"बाबा साहब की शख्सियत नीले आकाश के उस चमकीले सितारे की तरह है, जिसे मुट्ठी में कैद नहीं किया जा सकता. पिछले 5000 सालों में केवल उन्होंने ही भारतीय समाज का व्यवस्थित अध्ययन किया है और वैज्ञानिक ढंग से सिद्ध किया है कि जाति व्यवस्था कार्यों का विभाजन नहीं, बल्कि श्रमिकों का विभाजन है और जातियों के ध्वंस के बिना भारतीय समाज की प्रगति संभव नहीं है. इसीलिए उन्होंने गांधीजी के अछूतोद्धार कार्यक्रम को नाटक बताया था." उक्त विचार मार्क्सवादी विचारक बादल सरोज ने जनवादी लेखक संघ द्वारा महामानव विचार प्रचार संघ के सहयोग से आयोजित 'बाबा साहब भीमराव अंबेडकर : विचारधारा और प्रासंगिकता' विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए व्यक्त किए.

उन्होंने स्वीकार किया कि मार्क्सवादियों ने, विशेषकर उत्तर भारत के लोगों ने, जाति के सवाल को सही तरीके से नहीं समझा और जाति के संबंध में वर्गीय शोषण के पहलू पर मार्क्स की समझ को यांत्रिक ढंग से लागू किया. इससे बाबा साहब के विचारों के साथ अंतरंगता कायम करने में बहुत देर हुई. उन्होंने कहा कि ईसा पूर्व 6वीं सदी में यहां जो बौद्धिकता का वातावरण था, उसे वर्ण-व्यवस्था ने तहस-नहस कर दिया और श्रम व बुद्धि के बीच दीवार खड़ी हो जाने से विज्ञान और विचारों का प्रवाह थम गया.

बादल ने महाड़ के तालाब सत्याग्रह, मनुस्मृति दहन आदि घटनाओं का जिक्र करते हुए इस बात पर जोर दिया कि बाबा साहब ब्राह्मणों के नहीं, बल्कि ब्राह्मणवाद के विरोधी थे. उनके इन आंदोलनों में गैर-दलित और ब्राह्मण भी शामिल थे. उनका मानना था कि ब्राह्मणवाद शासन करने की प्रणाली है, तो पितृसत्तात्मकता ब्राह्मणवादी अभिशाप है, जिसका दंश आजादी के बाद भी इस देश को झेलना पड़ रहा है. बादल ने कहा कि अंबेडकर केवल दलितों के नहीं, बल्कि पूरे भारतीय समाज के नेता थे. जो लोग अंबेडकर का कुपाठ करते हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि उन्होंने एक ब्राह्मणी से विवाह किया था.

बुद्ध पुराने जमाने के कार्ल मार्क्स थे और मार्क्स आधुनिक जमाने के बुद्ध हैं

Baba Saheb t he bright star of blue sky - Badal Sarojबादल ने बाबा साहब की इस समझ का उल्लेख करते हुए कि, बुद्ध पुराने जमाने के कार्ल मार्क्स थे और मार्क्स आधुनिक जमाने के बुद्ध हैं, कहा कि दोनों यह कहते थे कि किसी भी बात को तब मानो, जब वे विवेक और जनहित की कसौटी पर खरी उतरे. इस अर्थ में मार्क्स और अंबेडकर के बीच कोई दीवार खड़ी नहीं दीखती और वे कबीर, फुले, भगतसिंह की परंपरा में खड़े दिखाई देते हैं.

कार्यक्रम के प्रारंभ में सभी उपस्थितों को युवा कवि राजन मेश्राम द्वारा संविधान के प्रस्तावना की रक्षा की शपथ दिलाई गई. आयोजकीय वक्तव्य के रूप में राज्य जलेसं के सचिव नासिर अहमद सिकंदर ने कहा कि यह आयोजन कई ऐतिहासिक तारीखों जैसे बाबा साहब की 126वीं जयंती, पूना पैक्ट के 85 साल पूरे होने, मार्क्स की 200वीं जयंती, दास कैपिटल के प्रकाशन के 150 वर्ष पूरे होने और सोवियत क्रांति की शताब्दी के अवसर पर आयोजित किया जा रहा है.

मै बाबा साहब का अनुयायी हूँ - भक्त नहीं !!

जलेसं के प्रांतीय अध्यक्ष कपूर वासनिक ने अंबेडकर की प्रासंगिकता पर बोलते हुए रूंधे गले से कहा — "मैं अम्बेडकर साब की ज़िंदगी के बारे में बहुत कुछ बोल सकता हूँ, मगर ऐसा करते में मुझे रोना आ जाता है । इसके बावजूद मै बाबा साहब का अनुयायी हूँ - भक्त नहीं !!" डॉ. आंबेडकर को डब्बे या खांचे में कैद करने की कोशिशों को अनअम्बेडकारी बताते हुये उन्होंने कहा कि बुद्ध के शब्दों में मनुष्य हमेशा बदलाव की प्रक्रिया में रहता है, बाबा साहब भी अपने अंदर बदलाव करते रहते थे । वे परिपक्व से और परिपक्व होने की सतत निरंतरता में रहे । इस सम्बन्ध में अनेक रोचक और तथ्यात्मक उदाहरण भी उन्होने दिये ।

उन्होंने कहा कि कुछ मसलों को लेकर अम्बेडकर की मार्क्सवाद से असहमति थी किन्तु वे मार्क्सवाद विरोधी नहीं थे । उन्होंने आधुनिक भारत को लेकर अनेक मंचों, आयोगों को लेकर जो नीतियां सुझाई हैं वे कम्युनिस्ट नीतियों के बहुत नजदीक बैठती हैं ।

उन्होंने कहा कि बाबा साहब की पुस्तकों में एक बेहतर और बराबरी के समाज की संरचना मिलती है. सो, अब उन्हें पढ़ते हुए हमें गंभीर पाठक बनना जरूरी है, न कि भक्त. दलित, गैर-दलित और अंबेडकरवाद की परिभाषा को विस्तृत करते हुए उन्होंने इसमें हर उस विचारवान व्यक्ति को शामिल किया, जो विचारधारात्मक रूप से उनको अपने करीब पाते हैं. पूना पैक्ट की ऐतिहासिकता पर विस्तार से बोलते हुए कपूर वासनिक ने कहा कि पूना पैक्ट को समझने के लिए हमें स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास को समझना होगा.

आयोजन को विशिष्ट अतिथि के रूप में 'दक्षिण कोसल' के संपादक उत्तम कुमार ने भी संबोधित किया. आज के संदर्भ में संविधान पर मंडरा रहे खतरे, फासीवाद के बढ़ते कदमों, तथाकथित देशभक्ति और छद्मराष्ट्रवाद जैसी अवधारणाओं को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि अब लाल और नीली क्रांति एक साथ होनी चाहिए. कार्यक्रम का संचालन राकेश बम्बार्डे तथा आभार प्रदर्शन प्रेमलाल बौद्ध ने किया.

कार्यक्रम में डॉ.केबी बनसोड़े, निसार अली रतन गोंडाने, संजय पराते, वकील भारती, डीवीएस रेड्डी,विश्वास मेश्राम, शरद कोकस, परमेश्वर वैष्णव, घनश्याम त्रिपाठी,बृजेन्द्र तिवारी, शांत कुमार, मुमताज़, किशन लाल, प्रीति मेश्राम आदि उपस्थित थे.

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