बाबा साहेब की विरासत बेच रहे हैं ईस्ट इंडिया कंपनी के वारिसान, गुलामी मुबारक
बाबा साहेब की विरासत बेच रहे हैं ईस्ट इंडिया कंपनी के वारिसान, गुलामी मुबारक
बैंक वालों को नहीं मालूम कि रिजर्व बैंक की स्थापना भी बाबासाहेब के कारण
पलाश विश्वास
अभी हाल में हस्तक्षेप पर अपने आलेख में मैंने लिखा है, अंबेडकर ने ब्रिटिश हुकूमत को अकादमिक अर्थशास्त्र से गोल्ड स्टैंडर्ड लागू करने को मजबूर किया तो आजाद देश के राजनेता कोई बुरबक न थे जो अर्थव्यवस्था को डालर से नत्थी कर दियो रे। अंबेडकर के गोल्ड स्टैंडर्ड के मुताबिक रुपी प्राब्लम सुलाझाने ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीय रिजर्व बैंक आफ इंडिया की स्थापना की जो अब कारपोरेट कंपनियों की पालतू बिल्ली है।
इस सिलसिले में जो दस्तावेजी सबूत हाथ लगे हैं वे हैरतअंगेज हैं। भारत की वित्तीय व्यवस्था अंबेडकर की देन है, इसे पूरी दुनिया जानती है, उनके सिवाय जो बाबासाहेब को अपना मसीहा मानते हैं और बाबासाहेब के एटीएम से अपना कारोबार चलाते हैं।
बाबासाहेब किसी जाति विशेष के नहीं थे, हर भारतीय के लिए वे आजीवन काम करते रहे और बाबा साहेब की विरासत यानी भारतीय संविधान, लोकतांत्रिक प्रणाली, भारतीय अर्थव्यवस्था, बैंकिंग, वित्तीय प्रणाली, श्रमिक आंदोलन के अधिकार, फैक्ट्री एक्ट समेत महिलाओं और आदिवासियों के दिये सारे अधिकार, संसाधनों पर राष्ट्र और देश की जनता के हक हकूक, वगैरह-वगैरह उनके हिसाब से किसी जाति या अस्मिता के लिए नहीं, न सिर्फ उनके डीप्रेस्ड क्लास के लिए, बल्कि हर भारतीय जाति धर्म भाषा वर्ग निर्विशेष है।
बैंकिंग सेक्टर के लोग आर्थिक सुधारों को सबसे बेहतर जानते हैं क्योंकि वे देश की वित्तीय प्रणाली और देश की रोजमर्रे की आर्थिक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं, रिजर्व बैंक में भी एससी एसटी कर्मचारी कल्याण संघ हर शाखा में सक्रिय हैं। उन्हें मालूम नहीं कि भारतीय बैंकिग में बाबा साहेब की भूमिका रिजर्व बैंक की स्थापना से जुड़ी है। उन्हें नहीं मालूम कि बाबासाहेब को ही नहीं, भारतीय अर्थव्यवस्था को ही ध्वस्त करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजी कंपनियों विदेशी कंपनियों के घर भरने के लिए दिवालिया ही नहीं बनाया जा रहा है, अगले तीन साल में उन्हें पूरी तरह फिनिश करने का राथ्सचाइल्ड प्रोग्राम है।
वे यह भी नहीं जानते कि राथ्सचाइल्ड क्या बला है।
बैंक वालों को बैंक डूबने से कुछ हो या नहीं, सरकारी बैंकों की तरह निजी बैंको में रिजर्वेशन प्रोमोशन मिलेगा या नहीं, यह मेरा मुद्दा नहीं है, मेरे लिए मुद्दा है कि भारतीय स्टेट बैंक समेत तमाम सरकारी बैंक अगर विदेशी बैंकों में तब्दील हो गये तो इस मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था में भारतीय आम जनता से लेकर मध्य वर्ग से लेकर उच्च वर्ग तक का हाल क्या होने वाला है।
