बटला हाउस फर्जी मुठभेड़- क्रूर मीडिया से दो हाथ
बटला हाउस फर्जी मुठभेड़- क्रूर मीडिया से दो हाथ
बटला हाउस फर्जी मुठभेड़- क्रूर मीडिया से दो हाथ
मसीहुद्दीन संजरी
बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ को आठ साल होने जा रहे हैं। जिस बच्चे की आयु उस समय दस वर्ष थी अब वह बालिग़ हो गया।
दिल्ली के बटला हाउस में संजरपुर के दो लड़कों के मारे जाने की खबर गांव वालों को मीडिया से मिली।
रमज़ान का महीना, जुमा का दिन, शाम का वक्त लगभग चार बजे होंगे, लोग बाज़ार में अफ्तार का सामान खरीदने में व्यस्त थे। अचानक से लगी बाज़ार में मीडिया कर्मियों की गाड़ियों का काफला और उनमें बाहर आते बड़े बड़े कैमरों के साथ पत्रकार बंधु।
किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है?
पत्रकार गांव वालों को देख कर स्तब्ध थे कि यहां सब कुछ सामान्य कैसे है? कुछ देर तक यही स्थिति रही। फिर उनमें से एक ने सैफ के पिता के बारे में पूछा। उसके बाद पूरा काफला शादाब उर्फ मिस्टर के घर पहुंच गया। बर्फ अब भी पिघल नहीं रही थी।
एक पत्रकार का धैर्य टूटा उसने गांव के ही एक युवक से पूछ लिया कि आपके गांव के दो आतंवादी दिल्ली में मारे गए हैं और एक पकड़ा गया है, आपका क्या कहना है?
बस यह सवाल और उसके बाद बवाल हो गया।
हाथापाई शुरू हो गई। नवजवान बेकाबू होने लगे। गांव के लोगों ने उन्हें संभाला। तारिक शमीम भी उन्हीं लोगों में शामिल थे जो सबको शान्त करने में लगे थे।
तारिक शमीम, हकीम तारिक कासमी की फर्जी गिरफ्तारी के बाद आन्दोलन चला चुके थे। इस आन्दोलन की यादें अभी ताज़ा थीं।
पूरा जनपद जानता था कि तारिक कासमी को आज़मगढ़ से निहत्था उठाया गया था और दस दिन बाद बाराबंकी से गोला–बारूद के साथ गिरफ्तार दिखाया गया था।
हिरासत में अपराध स्वीकार करने के लिए उसको दी जाने वाली यातनाओं के चर्चे अभी लोगों की ज़बान पर ही थे।
जो मीडिया हकीम तारिक कासमी को लापता यूनानी डाक्टर कह कर सम्बोधित करता था, अचानक आतंकी लिखने लगा। आज़मगढ़ से उसके उठाए जाने की खबरें बाराबंकी से पकड़े गए आतंकी में बदल गयीं थीं।
वह सवाल और नवजवानों में मीडिया की यह छवि, सब कुछ के बावजूद मामला हाथापाई तक सीमित रहा। किसी को कोई चोट नहीं आई।
गांव के सामने अब नए हालात से निपटने की चुनौती थी।
आतंकवाद के ठप्पे से झूझने की, पुलिस और एजेंसियों का सामना करने की, मीडिया की। लेकिन किसी को उस समय यह आभास नहीं था कि मीडिया कितना बड़ा क्रूर हो सकता है। उसके जिस चेहरे का दर्शन अभी बाकी है वह कितना क्रूर है?


