बांग्लादेशी अपनी मातृभाषा की तौहीन बर्दाश्त नहीं कर सकते और इसीलिए तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों में जलते हुए बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र जिंदा है और जनता का धर्मोन्माद विरोधी जनमोर्चा भी बना हुआ है।
राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह मुक्त बाजार में एकाकार है।
हम लोग चीजों को नजरअंदाज करने के माहिर खिलाड़ी बन गये हैं और मुक्त बाजार ने हमारा यह कायाकल्प कर दिया है।
नंगी आंखों से सच की इबारत हम पढ़ ही नहीं सकते।
सत्ता और बाजार के लिहाज से मौके की नजाकत तौलकर हम अपना अपना सच गढ़ने के दक्ष कारीगर हैं।
बंगाल से दीदी बांग्लादेश गयी थीं, जमात कनेक्शन से निजात पाने के लिए।
राजनय का तकाजा था कि वे निष्पक्षता भारत की दर्ज करते ओपार बांग्ला के राजनीतिक रक्तपाती भूचाल के मुकाबले, जहां सबसे ज्यादा असुरक्षित बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हैं।
अव्वल तो वे हसीना के साथ खड़ी होकर धर्मनिरपेक्ष दिखने की फिराक में अपने दामन में लगे जमात का निशान को मिटाने की गरज से बेगम खालिदा या प्रति पक्ष से मिली नहीं।
फिर मोदी की बांग्लादेश यात्रा की जमीन भी पकाने की नैतिक जिम्मेदारी उनकी थी।
जो तीस्ता के स्रोत से सूख जाने की वजह से वह कर नहीं सकती थीं और न गंगा जल बंटवारे पर उनका नजरिया कोई बदला है।
वे बंगालियों की रसोई में ईलिश की आवाजाही पक्की करने की गुजारिश तक सीमाबद्ध हो गयीं तो बेगम हसीना ने भी दो टूक कह दिया कि पानी नहीं है, ईलिश कैसे भेजेंगे।
कह नहीं सकते कि खाया पिया कुछ नहीं, गिलास तोड़े आठ आने क्योंकि बांग्लादेश में बेगम हसीना ने प्रोटोकोल तोड़कर दीदी को बाकायदा राष्ट्राध्यक्ष जैसा सम्मान दिया और उनके काफिले के लिए ईलिश भोज का आयोजन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
इस महाभोज के मौके पर जैसे हम भारत में अपने राष्ट्रगान का रीमिक्स परोसने और जनता की तालियां बटोरने के अभ्यस्त हैं, उसी तर्ज पर बंगाल के रवींद्र संगीत आइकन इंद्रनील सेन ने बीच से उठाकर उनके राष्ट्रगान आमार सोनार बांग्ला गाना शुरू किया तो राजनय की ऐसी की तैसी हो गयी।
यह खबर कोलकाता के अखबारों में सिलसिलेवार छपी भी है कि कैसे हो हल्ले के बीच सबीना यास्मीन, रूना लैला और रिजवाना वन्या ने दीदी के साथ खड़े होकर सही तरीके से राष्ट्रगान गाया।
हमारे लोग बांग्लादेश में जाकर भी आखिर भूल क्यों जाते हैं कि भारत और पाकिस्तान दोनों भले ही धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की जुड़वां संतानें हैं, लेकिन बांग्लादेश मुक्तिसंग्राम और उनकी स्वतंत्रतता की कोख लेकिन उनकी मातृभाषा है और उनके राष्ट्रगान में लाखों भाइयों बहनों की शहादतें हैं तो लाखों माताओं की अस्मत भी दर्ज हैं।
वे अपनी मातृभाषा की तौहीन बर्दाश्त नहीं कर सकते और इसीलिए तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों में जलते हुए बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र जिंदा है और जनता का धर्मोन्माद विरोधी जनमोर्चा भी बना हुआ है।
हमारे बुने हुए सन्नाटा के मुकाबले उनकी कुर्बानियों का सिलसिला है।
मजा तो यह है कि दीदी को टालीवूड व्यापार संयोजक शिवाजी पांजा की गिरफ्तारी की खबर राष्ट्रीय खबर बन गयी और बंगाल में उसपर अब भी गर्मागर्म चर्चा चल रही है।
दीदी के विवेकानंद बालीवूड सुपरस्टार देव ने दीदी की मौजूदगी में दोनों बंगाल के एकीकरण का जो सपना बुनना चाहा, वह लेकिन बांग्लादेशी इस्लामी राष्ट्रवाद का और जमाते इस्लाम बांग्लादेश का एजेंडा है।
गौरतलब है कि इस महाबांग्लादेश के नक्शे पर असम समेत समूचा पूर्वोत्तर भी हैं।
देव के सपने के जबाव में जमात और इस्लामी राष्ट्रवादी तत्वों की दीदी से गुजारिश भी हो गयी कि वे बंगाल में लौटकर बंगाल को बांग्लादेश में शामिल करने के आंदोलन का नेतृत्व करें।
जाहिर है कि खाया पिया जो हो गिलास सोलह आने टूट गये।
इस राष्ट्रवादी कार्निवाल में लेकिन बंगाल में यह खबर बनी नहीं। देश को छोड़िये।
दिल्ली में हमने हस्तक्षेप पर खबर दर्ज करा दी और देव का वह वीडियो, जिसमें दीदी गदगदायमान हैं, लगा दिया।
गूगल पर हस्तक्षेप के पैंसठ हजार पार फॉलोअर हैं और कोई कारण नहीं कि लोगों ने वह वीडियो देखा नहीं है जबकि सबको महाबांग्लादेश मुहिम के बारे में मालूम भी है।
अन्ना सत्याग्रह और कश्मीर फतह के कार्निवाल में, संसदीय बजट सत्र के दिलफरेब फिजां में इस नये बवंडर को सिरे से नजर अंदाज कर दिया गया है। जबकि महामहिम ने भूमि अधिग्रहण को किसानों के हक में बताकर संघ परिवार के तमाम अवतारों का आवाहन करते हुए मकम्मल मेकिंग इन की तस्वीरें पेश करते हुए भारतीय बाजार को विदेशी पूंजी के लिए तालातोड़ खुल्ला दरवाजा बना दिया।
आपने वह वीडियो न देखा हो तो कृपया हस्तक्षेप पर देख लेंः
জামাত এজেন্ডার পক্ষে সওয়াল, দুই বাংলা এক হোক
http://www.hastakshep.com/oldবাংলা/ধারণা/2015/02/23/দুই-বাংলা-এক-হোক
इसी तरह राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह मुक्त बाजार में एकाकार हैं।
पलाश विश्वास