#बजरंगी अंध राष्ट्रवादी #हिंदुत्व का सर्वनाश कर रहे हैं और भारत वर्ष का विनाश
#बजरंगी अंध राष्ट्रवादी #हिंदुत्व का सर्वनाश कर रहे हैं और भारत वर्ष का विनाश
धर्म हमारा पाखंड है।
धर्म हमारा अंधियारा कारोबार है।
पलाश विश्वास
धर्म मनुस्मृति अर्थशास्त्र है तो मजहबी सियासत सियासती मजहब की कयामती फिजां और फासीवादी राजकाज का चरमोत्कर्ष है क्योंकि हम हजारों जातियों में बंटे हुए लोग हैं और कुल मिलाकर जाति हमारा वजूद है और लोकतांत्रिक, सहिष्णु, बहुलतावादी, सनातन हिंदुत्व को हम मिथकीय महाभारत और धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद में तब्दील करके आत्मध्वंस पर आमादा हैं और जाति समीकरणों में कैद है हमारा लोकतंत्र।
जब हम आस्था की बात करते हैं तो वह यात्रा न तो भारतीय इतिहास, भारतीय परंपरा, लोक रिवाज, साझे चूल्हे या भारतीय संस्कृति या देशी उत्पादन प्रणाली या उत्पादन संबंधों या रोजगार और आजीविका और लोक, रीति रिवाज, उत्सव मेले के नैसर्गिक स्रोत प्रकृति और पर्यावरण के साथ शुरु होती हैं।
जिन वेदों और उपनिषदों से विश्वभर में हिंदुत्व की बेजोड़ सभ्यता बतौर पहचान है, हम भूल रहे हैं, वह मुक्त बाजार की उपज नही हैं और न ही वह उपभोक्तावादी अनैतिक भ्रष्ट मुनाफाखोर सुखीलाला संसार या बिररिंची बाबा का नरसंहारी सुधार है।
वह हमारी आरण्यक सभ्यता थी, जहां हमारे पुरखों ने वैदिकी साहित्य रचा और उस धर्म में जाति व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी और न उनके महाकाव्यों से अवतरित भगवान और तैंतीस करोड़ देव देवी न थे और न उनपर रचे गये रंगबिरंगे पुराण थे, जिसे वैदिकी बताया जा रहा है और जो इस्लामी शासन के अंत अंत तक रचे गये। इसे बारत का जो इतिहास बताने से अगाते नहीं हैं, उनसे मूर्ख कोई दूसरा शख्स नहीं है।
विश्वभर में सभ्यता का विकास शरणार्थियों के जरिये हुए।
आइंस्टीन भी शरणार्थी थे।
अमेरिकाओं और आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैड जो विकसित देश है, वह भी यूरोप के आपराधिक तत्वों को कालापानी की सजा की नतीजा है।
इंग्लैंड की भाषा और सभ्यता मूलनिवासियों की नहीं है। एंगेलो सैक्सन जर्मन मूल की है।
यूरोप और दुनियाभर में सभ्यता, दर्शन, कला, साहित्य औरसंस्कृति का विकास जो हुआ, वह नवजागरण का नतीजा है, जो यूनान और इटली से दुनियाभर में सौ साल के धर्मयुद्ध का नतीजा है।
भारत में सभ्यता, संस्कृति और धर्म के विकास को रवींद्रनाथ ने भारततीर्थ कविता में बहुत बेहतरीन तरीके से परिभाषित किया है, जो सहिष्णुता और बहुलता की हमारी सभ्यता, संस्कृति और विरासत है।
वैदिकी धर्म के अनुयायी प्राकृतिक शक्तियों के उपासक थे। कोणार्क का सूर्यमंदिर और बिना पुरोहित उत्तर भारत की छठ पूजा और त्रिपुरा में आदिवासियों और गैरआदिवासियों का साझा फसल का जश्न गड़िया उत्सव इसका नतीजा है।
हमारे सारे पर्व त्योहार कृषि आजीविका और लहलहाती फसलों की खुशबू हैं, जो हमारा लोक है तो हमारा देसज अर्थशास्त्र, साझा चूल्हा और हमारी उत्पादन प्रणाली है।
वैदिकी धर्म में कोई मिथकीय देवदेवियां नहीं है और न ही मूर्ति पूजा का धर्मोन्मादी बवंडर है।
भारत में विभिन्न नस्लों आर्य, अनार्य, द्रंविड़, शक हुण मुगल पठान, अहम, मग, निग्रोइड, मंगलाइड , आस्ट्रेलाइड समुदाओं के बीच खूनखराबा कम नहीं हुआ। लेकिन सहिष्णुता, बहुलता और विविधता की साझा कोख से जनमा भारतवर्ष।
