बजट- पेश होना है जनसंहार की नीतियों का कारपोरेट दस्तावेज
बजट- पेश होना है जनसंहार की नीतियों का कारपोरेट दस्तावेज
बजट - विकास गाथा मेकिंग इन में हमारा पक्ष क्या और हमारा प्रतिरोध क्या
आज के अखबारों को पढ़ने और राजनेताओं के बयानात पर गौर करने क बाद बेहद अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि अर्थव्यवस्था या तो लोग समझ ही नहीं रहे हैं या फिर अपने अपने हितों के मुताबिक जनता को असलियत न बताकर गुमराह कर रहे हैं।
ऐसा भी लग रहा है कि जैसे बगुला जमात कारपोरेट है, उसीतरह कारपोरेट प्रबंधन के लोग अपनी पूरी विशेषज्ञता और दक्षता के साथ नीति निर्धारण के साथ साथ बजट भी बना रहे हैं, जिसे हमारे बिलियनर मिलियनर जन प्रतिनिधि या तो सिरे से समझ नहीं पा रहे हैं या पिर समझकर भी आयं बायं कह बोल रहे हैं।
रेल बजट का सारा मामला यात्री सहूलियतों का बन गया है।
आठ प्रतिशत की विकासदर वाली आर्थिक समीक्षा की चीड़फाड़ नहीं हुई।न बदलते आंकड़ों, परिभाषाओं, पैमानों और कारपोरेट फाइन प्रिंट की कोई चर्चा हो रही है।
जैसा कि छत्तीसगढ़ में फतवा जारी हो गया है कि सरकारी कर्मचारी संघपरिवार में शामिल जरूर हों, वैसे ही कोई करिश्मा हो गया है कि हम सबकी पूंछ निकल आयी है और हम सारे लोग रातोंरात बजरंगी हो गये हैं। हम केसरिया कारपोरेट चश्मे से ही धर्मांध दिलोदिमाग से सामाजिक यथार्थ और चुनौतियों के मुखातिब हैं और आइने में अपनी बेढब शक्ल से बेखबर सेल्फी पोस्ट में तल्लीन हैं।
जैसे कि आप की सरकार बिजली आधा, पानी माफ तो कर चुकी है, लेकिन निराधार आम जनता के पक्ष में उसके बोल फूट नहीं रहे हैं। आप की सरकार है और बिन आधार सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के तहत निराधार आम जनता को गिरती तेल कीमतों के बावजूद यात्री किराया में इजाफा न करके मालभाड़े में इजाफा करके दाने दाने को मोहताज बनाने का इंतजाम है और वह दाना भी बिन आधार मयस्सर नहीं है।
कारपोरेट फंडिंग, कारपोरेट लाबिइंग की बदौलत जो बजट पेश होने जा रहा है, वह राष्ट्रपपति के केसरिया कारपोरेट मेकिंग इन की तार्किक परिणति नियतिबद्ध है और रेल बजट का गीता महोत्सव जारी रहना है। बेदखली और जनसंहार की नीतियों का कारपोरेट दस्तावेज पेश होना है। आर्थिक समीक्षा इसकी पृष्ठभूमि है, जिस पर चर्चा हो नहीं रही है।
रेल बजट के सिलसिले में जैसे योजनाओं, परियोजनाओं, राजस्व और संसाधन प्रबंधन, पूंजी और बहुपक्षीय पूंजी, निजीकरण, विनिवेश और कारपोरेटीकरण के साथ मुकम्मल मेकिंग इन गुजरात, मेकिंग इन अमेरिका की चर्चा से लोग परहेज कर रहे हैं, वैसे ही कारपोरेट शत प्रतिशत हिंदुत्व के परिप्रेक्ष्य में संसद में पेश लीक बजट पर चर्चा नहीं होनी है और जनता को सूचना देने की हर कयावद निषिद्ध हो गयी है। लब पर ताला जड़ा है कि खुल्ला बाजार है।
विकास गाथा मेकिंग इन में हमारा पक्ष क्या और हमारा प्रतिरोध क्या
अब हम तो ठहरे मामूली ब्लागर। पेशेवर पत्रकारिता, का कवच कुंडल भी उतरने वाला है। घर बाहर चक्रव्यूह में निःशस्त्र फंसा हूं।
ऐसे में आज का रोजनामचा एक विदेशी ब्लागर की कुर्बानी पर चर्चा किये बिना शुरु करना अपराधकर्म ही होगा।
हम सभी जान रहे हैं कि बांग्लादेश में भाषाई राष्ट्रीयता के खिलाफ धर्मोन्मादी राष्ट्रीयता का गृहयुद्ध भयंकर चला रहा है। विपरीत रपरिस्थितियों में भी वहां जनता का धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक मोर्चा बना हुआ है।
बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की, मातृभाषा आंदोलन के इतिहास बोध और किसान आंदोलनों की निरंतरता के तहत ही यह मोर्चा हर साल बुद्धिजीवियों, छात्रों, महिलाओं, कवियों, पत्रकारों और ब्लागरों की सैकड़ों कुर्बानियों की नींव पर बना है।
और हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में उस नींव की पहली ईंट नहीं लगा पाये हैं, क्योंकि इस देश में हर ईंट, हर शिला अब रामशिला है और हर पढ़ा लिखा आदमी औरत का वजूद मुकम्मल हनुमान चालीसा है।
बांग्लादेश के एक आम ब्लागर और सामाजिक कार्यकर्ता अभिजीत राय की बेरहमी से विश्व भर में प्रसिद्ध ढाका पुस्तक मेले में बेरहमी से हत्या कर दी है और इससे इस महादेश में धर्मांध राष्ट्रवाद के खिलाफ एपार ओपार बांग्ला के भूगोल को तोड़कर जन भूचाल उमड़ पड़ा है।
हस्तक्षेप में आज सुबह ही इस हत्या के खिलाफ होक कलरव वाले यादवपुर विश्वविद्यालय के छात्रों का आवाहन छपा है। कृपया पढ़ लेंः
Bangladesh Secular Blogger, Activist Abhijit Roy Killed. Jadavpur demands justice!
