बीएचयू में छात्राओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना कर उसे 'हिन्दुत्व की प्रयोगशाला' में बदल दिया
बीएचयू में छात्राओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना कर उसे 'हिन्दुत्व की प्रयोगशाला' में बदल दिया
लखनऊ। बीएचयू की छात्राओं के आन्दोलन के समर्थन और उन पर हुए बर्बर लाठीचार्ज के विरोध में आज विभिन्न जनसंगठनों ने लखनऊ में जीपीओ पर प्रदर्शन किया और बीएचयू के कुलपति को बर्खास्त करने तथा छात्राओं की माँगों को तुरन्त माने जाने की माँग की।
तमाम वक्ताओं ने कहा कि बी.एच.यू की छात्राओं ने जिस तरह से जुझारू संगठित प्रतिरोध को जन्म दिया है वह एक मिसाल है। यह प्रतिरोध संघी कुलपति और उसकी सरपरस्ती में पलने वाले लम्पटों के मुँह पर एक करारा तमाचा है जो छात्राओं के साथ होने वाली बदसलूकियों के लिए छात्राओं को ही "संस्कार" और "चरित्र" का पाठ पढ़ाते हैं। सम्मान, सुरक्षा और आज़ादी की छात्राओं की माँगों को सुनने के बजाय उन पर कल रात बर्बर लाठीचार्ज कराया गया। पुलिस ने छात्राओं को दौड़ा-दौड़ाकर बुरी तरह पीटा। जब लड़कियाँ भागकर महिला महाविद्यालय के अन्दर चली गयीं तो पुलिस और पीएसी ने गेट तोड़कर छात्राओं पर हमला किया। जो छात्राएँ भागने में गिर गयीं उनको बूटों से मारा गया। छात्राओं के आन्दोलन का समर्थन कर रहे छात्रों को सबक सिखाने के लिए पुलिस रात भर पूरे बी.एच.यू. कैम्पस में जगह-जगह हमले करती रही और अब हॉस्टलों को खाली कराया जा रहा है।
धरने को वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना, जनचेतना की मीनाक्षी, स्त्री मुक्ति लीग की विमला, अवाम मूवमेंट की रफ़त फ़ातिमा, संस्कृति कर्मी सदफ़ जाफ़र, एडवा की सीमा राना, एपवा की विमल किशोर, लेखिका प्रतिमा राकेश, दस्तक की मीना राना, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूजा शुक्ला, जागरूक नागरिक मंच के सत्यम, आईपीएफ़ के लालबहादुर सिंह, दीपक कबीर, एसएफ़आई के प्रवीण पांडेय, नितिन, मो. राशिद, बलिया से आये राघवेंद्र प्रताप सिंह आदि ने सम्बोधित किया। तेज़ बारिश के बावजूद सभा देर तक चली। विभिन्न जनसंगठनों के कार्यकर्ता, छात्र-छात्राएँ, नौजवान और नागरिक - सभी इस घटना से बेहद आक्रोश में थे।
वक्ताओं ने कहा कि वास्तव में छात्राओं का फूट पड़ा ये आक्रोश गुण्डागर्दी-लम्पटई व प्रशासनिक तानाशाही के खिलाफ़ अरसे से इकट्ठा हुए गुस्से की अभिव्यक्ति है। विश्वविद्यालय में छात्राओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया है। दूसरी तरफ़ उसे 'हिन्दुत्व की प्रयोगशाला' में बदल दिया गया है। इस माहौल में लड़कियों को "आदर्श भारतीय हिन्दू नारी" बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। बताया जा रहा है कि औरत को सहनशील और सुशील होना चाहिए। उसे विरोध नहीं करना चाहिए। बलात्कार और यौन उत्पीड़न का भी नहीं। एक तरफ़ देवी पूजा और दूसरी तरफ़ लड़कियों पर लाठीचार्ज का यही सार है। सनातनी मूल्यों का ठेकेदार बना बी.एच.यू प्रशासन और 'एंटी-रोमियो स्क्वाड' का हल्ला मचाने वाली प्रदेश सरकार उन पर हमला करा रहे हैं। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का जुमला उछालने वाले प्रधानमंत्री दो दिन से बनारस में मौजूद थे लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र की सैकड़ों बेटियों से मिलने के बजाय रास्ता बदलकर निकल गये।
जब से मोदी सरकार आयी है तभी से एक ओर स्त्रियों, दलितों, अल्पसंख्यकों पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं, दूसरी ओर कैम्पसों को निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि यहीं से प्रतिरोध के स्वर सबसे मुखर होकर उठ रहे हैं। बीएचयू के आन्दोलन के पक्ष में समर्थन जुटाने के हर संभव प्रयास किये जाने चाहिए। अगर सत्ता दमन के सहारे इन बहादुर लड़कियों के आन्दोलन को कुचल भी डाले तब भी अब ये आवाज़ दबने वाली नहीं है। इसे पूरे मुल्क में ले जाना हम सबकी ज़िम्मेदारी है, वरना इतिहास हमें माफ़ नहीं करेगा।


