बजट पर प्रतिक्रिया, क्या कारपोरेट ही देश चला रहा है और सरकार बिचौलिया है जो जनता से छीनकर कारपोरेट के हवाले कर रही है सारा कुछ

कल हमने लिखा थाः

बजट- पेश होना है जनसंहार की नीतियों का कारपोरेट दस्तावेज

http://www.hastakshep.com/oldintervention-hastakshep/ajkal-current-affairs/2015/02/28/बजट-पेश-होना-है-जनसंहार-की

इस पर आखिरकार एक अदद प्रतिक्रिया हस्तक्षेप पर टंग गयी है।
Dr.Ashok Kumar Tiwari

अम्बानी के एजेंट मोदी प्राइम मिनिस्टर बन गए हैं - मुकेश अम्बानी देशवासियों के शरीर पर लंगोटी भी नहीं रहने देंगे ! और सब लेकर स्विटजर्लैंड भाग जाएगा !! अभी भी सम्हल जाओ नीचे से ऊपर तक सबको रिलायंस ने खरीदा हुआ है तभी तो नीरा राडिया टेप मामले पर न्यायालय भी चुप है !!! ऐसे ही देशद्रोहियों मैं लड़ रहा हूँ ! मोदी के घनिष्ठ मित्र अम्बानी के रिलायंस टाउनशिप जामनगर (गुजरात ) के बारे में आप जानते नहीं हो - वहाँ आए दिन लोग आत्महत्याएँ कर रहे हैं ! उनकी लाश तक गायब कर दी जाती है या बनावटी दुर्घटना दिखाया जाता है और इस अन्याय में कांग्रेस-बी.जे.पी.मोदी बराबर के जिम्मेदार हैं — इन सब का विनाश होना ही चाहिए ——क्योंकि ये सभी आँखें बंद करके रिलायंस के जघन्य अपराधों को मौन स्वीकृति दे रहे हैं —- इन बातों की जरा भी आहट लग जाती तो मैं अपनी परमानेंट डी०ए०वी० की नौकरी छोड़कर यहाँ नहीं आता, मेरी पत्नी सेल की सरकारी नौकरी छोड़कर यहाँ नहीं आतीं इसलिए हम चाहते हैं कि नौकरी के लालच में इन लोगों के झांसे में कोई और न फंसे और ये बताना धर्म और ईमान का काम है विशेषकर मीडिया पर्सनल की ये जिम्मेदारी भी है पर रिलायंस के आगे सब चुप हैं, रिलायंस वाले कहते भी हैं हम सबको ख़रीदे हुए हैं, आए दिन वहां लोग आत्महत्याएं करते हैं पर पैसे की महिमा ..सब शांत रहता है, गरीब को जीने का जैसे हक़ ही नहीं है ५) मैंने कई पत्र स्थानीय थाने के इंचार्ज से लेकर मुख्यमंत्री गुजरात तक को लिखा है - बी.जे.पी. के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह, महामहिम राज्यपाल गुजरात, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति महोदया के यहाँ से चीफ सेक्रेटरी गुजरात को पत्र भी आया है पर वे उसे दबाकर बैठे हैं, गुजरात में सब रिलायंस की हराम की कमाई डकार कर सो रहे हैं इसलिए मैं आप लोगों की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहा हूँ । मदद करो मित्र !! ये हिंदी और हिदुस्तान की अस्मिता का सवाल है !!!
बजट पेश हो चुका है जो जैसा मैंने राष्ट्रपति के अभिभाषण, आंकड़ों, परिभाषाओं, पैमानों, आधार वर्ष में परिवर्तन, उत्पादन प्रणाली के ताजा हाल, तेल कीमतों, सीआईआई और फिक्की के बयानों, प्रधानमंत्री के सबकुछ साध लेने के करिश्मे, फेंस के इधर-उधर होते क्षत्रपों की गतिविधियों, डाउकैमिकल्स और मनसेंटो के उद्गारों, बगुला जममात के विश्लेषणों और मिलियनर बिलियनर जमात में संसदीय सहमति के रंगकर्म और लीक हुए बजट दस्तावेजों के मद्देनजर कारपोरेट लाबिइंग और कारपोरेट फंडिंग, मीडिया हाइप, विकास दर बवंडर, आर्थिक समीक्षा, सेनसेक्स मे सांढ़ों की उछल कूद और विदेशी निवेशकों के दबाव तमाम पहलुओं पर गौर करने के बाद मानकर चला था कि रेल बजट की तरह यह बजट भी राजनेताओं, मीडिया और जनता को कारपोरेटफाइन प्रिंट की लाख वाट रोशनी के आर्क लाइट से मंत्रमुग्ध कर देगा और खूब तालियां पीटेंगी जैसा कि फिल्मों में चरमोत्कर्ष पर दर्शकों की आम प्रतिक्रिया होती है, हूबहू वैसा ही हुआ है।

