बिना वैकल्पिक राजनीति के वैकल्पिक मीडिया संभव नहीं
बिना वैकल्पिक राजनीति के वैकल्पिक मीडिया संभव नहीं

नई दिल्ली। वैकल्पिक मीडिया, वैकल्पिक पत्रकारिता नहीं राजनीति का मामला है। बिना वैकल्पिक राजनीति के वैकल्पिक मीडिया संभव नहीं। हम में से जो लोग ब्लॉग या अन्य सोशल मीडिया के मंचों पर कुछ चीजें रखते हैं, वह वैकल्पिक पत्रकारिता हो सकती है, लेकिन इन माध्यमों को वैकल्पिक मीडिया नहीं माना जा सकता है। विकल्प मौजूदा व्यवस्था का हो सकता है। समस्या वर्तमान मीडिया के आर्थिक संरचना the economic structure of the media की है जो सत्ता और उद्योग जगत से अन्योन्याश्रित संबंध रखती है। जरूरत है कि मीडिया के समूचे ढांचे का विकल्प तैयार किया जाए।
यह विचार भारतीय ज्ञानपीठ के सहयोग से 'दख़ल विचार मंच' और 'आग़ाज़' पत्रिका द्वारा दिल्ली पुस्तक मेले में गुरुवार को 'मीडिया: मुख्यधारा और विकल्प' Media: mainstream and alternative, विषय पर एक परिचर्चा में युवा पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने व्यक्त किए।
इस परिचर्चा में आमन्त्रित वक्ता थे- अभिषेक श्रीवास्तव, डॉ. अंशुमान सिंह और अजय प्रकाश।
परिचर्चा में मीडिया के मौजूदा परिदृश्य, उसकी विसंगतियां, अंतर्विरोध और मीडिया के कॉरपोरेट चरित्र पर सार्थक चर्चा हुई।
चर्चा को सार्थक रुख देते हुए अभिषेक श्रीवास्तव ने अपनी बात को समझाने के लिए जनमोर्चा जैसे अखबार का उदाहरण दिया और समझाने की कोशिश की कि वैकल्पिक मीडिया सहकारिता के आधार पर जनसहयोग से ही खड़ा हो सकता है जो एक नया राजनीतिक मॉडल होगा।
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए डॉ अंशुमान ने मीडिया की मौजूदा विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए मीडिया समेत विभिन्न विचारधाराओं अथवा वैचारिक समूहों की विसंगतियों की ओर ध्यान दिलाया और इस बात पर जोर दिया कि मीडिया की धंधेबाजी Media Business से अलग एक उदार और जनपक्षधर मीडिया का स्वरूप विकसित किया जाना चाहिए।
शैक्षणिक संस्थानों में आई गिरावट का विस्तार से ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अब शिक्षकों में कोई प्रतिबद्धता ढूंढना मुश्किल हो गया है। साथ ही वाम दलों और बुद्धिजीवियों के अहंकार का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जब तक हम इस अहंकार से बाहर नहीं निकलेंगे समाज से संवाद नहीं कर पायेंगे।
आग़ाज़ के सम्पादन मंडल के सदस्य कृष्णकांत ने अभिषेक की बातों से सहमति जताते हुए कहा कि वास्तव में हमें पत्रकारिता के किसी विकल्प की नहीं, बल्कि समूचे ढांचे के विकल्प की जरूरत है। हमें नया राजनीतिक और आर्थिक ढांचा खड़ा करना होगा, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था में आपके उससे अलग होने की संभावनाएं शून्य हैं।.
उन्होंने कहा, आगाज यह विकल्प खड़ा करने का एक छोटा सा प्रयास है जिसकी संभावनाएं भविष्य के गर्भ में हैं। हमारी कोशिश होगी कि हम लोगों को जोड़कर उनके सहयोग से पत्रकारिता का एक पुख्ता विकल्प खड़ा कर सकें।
अशोक कुमार पांडेय ने दखल विचार मंच की स्थापना और उसके कार्यों का संक्षिप्त परिचय दिया और आगाज पत्रिका की ओर से अपनी बात रखी। रंगकर्मी अभिनव साब्यसाची ने कार्यक्रम का संचालन किया।
इस मौके पर ज्ञानपीठ के निदेशक और साहित्यकार लीलाधर मंडलोई समेत कई गणमान्य उपस्थित रहे।


