मैं रोज जर्नलिस्ट क्म्युनिटी (Journalist community) का साइट खोलता हूँ इस उम्मीद के साथ कि जगमोहन फुटेला (Jagmohan Phutela)फिर सक्रिय हो गया होगा। ग्रोवर साहब अब नोएडा आ गये हैं और उन्होंने फोन पर आश्वस्त किया था कि फुटेला खतरे से बाहर हैं। फुटेला किछा से हैं और ठीक 16 किमी दूर मेरा घर बसंतीपुर में। किछा में हमारे पुराने मित्र कवि मदन पांडे भी शिक्षक थे। किछा से हैं बीबीसी हिंदी के हमारे मित्र राजेश जोशी भी। राजेश लंदन से दिल्ली आ गये हैं, यह हमारे फिल्मकार मित्र राजीव कटियार से मालूम हुआ। हिमालयी आपदा के बेहतरीन कवरेज के लिये उसे बधाई देना बाकी था। फिर उसका फोन आया। वहीं पुराना जनसत्ताई अंदाज। लम्बी चौड़ी बातें हुयीं। उसने बताया कि फुटेला के घर में बात हुयी है और अभी हालत बेहतर है।

मैं बार बार रिंग किये जा रहा था और उधर से स्विच ऑफ। बेचैनी बढ़ती जा रही थी। हारकर सविता ने कहा कि घर पर भाई पद्दोलोचन से कहो कि पता लगाये कि क्या हाल है।

हमने फेसबुक और ब्लागों के जरिये दिल्ली और चंडीगढ़ के पत्रकारों से फुटेला का ख्याल रखने का आवेदन किया था। भड़ास में खबर आ गयी थी। उसके बाद भी सोशल मीडिया में खबरें आती रही। लेकिन अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि चंडीगढ़ और दिल्ली के पत्रकारों ने फुटेला के परिजनों से सम्पर्क नहीं साधा। इतने लम्बे पत्रकारिता जीवन में हमारे सहकर्मी कम नहीं होते। विडम्बना है कि हर पत्रकार अकेला होता है। आज फुटेला इस अकेलेपन का शिकार है। कल हम भी होंगे।

हमारे प्रिय कवि गिरदा अक्सर बूढ़ी रंडी की मिसाल दिया करते थे। उस कविता की हालत से पत्रकारों की दुर्गति कोई अलहदा नहीं होती। सारे सम्पर्क और कनेक्शन धरे के धरे रह जाते हैं। बाकी पेशाओं में लोग एक दूसरे की खबर लेते हैं। साथ भी खड़े होते हैं पर मीडिया में यह मिसाल कम ही है। इस धारा को पलटने की कोशिश में हैं यशवंत जैसे युवा तुर्क। हमारी दुनिया की खबरें भी रोशन होने लगी हैं लेकिन हालात नहीं बदले हैं।

फुटेला मिसाल हैं। तेज तर्रार यह पत्रकार ब्रेन स्ट्रोक के बाद पैरालिसिस (Paralysis after brain stroke) के शिकार हैं। बेटा हरियाणा में मजिस्ट्रेट है। उसकी पत्रकारिता की दुनिया में कोई पहचान नहीं है। पत्रकारिता के तनाव और समस्याओं के बारे में भी मालूम नहीं है।

आज शाम फिर कोशिश की तो उसने फोन उठाया। फुटेला को मधुमेह भी है। इंसुलिन लगता है सुबह शाम। दिमाग में क्लॉटिंग की वजह से ब्रेन स्ट्रोक (Brain stroke due to clotting in the brain) हुआ। बीपी नॉर्मल है। बाकी कोई दिक्कत भी नहीं है। जितनी जल्दी हो दिमाग की क्लोटिंग हटाये जाने की जरुरत है। अभी फिजियोथेरापी चल रही है।

गनीमत है कि फुटेला होश में हैं और सबको पहचान भी रहे हैं। मित्रों को भी पहचान लेंगे। हमारी दिक्कत यह है कि चंडीगढ़ कोलकाता से पहुँचना हमारे लिये अब हर मायने में असम्भव है। हमारे साधन भी इतने नहीं हैं कि पहुँचकर वहाँ हम उसकी या परिजनों की कोई मदद कर सकते हैं। लेकिन मीडिया अभी कॉरपोरेट हैं। हमारे कई मित्र बड़े-बड़े सम्पादक और समर्थ लोग हैं। वे चाहे तो फुटेला और उनके परिजनों के सात खड़े हो सकते हैं।

हाल में कैंसरको जीतकर लौटा है फुटेला। अब हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि जल्द ही वह बोलने और लिखने लगेगा। इसके साथ ही अपनी भी खैर मना रहे हैं हम कि न जाने कौन कहाँ फुटेला की तरह ऐसा अकेला हो जाये कि उसकी दुनिया को न उसकी खबर हो और न परवाह। यह नौबत हममें से किसी के साथ भी आ सकती है। छँटनी के बाद जैसे हमारे लोग सड़कों पर आ रहे हैं और हमारे तमाम महामहिम खामोश हैं तो परिजनों का ही भरोसा है।

एकबार फिर, दिल्ली और चंडीगढ़ के मित्रों से आवेदन है कि अगर वे फुटेला के साथ खड़े हो सकें तो मेहरबानी होगी। कम से कम हमें अच्छी बुरी खबरें मिलती रहेंगी।

पलाश विश्वास