बटला हाउस फर्जी मुठभेड़- पत्रकार के रूप में खुफिया एजेंसियों के एजेंट और वो भयानक रातें
बटला हाउस फर्जी मुठभेड़- पत्रकार के रूप में खुफिया एजेंसियों के एजेंट और वो भयानक रातें
बटला हाउस फर्जी मुठभेड़-पत्रकार के रूप में खुफिया एजेंसियों के एजेंटों का सामना करना सबसे बड़ी चुनौती थी
बटला हाउस फर्जी मुठभेड़- क्रूर मीडिया से दो हाथ
मसीहुद्दीन संजरी
आतिफ और साजिद के बटला हाउस में मारे जाने और सैफ की गिरफ्तारी की खबर के बाद एक बड़ा मामला तलाशियों का था। यह पुलिसिया कारवाई की परंपरा है।
आज़मगढ़ के लोगों को इससे पहले हकीम तारिक की गिरफ्तारी दिखाने से पहले और मुफ्ती बशर की गिरफ्तारी के बाद की तलाशी कारवाई के तांडव का अनुभव सामने था।
इसलिए रात होने तक गांव के लोगों ने एक कमेटी बना ली और तय हुआ कि पुलिस की कारवाई में कोई बाधा नहीं डाली जाएगी, लेकिन कानून की मंशा के अनुसार ही उन्हें तलाशी लेने को कहा जाएगा।
हुआ ऐसा ही रात में करीब साढ़े बारह बजे बहुत बड़ा पुलिस दल (करीब 250-300) अधिकारियों के साथ बिना किसी पूर्व सूचना के गांव में प्रवेश कर गया।
गांव वाले भी इकट्ठा हो गए।
थानाध्यक्ष कमलेश सिेंह ने गाली और धमकी से शुरूआत की लेकिन गांव वाले डटे रहे।
मौके पर मौजूद बड़े अधिकारियों ने बात को संभाला और गांव के दो सम्मानित लोगों की मौजूदगी में तलाशी शुरू हुई और सब कुछ शान्ति से निपट गया।
लेकिन एक सवाल का जवाब अब तक नहीं मिला कि गांव से लगी बाज़ार में रोड पर बैग लदी हुई जिप्सी पुलिस की गाड़ियों के साथ क्यों आई थी और उन बैगों में क्या था?
उसके बाद कई तलाशियां हुयीं लेकिन माहौल में कोई गर्मी नहीं थी।
पत्रकारों के सवालों के जवाब देना और पत्रकार के रूप में खुफिया एजेंसियों के एजेंटों और प्रशासन के दलालों के छोड़े गए तीरों का सामना करना अब सबसे बड़ी चुनौती थी।


