बाजार के पागलपन ने असल पागलों की सारी जगहों को हथिया लिया
बाजार के पागलपन ने असल पागलों की सारी जगहों को हथिया लिया
पुराने दिनों के गायक होते लोगों के किस्से संजय पराते
हिन्दी-साहित्य पा के लिए राजेश जोशी जाना-पहचाना नाम है। वे एक साथ ही कवि-कहानीकार-आलोचक-अनुवादक-सम्पादक सब कुछ हैं। हाल ही में उनकी रचना ‘किस्स्सा कोताह’ (राजकमल प्रकाशन) सामने आई है। राजेश जोशी के ही अनुशासन, न यह आत्मकथा है और न उपन्यास। यह एक गप्पी का रोझनामचा भर है- जो नहीं कहानी है और न संक्षिप्त, यदि कुछ है तो दोनों का घालमेल- जिससे हिवदन विधा पैदा हो सकती है। गप्पी की डायरी के जरिये राजेश जोशी हिन्दी पा को बेहतरतीबवार नरसिंहगढ़ और भोपाल के, अपनी बचपन और परिवारजनों व दोस्तों के किस्से सुनाते हैं- जिसकी कोई सिरा है और न अन्त। ये किस्से हैं, जो एक जुबान से दूसरे कानों तक, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक और एक स्थान से दूसरे स्थान तक अनवरत बहते हैं और इस बहाव के कर्म में उनका रूप-रंग-स्वाद सब कुछ बदलता रहता है- नहीं बदलती तो केवल किस्सों की आत्मा। चूँकि यह जीवन के किस्सों हैं, सभी पा इनमें डुबकी मार सकते हैं। राजेश जोशी सूतधार के रूप में केवल एक कढ़ी हैं किस्साय़ोग की- बाक्वि तो किस्से हैं, जो बह रहे हैं अपने आप। तो फिर इन किस्सों को बुनकर जो रचना निकलती है, वह परमप्रागतिक साहित्य के चौखटे को तोड़कर बाहर आती है, वह न कहानी के मानदंडों को पूरा करती है, न उपन्यास के और न संक्षिप्त के। साहित्य के बनने-बनाने की स्वीकृतता को तोड़कर राजेश जोशी जिस विधा को स्थापित करते हैं, वह है- हयवदन विधा। तो पा कगण, राजेश जोशी के ‘किस्स्सा कोताह’ में आप इस विधा के दर्शनों कीजिए। लेकिन इस विधा का रस तो आपको तब मिलेगा, जब आप तथ्यों को डूँढने की जिद छोड़ दें। इन किस्सों में राजेश जोशी की कल्पनाशीलता और लेखन शैली का मजा लें।


