बजरंगी भाईजान की जान मुश्किल में तो समझो हिंदुत्व बवंडर का आलम क्या है!
बजरंगी भाईजान की जान मुश्किल में तो समझो हिंदुत्व बवंडर का आलम क्या है!
गड़बड़ी दरअसल यह है कि सल्लू अब किसी के प्रेमी नहीं हैं, न हीरो हैं, वे सिर्फ बजरंगी भाईजान है और हिंदू बजरंगी जनता को अपने महबूब बजरंगी भाईजान ने सदमे में डाला है।
ताज्जुब नहीं कि देर सवेर कह दिया जायेगा कि नागरिक सिर्फ खाने के लिए मुंह खोले और जुबान की कोई हरकत से परहेज करें!
बजरंगी भाईजान अभी सुपर डुपरहिट चल रही है और बाहुबलि को भी चारों खाने चित्त कर रही है।
वैसे ईद तो हमेशा बजरंगी भाईजान के नाम है और बाकी वे गणपति बप्पा के भी भक्त हैं, वैसे ही जैसे किसी बजरंगी को होना चाहिए।
धर्मनिरपेक्ष खेमे का भी वे सुपर डुपर हीरो हैं क्योंकि उनकी छत के नीचे हर मजहब के मुताबिक इबादत और दुआ होती है।
हिंदुत्व खेमे में बजरंगी भाई हालाकि अपने रोमांटिक किरदार में बेहतरीन इश्किया कारनामों के बावजूद उतने पापुलर कभी रहे नहीं हैं जबकि अब हैं पाकिस्तान से भी जयश्रीराम की गूंज पैदा करने के खातिर।
हमने बजरंगी भाईजान देखी नहीं है। हमारा अजीबोगरीब बायस है कि कूड़ा कर्कट पर वक्त जाया करना नहीं चाहिए और जिंदगी बेहद छोटी है उसे बेहतर चीजों के लिए हिफाजत से रखना चाहिए।
हर फिल्म लेकिन हम देखते नहीं हैं चाहे वह ऋत्विक घटक, मृणाल सेन, सत्यजीत राय या स्पीलबर्ग की ही क्यों न हो।
हर अखबार हम पढ़ते नहीं हैं और न हर चैनल को ब्राउज करते हैं।
किताब और पत्रिका भी हम खोलकर तब तक नहीं देखते जबतक न कि हमें मालूम हो कि वह जनता के लिए बड़ी काम की चीज है चाहे ये चीजें बकवास हों या क्लासिक हमारा मिजाज लेकिन बदलता नहीं है।
यह बुरी आदत नैनीताल की बुरी संगत का नतीजा है।
दो मिनत तक फिल्म देखकर एक रील भी पूरी होने से पहले गिरदा फतवा ठोंक देते थे, चलो उठो, हमारे काम की चीज नहीं है।
तो दूसरी ओर हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी हैं, जिनसे सिर्फ अब भी डरना पड़ता है कि कहीं से भी अमेरिका, लंदन या तोक्यो या अपने ढहते बहते हुए पहाड़ से कभी भी वे कान उमेठ सकते हैं।
उनकी सख्त पाबंदी थी कि बकवास चीजों पर अपनी ऊर्जा बरबाद नहीं करो।
बहरहाल सलमान हमारे महबूब कलाकार है क्योंकि उनकी जैसी मुहब्बत परदे पर दिलीप कुमार के बाद किसी को करते देखा नहीं है। न आमिर को और न शाहरुख को।
राज तो यह है कि बूढ़ा हुआ तो क्या जवानी का मिजाज बहाल है।
यदा कदा सलमान की फिल्में देख भी लेता हूं और अपने गिरदा और गुरुजी से मन ही मन माफी भी मांग लेता हूं कि कभी कभी दिल भी बेताब हुआ करै हैं।
बजरंगी भाईजान भी शायद देख लेता, अगर परदे पर जयश्रीराम के बोल इतने प्रलयंकर न होते और हिंदुत्व के एजंडे में यह फिल्म सिमट नहीं जाती।
महाजिन्न और बौद्ध अनुयायियों के सर कटाने वाले तमाम देवों के एकमुश्त अवतार के ग्लोबल हिंदू साम्राज्य के एजंडा मुताबिक जाहिर है कि बजरंगी भाई बेहतरीन फिल्म है और मजहबी लोगों के ब्रेन वाश का बेहद उम्दा मसाला है इसमें भरपूर है।
फिरभी एक मंतव्य से वे रातोंरात जैसे खलनायक बने हैं, वैसे असली खलनायक संजय दत्त जेल काटने के बावजूद कभी नहीं बने।
गौरतलब है कि सल्लू मियां काला हिरण मारने और फुटपाथ पर कूकूर जैसे कुछ लोगों को मारने के जुर्म में बरसों से मुकदमे के फैसले का इंतजार कर रहे हैं।
उनका यह खलनायक बन जाना जाहिरे है कि बेहद हैरतअंगेज है।
हमारी असहमति हो सकती है लेकिन किसी भारतीय नागरिक की किसी टिप्पणी पर इतना बवाल कि सारे के सारे मुद्दे गायब और कुल बहस वही।