विविधता का विलय भारततीर्थ।
हम उन्हीं तत्वों की हत्या और कत्लेआम कर रहे हैं जो भारत को भारत बनाते हैं और हिंदुत्व को सभ्यता की विरासत भी बनाते हैं।
फिर हम बजरंगी अंध राष्ट्रवादी खुद को धार्मिक भी बताते हैं और देशभक्त को और जो हमसे असहमत है, उन्हें राष्ट्रद्रोही, माओवादी, हिंदूविरोधी वगैरह-वगैरह कहने से पहले तनिको नहीं सोचते कि हम हिंदुत्व का सर्वनाश कर रहे हैं और भारत वर्ष का विनाश।
आरण्यक वह वैदिकी धर्म और सभ्यता, उसकी आजीविका निर्भर वर्ण व्यवस्थाजब वर्ण वर्चस्व और वर्णभेद बनकर असमता और अन्याय का पर्याय बना तो गौतम बुद्ध ने विश्वभर में पहले रक्तहीन जन अभ्युत्थान का नेतृत्व किया और भारत बौद्धमय बना। हम पंचशील के इस इतिहास, परंपरा को बदल नहीं सकते।
बौद्धमय इतिहास के अवसान के लिए वैदिकी धर्म का अवसान भी हो गया और मनुस्मृति हमारी नियति हो गयी। मनुस्मृति के तहत जाति हमारा वजूद हो गया और हम जब भी बोलते हैं, हमारी जाति बोलती है। यह हमारी अर्थव्यवस्था है।
बाबासाहोब डा.भीमराव अंबेडकर, महात्मा ज्योति बा फूले, हरिचांद ठाकुर, बशेश्वर, संत तुकाराम, गुरु नानक, चैतन्य महाप्रभू, बीरसा मुडा, रानी दुर्गावती, टांट्या भील, सिधो कान्हों आयुश, अय्यंकाली, पेरियार और नारायण स्वामी, गुरुचांद ठाकुर, सूर तुलसी कबीर रसखान मीरा जयदेव दादु गाडगे बाबा पीर फकीर बाउल तमाम हमारे पुरखे इसी मनुस्मृति स्थाई बंदोबस्त को खत्म करके समता और न्याय की लड़ाई लड़ते रहे थे।
हम उलट इसके हिंदुत्व को नर्क में तब्दील करते हुए जाति के चुनावी समीकरण के तहत धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के तहत हजारों साल पहले, सदियों पहले खत्म तमाम विवाद नये सिरे से शुुरु करके हिंद राष्ट्र में तब्दील होने के एजंडा के साथ साथ इतिहास, परंपरा, धर्म, सहिष्णुता, बहुलता, समाजाजिक तानाबाना, अमन चैन, भाईचारा, मुहबब्त का कत्ल करते हुए, लोकतंत्र और संविधान की हत्या करते हुए आत्मध्वंसी दस दिगंत सर्वनाश का आवाहन कर रहे हैं जाति युद्ध के महाभारत रचते हुए दरअसल हम भारत और हिंदू धर्म दोनों की हत्या कर रहे हैं।
जमींदारियों और रियासतों के वंशज सिर्फ राजकाज के धारक वाहक नहीं हैं। वे भी धर्म कर्म के भी ठेकेदार हैं।
वही लोग हमारे विचारधाराओं, आदोलनों, कला संस्कृति साहित्य, माध्यमों और विधाओं के भी मसीहा, देव देवियां हैं।
बाबासाहेब ने कहा कि भारत में साम्यवाद से अच्छी कोई बात नहीं है। लेकिन साम्यवाद भी ब्राह्मणों के कब्जे में है।
तेलतुंबड़े ने उस ब्राह्मण गिरोह की चर्चा कि तो वे चेहरे अब बेनकाब हैं। सरेबाजार नंगे। जिनका जनमजात ब्राह्मण जाति से कोई ललेना देना नहीं हैं, जिनके खिलाफ बहुजनों की फर्जी लड़ाई।
ऋत्विक घटक ने ब्राह्मण गिरोह के उन्हीं चेहरों को तभी बेनकाब कर दिया था, यही उनका अपराध है।
यही भारत विभाजन की त्रासदी है जो दलितों, पिछड़ों, आदिवसियों और भारतीय स्त्री की त्रासदी है जो बागदी बउ की कथा जितनी है, जितनी सीता की त्रासदी , उतनी ही लाल नील विभाजित भारतीय जनता की आत्मकथा भी है।
लाल नीली सर्वहारा बहुजन जनता में एका नहीं हो, यही हिंदुत्व का असली एजंडा है धर्म कर्म के बहाने ताकि मनुस्मृति राजकाज जारी रहे।


