बटुक संघ को आजादी की लड़ाई में "भारत माता की जय "बोलने से किसने रोका था ? वैसे ही इन दिनों वे यह नारा क्यों बोल रहे हैं?
बटुक संघ को आजादी की लड़ाई में "भारत माता की जय "बोलने से किसने रोका था ? वैसे ही इन दिनों वे यह नारा क्यों बोल रहे हैं?
कुछ बातें आरएसएस के बारे में-
अनेक मित्र पूछ रहे हैं बटुकसंघ का क्या अर्थ है? मित्रों, बटुकसंघ फैनेटिक गिरोह है, जो सभ्यता-कानून -संविधान किसी को नहीं मानता। मैं इनको बटुकसंघ कहता हूँ। यह गिरोह है जो मोदी युग की नाजायज औलाद है। इसको किसी संगठन से जोड़कर न देखा जाए। अनेक लोग इसे आरएसएस से जोड़कर देखते हैं, लेकिन मैं नहीं। बटुकसंघ के लोग किसी भी दल में हो सकते हैं, दलविहीन भी हो सकते हैं। बटुकसंघ नई राजनीतिक पौध है, यह उत्पाती पौध है। हमेशा खुजली करते रहते हैं।
निरूद्देश्य "भारत माता की जय "बोलने का अर्थ है गोया यह नारा सिर्फ बटुकों की अराजक राजनीति के लिए पैदा हुआ था!!
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बटुक संघ को आजादी की लड़ाई में "भारत माता की जय "बोलने से किसने रोका था ? वैसे ही इन दिनों वे यह नारा क्यों बोल रहे हैं?
पहले बटुकसंघ अंग्रेजों की गुलामी के कारण चुप था, इन दिनों बहुराष्ट्रीय कंपनियों की गुलामी के कारण यह नारा बोल रहा है, दोनों समय एक ही लक्ष्य था सामाजिक विभाजन बनाए रखना।
सवाल नारे का नहीं सवाल यह है नारे कौन बोल रहा है और क्यों बोल रहा है? मसलन्,चाकू तो चाकू है, बदमाश उसका हिंसा के लिए इस्तेमाल करता है ,जबकि डाक्टर उसका आपरेशन के लिए इस्तेमाल करता है। यही दशा "भारत माता की जय" नारे की है। गांधीजी जब भारत माता की जय कहते हैं तो अर्थ ही भिन्न होता है और जब नाथूराम गोड़से कहता है तो अर्थ ही अलग होता है।
नारे में अर्थ नहीं होता, नारे का अर्थ लगाने वाले की मंशा में होता है। बटुक संघ इस नारे का सामाजिक तनाव और विभाजन पैदा करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है।
राष्ट्रवाद आज के दौर में एक गैर- जरूरी मुद्दा है, भाजपा के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए विपक्ष के बुर्जुआदलों में राष्ट्रवादी दिखने की नकली चमक नजर आ रही है। कांग्रेस और भाजपा ने मिलकर इस देश की संप्रभुता को दांव पर लगाते हुए नव्य आर्थिक नीति का जो मार्ग चुना उसमें राष्ट्र की संप्रभुता पर बुरा असर हुआ। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की खुली लूट के ये दोनों दल समर्थक हैं। ऐसे में इन दलों के मुँह से भारत माता की जय का नारा सुनकर तकलीफ होती है। इस दृष्टि से देखें तो ये दोनों दल ऱाष्ट्रवाद के नाम पर जनता को एक -दूसरे को लड़ाने की मुहिम में जुट गए हैं।
हम मांग करते हैं राष्ट्रवाद की यह नकली बहस तुरंत बंद होनी चाहिए। भारत को स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रवाद नहीं लोकतंत्र चाहिए। राष्ट्रवाद की मौजूदा मुहिम लोकतंत्र को कमजोर करने वाली है, यह बहस आम जनता की रीयल समस्याओं से ध्यान हटाने की कोशिश है। बटुक संघ राष्ट्रवाद के नाम पर लोकतांत्रिक हकों और संवैधानिक हकों पर हमले कर रहा है।
देश एकदम रामराज्य के हाथों में आ चुका है, जैसे देश की राजधानी की खबर पहले गायब रहती हैं, पीएम मस्त रहते हैं, पहले यूपी की बलात्कार और गुंडागर्दी की खबरों से उनकी नींद हराम थी,अब पीएम चैन की नींद सो सकेंगे, बस गुंडे विधायकों के लिए रेगुलर माल सप्लाई, पद आदि तय हो जाते! यूपी स्वर्ग में दाखिल होने को आतुर है !
बुरा हो मोहन भागवत का ससुरा जल्दी फैसला ही नहीं ले रहा !
यूपी तो स्वर्ग के दरवाजे पर खड़ा है, भक्तगण देवतातुल्य विधायकों को पाकर गदगद हैं!
एकबार मोहन भागवत बोल भर दें तो बस यूपी में फासिज्म नहीं चंडी नृत्य होगा, आपका निवेश पूरा मजा देगा, बस, शो शुरू होने तो दो! पार्टी तो अभी बाकी है !
एक होती है बौद्धिक ईमानदारी और एक है बौद्धिक कमीनापन। बटुकसंघ सचेत रूप से बौद्धिक कमीनेपन के जाल में शिक्षितों को फंसाने में लगा है। वे जितने दांव चल रहे हैं, लगातार मात खा रहे हैं। खासकर जेएनयू के 9 फरवरी के मामले में वे लगातार तरह-तरह के दांव फेंक रहे हैं, लेकिन सारे दांव बौद्धिक कमीनेपन की मिसाल बनकर रह गए। जेएनयू के अधिकांश शिक्षक और छात्र आज इसको समझ चुके हैं।


