दलित दूल्हे की बिन्दोली - संघर्ष और विजय की एक रोमांचक कहानी
इसे किसी समुदाय की हार या जीत के रूप में नहीं बल्कि मानवता और संविधान की विजय के रूप में लिए जाने की जरूरत है, इससे यह भी साबित हुआ कि अगर किसी भी गाँव में एक परिवार भी चाहे तो परिवर्तन आ सकता है और सब लोग अगर मिलकर प्रयास करें तो जीत सामान्य नहीं रह कर भादवो की कोटड़ी जितनी बड़ी हो सकती है
भंवर मेघवंशी राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के सीमावर्ती गुलाबपुरा उपखंड के भादवों की कोटड़ी गाँव में आखिर 3 फरवरी की रात दलित दूल्हे चन्द्रप्रकाश बैरवा की घोड़ी पर बैठ कर बिन्दोली बहुत ही शान से निकाली गयी, मंगल गीत गाये गए, बैंड बाजे बजाये गये, लोग खूब नाचे और सबसे बड़ी बात यह हुई कि एक शादी में जगह जगह जय भीम और जय जय भीम के गगनभेदी नारे भी गुंजायमान होते रहे। ज्यादातर मनुवादी घरों के दरवाजे बंद करके इस परिवर्तन से नजरें चुराते रहे, लेकिन गाँव के कई प्रगतिशील लोगों ने दूल्हें को शगुन भी दिया और उसके साथ फोटो भी खिंचवाये।
घुड़सवार दूल्हे के चेहरे की चमक और उसके परिवार के दमकते उमगते हँसते और मुस्कराते चेहरे देखने लायक थे, उनको एक जंग में जीत जाने जैसा अहसास हो रहा था। खुशियाँ इतनी अपार थी कि संभाले नहीं संभल रही थी।

इस परिवर्तनकामी कार्य में सहभागी होने के लिए राज्य भर से लोग बिना किसी आमंत्रण या निमन्त्रण के भादवों की कोटड़ी पंहुचे थे, इनके उत्साह को देखना भी एक अद्भुत क्षण से साक्षात् करने सरीखा था। सबको संतोष था कि वे सैंकड़ों साल की ऊँच नीच की मनुवादी व्यवस्था के ताबूत में आखिरी कील ठोंकने के इस अभियान में सहभागी बने हैं।
इस संघर्ष और जीत की पटकथा का सफ़र अत्यंत रोमांचक और शैक्षणिक रहा है। बेहद त्वरित रूप से घटे घटनाक्रम की इबारत इस तरह से बयां की जा सकती है –

कहानी की शुरुआत 30 मार्च से होती है जब दूल्हे की जांबाज बहन सरोज बैरवा ने भीलवाड़ा एस पी को एक अर्जी दी। 31 को वो अपने इलाके के थाना गुलाबपुरा पहुंची और लिखित रिपोर्ट दी। मगर पुलिस ने उसे हतोत्साहित ही किया, बोले जब आज तक किसी दलित की बिन्दोली नहीं निकली तो अब क्यों निकालते हो। गाँव की जो परम्परा है, उसे चलने दो।

- 1 फरवरी 2016 को एक राज्य स्तरीय अख़बार ने इसे एक कॉलम की छोटी सी खबर बनाया, हमारे साथियों को इसकी खबर मिली।
- 1 फरवरी की शाम होने से पहले दलित आदिवासी अल्पसंख्यक एकता महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष देबीलाल मेघवंशी और प्रदेश महासचिव डाल चंद रेगर अपनी टीम के साथ भादवों की कोटड़ी पंहुचे और गाँव के विभिन्न लोगों से मुलाकात कर वस्तुस्थिति का जायजा लिया।
- 2 फरवरी को मेरे साथ 10 साथी पुनः भादवों की कोटड़ी गाँव पंहुचे। दूल्हे से बात की, उसके परिजनों से अलग-अलग बात की गयी। सरोज और निरमा से बात की गयी, पूरा परिवार हर हाल में अपना संवैधानिक हक लेने को आतुर दिखाई पड़ा। हमने उनसे सारे दस्तावेज लिए। अब तक हुयी कार्यवाही जानी। उनके बयानों की विडियोग्राफी की और मुतमईन हुए कि ये लोग पीछे नहीं हटेंगे, तभी हमने गाँव छोड़ा। देर रात घर लौट कर ‘सरोज बैरवा का संघर्ष‘ पोस्ट लिखी। उसे सोशल मीडिया पर फैलाया।