বাংলাদেশ ধর্মনিরপেক্ষ ব্লগার, কর্মী অভিজিৎ রায় নিহত. যাদবপুর ন্যায়বিচার দাবী!
http://www.hastakshep.com/oldবাংলা/খবর/2015/02/27/bangladesh-secular-blogger-activist-abhijit-roy-killed-jadavpur-demands-justice
वैकल्पिक मीडिया भी प्रतिरोध का ब्रह्मास्त्र बन सकता है।
शाहबाग और यादवपुर के होक कलरव ने यह साबित किया है। अरब दुनिया में वसंत बहार का किस्सा भी यही है।
शहबाग के दौरान भी ब्लागर राजीव की हत्या हुई थी।
हम बांग्लादेश में अल्पसंख्यक उत्पीड़न के किस्से हिंदुत्व के मुलम्मे में जानने समझने के इतने अभ्यस्त हैं कि यह संजोग समझना मुश्किल है कि बांग्लादेशी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक धर्मोन्माद विरोधी राष्ट्रव्यापी जनांदोलन में जिन सबसे बड़े दो ब्लागरों की हालिया कुर्बानियां हैं, वे आखिरकार हिंदू हैं।
यही नहीं, बांग्लादेश मीडिया में जो संपादक विशेष संवाददाता हैं, विश्वविद्यालयों में जो अध्यापक हैं और मंत्रालयों में जो सचिव इत्यादि हैं, उनमें ज्यादातर हिंदू दलित ओबीसी आदिवासी चेहरे, महिलाएं हैं।
जबकि हिंदू राष्ट्र हुए हिंदी हिंदू हिंदस्तान में मीडिया, राज्यतंत्र और अकादमियों में दलित ओबीसी आदिवासी चेहरे माइक्रोस्कोप लगाकर से खोजने होंगे।
इन्हीं हालात में हमारे अखबार इंडियन एक्सप्रेस में सत्ता वर्चस्व वाले मिलियनर बिलियनर जमात का जो कोलाज रंगबिंगा कारपोरेट राज्यतंत्र है और उसके मध्य जो महमहाता मांस का दरिया है पांच सितारा, उसके विलास क्रुइज सवारों के चेहरे देखें तो संसदीय सहमति और मीडिया की एफडीआई परस्ती, पीपीपी माडल, संपूर्ण रामायण महाभारत बेदखली और जनसंहार का, संपूर्ण निजीकरण, संपू्र्ण कारपोरेट केसरिया राज्यतंत्र का चेहरा कमल कमल खिलखिलाता दीखेगा।
अर्थव्यवस्था और आर्थिक मुद्दों पर जो मकड़ जाल बुना जा रहा है, वहींच यह मांस का दरिया है, जिसमें राजनेता तो हैं ही, हमारे तमाम पा्रतः स्मरणीय आइकन और तुर्रमखां क्षत्रप समुदाय और उनकी मान विचारधाराएं और प्रतिबद्धताएं हैं, जहां खरोंट तक नहीं है सामाजिक यथार्थ और चुनौतियों की, रोजमर्रे की जिंदगी की, खून की नदियों में ये विशुद्ध चेहरे हैं हमारे मेधा जनप्रतिनिधित्व और हमारे मीडिया की।
Essar Leaks: French cruise for Nitin Gadkari, favours to UPA Minister, journalists
http://indianexpress.com/article/india/india-others/essar-leaks-french-cruise-for-gadkari-favours-to-upa-minister-journalists/
पलाश विश्वास


