बीजेपी दलित विरोध की सर्वाधिक विश्वसनीय पार्टी
बीजेपी दलित विरोध की सर्वाधिक विश्वसनीय पार्टी
रोहित वेमुला मामले पर बीजेपी के केंद्रीय मंत्रियों की बयानबाजी अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार की याद ताजा कर दी है। बयानों को सुनकर यह पहचान कर पाना मुश्किल हो गया है कि हम लोकतंत्र के खुले आसमान में सांस ले रहे हैं या फिर किसी पुराने कबीलाई समाज के हिस्से हो गए हैं?
सबसे पहले देश की एचआरडी मंत्री ने अपने सहयोगी मंत्री बंडारू दत्तात्रेय और परिषद से जुड़े छात्र की जाति बताई। फिर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने अपने पूरे खफिया तंत्र को इस काम में लगा दिया। और उन्होंने बताया कि रोहित दलित नहीं था। उसके बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मोर्चा संभाला। उन्होंने कहा कि रोहित को दलित कहना बेमानी है।
केंद्रीय मंत्रियों का जाति को लेकर नंगा, निर्लज्ज और घृणास्पद प्रदर्शन
केंद्रीय मंत्रियों का जाति को लेकर इतना नंगा, निर्लज्ज और घृणास्पद प्रदर्शन क्या कभी आजादी के बाद देखा गया? इन मंत्रियों ने भारतीय संविधान की शपथ ली है या फिर मनुस्मृति को लागू करने का संकल्प ले लिया है? संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में बाकायदा लिखा है कि सरकार पुरातन, पोंगापंथी और दकियानूस विचारों के खिलाफ खड़ी होगी और फिर देश और समाज में एक वैज्ञानिक और तार्किक चेतना के विकास में सहयोग देगी। लेकिन यहां क्या हो रहा है? शिक्षा विभाग जिसकी प्राथमिक जिम्मेदारी इस काम को आगे बढ़ाना है वह ‘मनुस्मृति’ के हवाले कर दिया गया है। भला किसी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की आंतरिक सामाजिक मामलों में कोई भूमिका बनती है? लेकिन जनाब डोवाल इस पेंच को भी हल करने में जुट गए। क्या कोई बाहरी हमला हो गया था या फिर दूसरे देशों की सरकारों ने भारत की घेरेबंदी शुरू कर दी थी। जो विदेश मंत्री को इस पर बोलना पड़ा।
जैसा कि हमने पहले भी कहा था बीजेपी-संघ इस मामले से अधिक से अधिक फायदा उठाने में जुट गए हैं। दरअसल दक्षिण भारत में अगर किसी सामाजिक आधार का निर्माण करना है या दूसरे दलों की थोड़ी भी जमीन छीननी है, तो वह किसी बड़े मुद्दे को उठाए बगैर संभव नहीं था। दक्षिण भारत में दलित और पिछड़ों के बीच तीखा अंतरविरोध है। बीजेपी और संघ ने इसको पकड़ लिया है। अब इसको महज छू देने भर से मामला हल होता हुआ नहीं दिख रहा था। ऐसे में इस पर बड़ा जोर देना पड़ रहा है। उसकी पहली शर्त है इसको खींचना और इस पर कोई समझौता नहीं करना। अनायास ही नहीं सरकार रोहित की मौत के दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। देश भर में प्रदर्शनों के बावजूद वह टस से मस नहीं हुई। दरअसल इसके जरिये वह दक्षिणी भारत के पिछड़े तबकों को संदेश दे रही है। दलित विरोध की कोई विश्वसनीय पार्टी अगर हो सकती है तो वह बीजेपी है। हां यह बात अलग है कि अंबेडकर का महिमामंडन कर दलित हिस्से को भी भ्रम में रखने का उसका सिलसिला जारी रहेगा। लेकिन अभी कम से कम दक्षिण में अपनी पैठ के लिए तात्कालिक रणनीति इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करना है। बाकी देश और उत्तर भारत के लिए यह बता देना कि दरअसल वह दलित था ही नहीं। इसलिए उस पर कम से कम दलितों को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।
लेकिन एकबारगी अगर मान भी लिया जाए कि रोहित दलित नहीं था। तो क्या उससे मामले की गंभीरता कम हो जाती है। या उसको मौत के मुंह में धकेलने वालों का अपराध कम जाता है? या फिर लोगों को इस मामले को छोड़ देना चाहिए?
बीजेपी मासूम और निर्दोष लोगों की कब्रों पर ही अपनी सामाजिक जमीन तैयार करती रही है
दरअसल बीजेपी मासूम और निर्दोष लोगों की कब्रों पर ही अपनी सामाजिक जमीन तैयार करती रही है। अयोध्या से लेकर गुजरात और मुजफ्फरनगर से लेकर मुंबई तक यही उसका इतिहास है। अनायास ही नहीं दंगा उसका सबसे प्रिय हथियार रहा है। लेकिन बीजेपी को यह जरूर समझना चाहिए कि वह आग से खेल रही है और समाज और उसकी चेतना जहां तक आगे बढ़ चुकी है उससे पीछे लौटा पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। हां सत्ता हाथ में है तो कुछ दिनों के लिए भले ही भ्रम पैदा कर वह अपनी साध मिटा ले, लेकिन इन घटिया विचारों और उसको प्रश्रय देने वालों को इतिहास के कूड़ेदान में जाना तय है।