नौटंकी राजनीति का जलवा कुल यही है कि जान मुश्किल में हैं बजरंगी भाईजान की।
आपातकाल की बात लालकृष्ण आडवाणी ने कोई बैठे ठाले नहीं की थी और न मुरलीमनोहर जोशी संघ परिवार और हिंदुत्व के खिलाफ हैं।
समझना चाहिए कि जोशी और आडवाणी को जिनने नहीं बख्शा, गोविंदाचार्य, स्वामी, जेठमलानी जैसे संघियों को जिनने दूध में से मक्खी की तरह निकाल बाहर किया, जिनने जसवंत सिंह की ठकुराई की वो गत बना दी और पुराने जमाने को याद करें तो बलराज मधोक और सिकंदर बख्त को जिनने धो डाला, उनसे और जो चाहे मांग लें हजार दफा उनकी मंकी बातें सुन लें, मगर जम्हुरियत का नाम न लें।
सुप्रीम कोर्ट में मौलिक अधिकार के बारे में उच्च विचार बिजनेस फ्रेंडली फासिज्म के राजकाज का जगजाहिर है कि नागरिकों को निजता का कोई हक नहीं। जैसे कि जलजमीन जंग पर जनता को कोई हक नहीं है और अनंत बेदखली अश्वमेध जारी है और हरिकथा विकास अनंत है।
रेलवे के निजीकरण और रिजर्व बैंक के काम तमाम होने से जो तनिको विचलित नहीं हुए, सलमान के बयान को उनने राष्ट्रीय संकट में तब्दील किया हुआ है।
ताज्जुब नहीं कि देर सवेर कह दिया जायेगा कि नागरिक सिर्फ खाने के लिए मुंह खोले और जुबान की कोई हरकत से परहेज करें, तो हम उसी तरह उन्हें पलक पांवड़े पर बिछाते रहेंगे जैसे उनके निजीकरण, उनके एफडीआई कारपोरेट राज, उनके विनिवेश, उनके विनियंत्रण, उनके डिजिटल अश्वमेध, उनके विनियमन और उनके देश बेचो ब्रिगेड के हिंदुत्व पर हम बाग-बाग हैं।
आधार अभी बने नहीं हैं।
इंफोसिस की मुनाफावसूली हो या रिलायंस और अडानी का साम्राज्य विस्तार का एजंडा हो, या शत प्रतिशत हिंदुत्व का एजंडा हो, पूरा कुछ भी नहीं हुआ है और नगाड़े तब भी खामोश दिक्खे हैं जबकि खेत खलिहान कारखाने हाट जल रहे हैं।
मरघटों का विचित्र देश है जहां समुंदर सुनामी है तो हिमालय भूकंप। लेकिन नगाड़े खामोश हैं।
आसमान बंद कारखाना है और फिंजां में कयामत है।
बायोमैट्रिक नागरिकता अब डीएऩए में तब्दील है और संसद में बिना चरचा कानून बनाने की तैयारी है।
मानसून सत्र में जनता का कोई मसला भी नहीं है। जैसे देश में कानून का राज नहीं है। देश का अबकोई संविदान नहीं है। न राजनय है। न किसी से किसी का कोई वास्ता है।
जुबान हमारी डालर है।
जिंदगी हमारी डालर है तो मौत बी वहीं डालर और अंधियारा का कारोबार जिंदगी और मौत एकमुश्त।
नौटंकी बहरहाल दिलफरेब हैं और सीन में पुरअसर सलमान कटघरे में है कि जैसे देश के तमाम जिम्मेदार नागरिकों ने याकूब मेनन की फांसी रद्द करने की मांग की है वैसे ही सल्लू भाई ने भी कह दिया कि याकूब को फांसी मत दो।
शोले के डायलाग लिखने वाले उनके वालिद का भी मानना है कि यह संवाद उनपर फिट नहीं बैठता और बेटे की जान बख्श देने की वे गुहार लगा रहे हैं।
गड़बड़ी दरअसल यह है कि सल्लू अब किसी के प्रेमी नहीं हैं, न हीरो हैं, वे सिर्फ बजरंगी भाईजान है और हिंदू बजरंगी जनता को अपने महबूब बजरंगी भाईजान ने सदमे में डाला है।
बादल फटने लगे हैं कारवां की जिद में
हम डूब में हैं और पता नहीं है हमें
सहर होगी या नहीं फिर कभी
अंधियारे के राजकाज में जाहिर
यह भी सिरे से नामालूम
हिंदू राष्ट्र में खून किसी का खौलता नहीं
कि किसी खुदा का फतवा है कि
इस देश के किसान या मजनूं है
या फिर नपुंसक सिरे से, जाहिर
कि खुदकशी कर रहे किसान
वे हरगिज नपुंसक नहीं यारो
जो बीवी से मुंह चुराते हैं
जो बोल रहा है बेखौफ वह लेकिन
सैन्य राष्ट्र के फासिज्म के लिए
बेहद खतरनाक देशद्रोही
हर शख्स लेकिन न मणिपुर है
और न छत्तीसगढ़, शुक्रिया
पलाश विश्वास


