रणधीर सिंह सुमन
नरेन्द्र मोदी की जगह अगर भारत के प्रधानमंत्री आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत होते तो नागपुर से सन्देश सरकार को देने के लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता। अयोध्या में राम मंदिर, संविधान से अनुच्छेद 370 का खात्मा, पूर्ण गौहत्या निषेध के साथ देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने में कोई परेशानी या दिक्कत नहीं होती। अब कहो नरेन्द्र मोदी बड़े हैं या मोहन भगवत ?
नागपुर की प्रयोगशाला से नेहरु और पटेल के सम्बन्ध में तरह-तरह की अफवाहबाज़ कहानियां नेट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व प्रिंट मीडिया प्रचारित की जा रही हैं जबकि वस्तुस्तिथि इसके विपरीत है। संघ का, अपने जन्मकाल 1925 से लेकर 1947 तक, इस देश की आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं रहा है। नेहरु, पटेल इस देश की जंग-ए-आजादी के नायक रहे हैं और महानायक महात्मा गाँधी थे। संघी भक्त नाथू राम गोडसे ने गाँधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी उसका कोई प्रयाश्चित नागपुर न करके केरल के संघी मुखपत्र में नेहरु की हत्या की बात करता है। आजादी की लड़ाई में भाग न लेकर आज वह सबसे बड़े देश प्रेमी व देश भक्त हैं। इसके विपरीत जो धाराएँ आजादी की लड़ाई लड़ रही थी उसमें छोटा व बड़ा बताने का काम संघियों के अलावा किसी के पास नहीं है। आज वह बड़ी बेशर्मी से यह अफवाह फैलाते हैं कि अगर देश के प्रधानमंत्री पटेल हुए होते तो देश विकास की नयी उचाईयों पर और आगे बढ़ा होता। यह बात कहकर संघी आजादी की लड़ाई में कोई योगदान न होने के बाद छिपाने की कोशिश करते हैं। संघ प्रशिक्षित कई बड़े नेता ब्रिटिश साम्राज्यवाद के लिए मुखबिरी करने का काम करते रहे हैं।
पटेल व नेहरु के बीच कोई विवाद नहीं था। यह वह लोग थे जो मानव के बजाय महा मानव थे।

आई बी एन खबर के पंकज श्रीवास्तव के ब्लॉग में नेहरु पटेल का पत्र व्यवहार प्रकाशित हुआ है जो इस प्रकार है-
1 अगस्त 1947 को पंडित नेहरू ने पटेल को लिखा- 'कुछ हद तक औपचारिकताएँ निभाना जरूरी होने से मैं आपको मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने का निमंत्रण देने के लिए लिख रहा हूँ। इस पत्र का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि आप तो मंत्रिमण्डल के सुदृढ़ स्तम्भ हैं।'

जवाब में पटेल ने 3 अगस्त को नेहरू के पत्र के जवाब में लिखा- 'आपके 1 अगस्त के पत्र के लिए अनेक धन्यवाद। एक-दूसरे के प्रति हमारा जो अनुराग और प्रेम रहा है तथा लगभग 30 वर्ष की हमारी जो अखण्ड मित्रता है, उसे देखते हुए औपचारिकता के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता। आशा है कि मेरी सेवाएँ बाकी के जीवन के लिए आपके अधीन रहेंगी। आपको उस ध्येय की सिद्धि के लिए मेरी शुद्ध और सम्पूर्ण वफादारी और निष्ठा प्राप्त होगी, जिसके लिए आपके जैसा त्याग और बलिदान भारत के अन्य किसी पुरुष ने नहीं किया है। हमारा सम्मिलन और संयोजन अटूट और अखण्ड है और उसी में हमारी शक्ति निहित है। आपने अपने पत्र में मेरे लिए जो भावनाएँ व्यक्त की हैं, उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूँ।

2 अक्टूबर 1950 को इंदौर में एक महिला केंद्र का उद्घाटन करने गये पटेल ने अपने भाषण में कहा- 'अब चूँकि महात्मा हमारे बीच नहीं हैं, नेहरू ही हमारे नेता हैं। बापू ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था और इसकी घोषणा भी की थी। अब यह बापू के सिपाहियों का कर्तव्य है कि वे उनके निर्देश का पालन करें और मैं एक गैरवफ़ादार सिपाही नहीं हूँ।'

ये सारे पत्र अहमदाबाद के नवजीन प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक 'सरदार पटेल के चुने हुए पत्र (1945-50)' में मौजूद हैं।