभेड़ दिखाकर लोगों की हत्या कर देना रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा
ऐसी मुठभेड़ हत्याओं के संबंध में मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) की जनहित याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने 2 जुलाई 2018 को उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर उससे दो हफ़्ते के भीतर जवाब मांगा है। इसे राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार के लिए गंभीर झटके के रूप में देखा जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया, इसका मतलब कि उसे पहले नज़र में याचिका में दम दिखाई दिया।
अपनी याचिका में पीयूसीएल ने मांग की है कि मार्च 2017 से लेकर, जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी, इस साल अब तक जितनी मुठभेड़ हत्याए हुई हैं, उनकी जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) करे, और इस जांच की निगरानी सर्वोच्च न्यायालय का कोई अवकाशप्राप्त जज करे।
राज्य पुलिस से निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं- पीयूसीएल
याचिका में कहा गया है कि जिस बेलगाम छूट के साथ पुलिस मुठभेड़ की घटनाएं हो रही हैं, उससे पता चलता कि इन्हें राज्य सरकार का खुला समर्थन मिला हुआ है। याचिका में कहा गया है कि कई मौक़ों पर योगी आदित्यनाथ के ऐसे बयान आये हैं, जो जिन मुठभेड़ हत्याओं को जायज ठहराते हैं और इन्हें प्रोत्साहित करते हैं।
पीयूसीएल का कहना है कि ऐसी स्थिति में राज्य पुलिस से निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं है, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय इन हत्याओं की जांच सीबीआई से कराने का आदेश दे।
1100 ज़्यादा मुठभेड़ों में 49 लोग मारे गये और 370 घायल
पीयूसीएल की याचिका में 31 मार्च 2018 तक की मुठभेड़ हत्याओं के आंकड़े दिये गए हैं। इसमें कहा गया है कि सार्वजनिक तौर पर जो जानकारी मौजूद है, उसके मुताबिक राज्य में पिछले साल मार्च 2017 से लेकर इस साल मार्च 2018 तक 1100 ज़्यादा मुठभेड़ें (एनकाउंटर) हुईं, जिनमें 49 लोग मारे गये और 370 लोग घायल हुए। याचिका में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिये गये आंकड़े का उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि 1 जनवरी 2017 से 31 मार्च 2018 के बीच इन मुठभेड़ों में 45 लोग मारे गए।
लिखी गई न एफ़आरआई, न हुई मजिस्ट्रेटी जांच, न दर्ज़ हुआ मुक़दमा
उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा जारी किये गए ब्यौरे के अनुसार, 20 मार्च 2017 से लेकर 7 जुलाई 2018 तक पुलिस मुठभेड़ या एनकाउंटर की घटनाएं 1400 से उपर हो चुकी हैं, जिनमें 61 लोग मारे जा चुके हैं। पुलिस की निगाह में ये सभी शातिर बदमाश थे। हर जगह मुठभेड़ की कहानी व तौर-तरीक़ा लगभग एक जैसा था और पैटर्न भी एक-दूसरे से मिलता-जुलता था। इन मुठभेड़ों में से हर एक की जो विधि-सम्मत जांच-पड़ताल सरकार को करानी चाहिये थी, जिसके बारे में सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट निर्देश है, वह नहीं हुई। न एफ़आरआई लिखी गयी, न मिजिस्ट्रेटी जांच हुई, न मुक़दमा दर्ज़ हुआ।
जो 61 लोग इन मुठभेड़ हत्याओं के शिकार हुए उनमें से 27 मामलों में पुलिस विभाग ने जांच कर अपने को पाक साफ़ घोषित कर दिया। शेष 34 मामलों की जांच अभी होनी है। जिन मामलों की अभी जांच होनी है, वह कुल मुठभेड़ हत्याओं का 50 प्रतिशत से ज़्यादा है।
योगी आदित्यनाथ की भाषा कानून और विधि-विधान की नहीं
ग़ौर करने की बात है कि राज्य में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के ठीक पहले के तीन सालों (2014, 2015 और 2016) में मुठभेड़ की घटनाएं कुल 16 हुईं। योगी सरकार बनने के बाद इन घटनाओं में जिस तरह अचानक बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है, उसमें लोकसभा में भी चिंता जताई जा चुकी है।
पीयूसीएल ने अपनी याचिका में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ द्वारा बार-बार दिए गए इस बयान को उद्धृत किया है कि अपराधी या तो जेल जाएंगे या मुठभेड़ों में मार डाले जाएंगे।
याचिका में पिछले साल 19 नवंबर को दिये गए मुख्यमंत्री के बयान का हवाला दिया गया है कि जो लोग समाज की शांति को भंग करना चाहते हैं और बंदूक में विश्वास करते हैं, उन्हें बंदूक की भाषा में जवाब दिया जाएगा।
पीयूसीएल का कहना है कि यह कानून और विधि-विधान की भाषा नहीं है।
पुलिस के हाथों की गई निर्मम हत्याएं - रिहाई मंच
एक अन्य मानवाधिकार संगठन रिहाई मंच ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में, ख़ासकर आज़मगढ़ ज़िले और उससे सटे इलाक़े में, फ़र्ज़ी पुलिस मुठभेड़ की व्यापक जांच-पड़ताल की है। रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने बताया कि पिछले दिनों जिस तरह 5 लोगों – मोहन पासी, रामजी पासी, जयहिंद यादव, मुकेश राजभर और राकेश पासी—को पुलिस ने मुठभेड़ दिखाकर मार डाला, वह पुलिस की पोल-पट्टी खोल देता है। इन सभी तथाकथित मुठभेड़ों की तौर-तरीक़ा कमोबेश एक जैसा था, और यह पुलिस के हाथों की गई निर्मम हत्याएं थीं।
पता चला है कि आज़मगढ़ ज़िले के कंदरापुर थाने के दारोग़ा ने राजीव यादव को टेलीफ़ोन पर गालियां दी हैं और उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी है। राकेश पासी की मुठभेड़ हत्या इसी इलाक़े में हुई थी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। लखनऊ में रहते हैं।)