- 3 फरवरी की सुबह होते ही फोन की घंटियाँ घनघनाने लगीं, चारों तरफ से एक ही आवाज़ थी, हमें बताया जाये कि उस गाँव तक हम कैसे पहुंच सकते हैं, जब यह संख्या बहुत ज्यादा होने लगी तो मैंने कहा कि कहीं पूरी शादी की व्यवस्था नहीं बिगड़ जाये। खाना बगैरा कम नहीं पड़ जाये, साथियों का मजेदार जवाब एक नारे के रूप में आया – थैली में बांध कर रोटड़ी – चलो भादवो की कोटड़ी। साथी अपने अपने इलाकों से रवाना हो चुके थे।
- बात फैल रही थी, आक्रोश पनप रहा था पर अभी तक पुख्ता कार्यवाही के संकेत नहीं मिल रहे थे। तब हमें प्रशासन को ऊपर से घेरा जाना जरूरी लगा। इस बीच दलित बहुजन समाज के आला अफसरों ने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का शानदार तरीके से निर्वहन करना प्रारम्भ कर दिया। छतीसगढ़ में कार्यरत भारतीय पुलिस सेवा का अधिकारी आर एल डांगी साहब ने मोर्चा संभाला, उन्होंने दूल्हे से बात की और फिर एस पी भीलवाड़ा से चर्चा करके सुरक्षा की आवश्यकता जताई। राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी दाताराम जी ने भीलवाड़ा के प्रशासनिक अधिकारीयों को झकझोरा, उन्होंने भी दलित दूल्हे के परिजनों से बात करके उन्हें हौसला दिया। कई अन्य सेवारत अधिकारी कर्मचारियों ने बढ़िया तरीके से अपनी भूमिका भूमिका निभाई।
- सोशल मीडिया पर वायरल होने का फायदा यह रहा कि कई दलित बहुजन मूलनिवासी विचारधारा के संस्था संगठन स्वतःस्फूर्त अपने अपने तरीके से सरोज बैरवा को न्याय दिलाने निकल पड़े। डॉ भीमराव अम्बेडकर सामाजिक विकास संस्था के बृजमोहन बेनीवाल के नेतृत्व में जयपुर जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया गया। हयूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के राज्य समन्वयक ताराचंद वर्मा ने पुलिस महानिदेशक और राज्य अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष सुन्दरलाल जी से मुलाकात की। उन्होंने तुरंत एस पी भीलवाड़ा और जिला कलेक्टर से वार्ता कर दलित दूल्हे की सुरक्षा के लिए जिला प्रशासन को पाबंद किया, इसी बीच सामाजिक न्याय और विकास समिति जयपुर के सचिव गोपाल वर्मा ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के चेयरपर्सन पी एल पुनिया से दूरभाष पर वार्ता की, उन्होंने पूरी मदद के लिए आश्वस्त किया। मैंने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के डायरेक्टर राजकुमार को एक अत्यावश्यक पत्र भेज कर सहयोग हेतु निवेदन किया, उन्होंने तुरंत भीलवाड़ा जिला प्रशासन से बात की। दोपहर होते-होते सभी उपाय अपना लिए गए, लगभग 1 बजे जिला प्रशासन ने लिखित पत्र के जरिये हमें आश्वस्त कर दिया कि सारी व्यवस्था चाक चौबंद है और हर हाल में दलित दूल्हे की बिन्दोली निकलेगी, कोई भी समस्या नहीं आने दी जाएगी। इसके बावजूद भी शाम 4 बजे हम लोग एक प्रतिनिधिमंडल जिसमे पीयूसीएल की जिला कोर्डिनेटर श्रीमती तारा अहलुवालिया, बैरवा महासभा भीलवाड़ा के नंदकिशोर बैरवा, महादेव बैरवा, यशराज बैरवा, घनश्याम बैरवा, दलित आदिवासी अल्पसंख्यक एकता महासंघ के देबीलाल मेघवंशी, डालचंद रेगर एडवोकेट भेरू लाल, पुखराज, पूर्व पार्षद पुरुषोत्तम बैरवा और माकपा के कॉमरेड मोहम्मद हुसैन कुरैशी इत्यादि लोग जिला कलेक्टर से मिलने पहुंचे। उनके बाहर चले जाने की वजह से अतिरिक्त जिला कलक्टर और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक से मुलाकात की गयी तथा उन्हें अवगत कराया गया कि हम लोग भीलवाड़ा और बाहर से काफी बड़ी संख्या में दलित दूल्हे की बिन्दोली में शिरकत करने जा रहे है, आप माकूल इंतजाम कीजिये। दोनों अधिकारीयों ने कहा आप लोग निश्चिंत हो कर जाइए, किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी, हम हर हाल में बिन्दोली निकलवाएंगे।