बजट पर प्रतिक्रिया - बजट पर चर्चा से पहले इस परिदृश्य को समझना बहुत जरूरी है।

क्योंकि हिंदुस्तानी तमाम बस्तियां उखाड़ी जा रही है और देश हमारा विदेश हुआ जा रहा है। उखड़े और उजाड़े जाने वाले, मारे जाने वाले हिंदुस्तानियों और हमारे बीच खून से लबालब एक समुंदर है। उस समुंदर के बीचोंबीच खड़े होने के बावजूद खून का कोई छींटा हमें स्पर्श नहीं कर रहा है।

हमारे एक जिद्दी मित्र हैं जो नोबेल पुरस्कार को सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा मानते हैं। जो मानते हैं कि अर्थशास्त्र का कोई नोबेल नहीं है। वे किताबें लिख चुके हैं और सुप्रीम कोर्ट तक लड़ रहे हैं। वे परमाणु वैज्ञानिक हैं और एलएलएम हैं। उनका कहा है कि बचत का यह फंडा फर्जीवाड़ा है।

हमारी मानें तो यह बजट शारदा फर्जीवाड़ा का हिंदुत्व संस्करण है।

कल हमने लिखा कि अफसोस के साथ लिखना पढ़ रहा है कि चूंकि बजट सीधे तौर पर कारपोरेट दस्तावेज हैं जिसे कारपोरेट के सबसे विशेषज्ञ दक्ष लोगों ने तैयार किया है तो या तो लोग बजट समझ नहीं रहे हैं या फिर जानबूझकर असलियत बताने के सिवाय आम जनता को गुमराह कर रहे हैं।

गौरतलब है कि हिंदी पत्रकारिता के हालिया सबसे बड़े आइकन, जो संजोग से बंद होने से पहले तक मुंबई जनसत्ता में थे, बजट पेश होने से पहले सीआईआई और फिक्की के मुखातिब थे, जो बार-बार विकास और सुधार की अनिवार्यता का हवाला देते हुए निर्माण विनिर्माण के लिए रियायतें, सहूलियतें और देशी विदेशी पूंजी के लिए निवेश का माहौल मांग रहे थे, उनसे सीधे तौर पर पूछ लिया उनने कि क्या कारपोरेट ही देश चला रहा है और सरकार बिचौलिया है जो जनता से छीनकर कारपोरेट के हवाले कर रही है साराकुछ।

हम उनके सवाल से बाग बाग हो गये। अमलेंदु के साथ बजट विमर्श में हमने खुशी भी जताई कि चलो मीडिया जनता के साथ असलियत साझा भी करने लगा है।

बजट पेश होने के बाद फिर वही एंकर, वही चैनल और पैनल बहुरंगी , बहुआयामी, सुर लेकिन एक ही है कि वाह, अद्भुत सुंदर अभूतपूर्व बजट है। बजट नहीं सोच है। विकास के रास्ते पर देश है। मीडिया के तमामो बाइट एक ही सुर बंधे हैं। अब फिर सोने की चिड़िया है भारत।

जबकि असल में हुआ वही है, जो एंकर जी सुबह सुबह पूछ रहे थे लेकिन अब उस सवाल का अता पता नहीं है।

पलाश विश्वास