बताया जाता है कि अकेले दिल्ली में बाबासाहेब के नाम लाखों संगठन, मिशन, कमिशन, एसोसिएशन, संस्थाएं हैं। दक्षिण भारत के कोलार खान के आसपास सर्वत्र बाबासाहेब की मूर्तियां ही नजर आयेंगी।
संघ परिवार तो बाबासाहेब के मंदिर तक बनवाने की तैयारी में है।
बाबा साहेब की कर्मभूमि महाराष्ट्र में बाबा साहेब के नाम जितनी संस्थाएं हैं, उनसे कम अंबेडकर विरोधी बंगाल में नहीं है। उत्तर भारत की वाम दक्षिण सारी राजनीति बाबासाहेब के नाम है। जेएनयू के महामहिम लोग तो अब अलग-अलग अस्मिताओं के नये नये संगठन सौंदर्यशास्त्र चालू करने के विशेषज्ञ हो गये हैं। इसके विपरीत खुद रिजर्व बैंक के अनसूचित कर्मचारियों को इसका ज्ञान होगा कि नहीं हमें मालूम नहीं कि बाबासाहेब की रुपी प्राब्लम कंसेप्ट शोध पर ब्रिटिश रायल कमीशन बना और उसने बाबासाहेब के भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में किये गये अध्ययन पर मुहर लगाते हुए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की।
राष्ट्रीयकरण की अवधारणा इंदिरा गांधी की नहीं है, बाबा साहेब ने बाकायदा भारतीय संविधान में सारे संधाधनों के राष्ट्रीयकरण करने का प्रावधान किया हुआ है।
यह ऐसा ही है जैसे कि भूमि सुधार वाम कार्यक्रम नहीं है, ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ चुआड़ विद्रोह से लेकर तमाम आदिवासी किसान साम्राज्यवाद सामंतवाद विरोधी जनविद्रोहों के अनंत सिलिसिला जो तेभागा तक जारी रहा, उसकी फसल है।
यह सारी विरासत अब खतरे में हैं।
दुनिया भर की बैकिंग और दुनिया भर की सरकारें चलाने वाले, दुनिया भर में युद्ध गृहयुद्ध चलाने वाले, फाइनेंस करने वाले, नेपोलियन के युद्ध से लेकर प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध, इराक अफगानिस्तान तेलयुध और ब्रिटेन की महारानी और अमेरिका की सरकार तक को कर्ज देने वाले राथचाइल्ड्स ही भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के असली संचालक रहा है।
राथचाइल्डस के ही वारिसान भारत में आर्थिक सुधार परियोजनाओं के संचालक निर्माता निर्देशक हैं।
संजोग से वही राथचाइल्डस समूह को भारत में फिर जनसंहार के ठेका बतौर आर्थिक सुधार लागू करने की परियोजना सौंपी गयी है और हर सुधार के साध हमारे पुरखों की विरासत, बाबा साहेब की विरासत का टुकड़ी-टुकड़ा हो रहा है।
कायदे से जो सचमुच अंबेडकरवादी हैं, उन्हें इन जन संहारक नीतियों और सुधारों के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर सक्रिय होना चाहिए, लेकिन उन बेचारों को तो यह भी मालूम नहीं कि भारतीय जनगण की नागरिकता, हक हकूक और भारत की अर्थव्यवस्था वित्तीय प्रणाली बाबासाहेब की विरासत है जिसे क्विकर पर देश बेचने वाली नब औपनिवेशिक कारपोरेट कंपनी सरकार राथचाइल्ड्स के ही संचालन में ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह विदेशी हाथों में बेचकर अबकी दफा सिर्फ दलितों को ही नहीं, बाकी सवर्ण असवर्ण हिंदू अहिंदू भारतीयों को गुलाम बनाकर उनके गले में मटका और पीछे झाड़ू की पूंछ लगाने मुकम्मल इंतजाम कर रही है।