- शाम साढ़े पांच बजे भादवो की कोटड़ी पंहुच चुके समता सैनिक दल के प्रदेश कमांडर बी एल बौद्ध जी ने फोन पर बताया कि विरोधी पक्ष घोड़ी को विवाह स्थल तक लाने में अडचन पैदा कर रहे हैं। मैंने उन्हें कहा कि यह प्रशासन की ज़िम्मेदारी है, आप बेफिक्र रहिये, तब तक हम लोग भीलवाड़ा से रवाना हो कर रास्ते में थे। तक़रीबन 7 बजे हम लोग गाँव के बस स्टैण्ड पर पहुंचे जहाँ पर गाँव के एक दो लोगों ने हमारा गालियों से इस्तकबाल किया, हमने उनकी उपेक्षा की और बिन्दोली में शिकरत करने जा पहुंचे।
- दलित दूल्हे की इस ऐतिहासिक बिन्दोली में सब तरह के लोगों की उपस्थिति प्रेरणादायी थी, भाजपा, कांग्रेस, बसपा और कम्युनिष्ट तक एक साथ वहां मौजूद थे, सामाजिक और मानव अधिकार संगठनों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी थी। गैरअनुसूचित जाति के लोग भी वहां पंहुचे, हालाँकि गाँव में तनाव साफ दिखाई पड़ रहा था, जब दूल्हा गाँव के मंदिर चौक में पहुंचा तब दूल्हे और बारातियों पर पथराव की साज़िश की गयी, जिसकी भनक हमारी साथी तारा अहलुवालिया जी को लग जाने पर उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचना दी। मौके पर मौजूद पुलिस व प्रशासन के लोगों ने पूरी मुस्तैदी दिखाते हुए मनुवादी असामाजिक तत्वों के इरादों को नाकाम कर दिया।
पूरी आन बान और शान से दलित दूल्हे की घोड़ी पर बिन्दोली निकल गयी तब सभी भीमसैनिकों की इच्छा के मुताबिक एक सभा आयोजित की गयी, जिसमे बी एल बौद्ध, अमर सिंह बंशीवाल, विजय कुमार मेघवाल, अशोक सामरिया, अवनीश लूनिवाल, परमेश्वर कटारिया सहित कई साथियों ने विचार व्यक्त किये। अपना-अपना परिचय दिया और घर-घर अम्बेडकर पुस्तक वितरित की गयी।
बाद में दूल्हे चन्द्रप्रकाश, माँ सीता बैरवा, पिता रामसुख बैरवा, बहन सरोज बैरवा तथा निरमा बैरवा का नागरिक अभिनंदन किया गया, उनकी हिम्मत और हौसले की प्रंशसा की गयी, इसके पश्चात रामसुख बैरवा के अत्यंत आग्रह पर सब मौजूद लोगों ने भोजन ग्रहण किया और जीत की खुशियों से सरोबार हो कर विदाई ली।
सरोज बैरवा जैसी एक बहादुर बेटी के साहस और सब लोगों के सहयोग से गाँव की सैंकड़ों साल पुरानी मनुवादी व्यवस्था को एक हफ्ते में ही एक झटके में ध्वस्त कर दिया गया, यह बात पूरे इलाके में एक उदहारण के रूप में स्थापित हो गयी। इसे किसी समुदाय की हार या जीत के रूप में नहीं बल्कि मानवता और संविधान की विजय के रूप में लिए जाने की जरूरत है, इससे यह भी साबित हुआ कि अगर किसी भी गाँव में एक परिवार भी चाहे तो परिवर्तन आ सकता है और सब लोग अगर मिलकर प्रयास करें तो जीत सामान्य नहीं रह कर भादवो की कोटड़ी जितनी बड़ी हो सकती है और हर शादी समाज जागरण का अभियान बन सकती है।
-भंवर मेघवंशी, लेखक स्वतंत्र पत्रकार है।