किलों पर जितनी चाहे उतनी निजी सेना तैनात कर लें हुक्मरान
बाजू भी बहुत हैं तो सर भी बहुत हैं!

हिंसा और नरसंहार के खिलाफ जाग रहा है भारत का जनमानस अग्निपाखी!
मुंबई में सिंह गर्जना से जाहिर है कि दिल्ली और नागपुर के लठैतों की चलेगी नहीं। और तो और, संघ के मुख्यालय नागपुर की दीक्षाभूमि से एक बहुत बड़ा मोर्चा संघ मुख्यालय तक गया और वहां ऐसा निरंतर होने वाला है।
पलाश विश्वास
बंगाल के जंगल महल में भी समता और शांति के लिए जुलूस निकल रहा है। भारत के हर शहर, गांव और कस्बे से अब जुलूस निकलेंगे फासिज्म के खिलाफ।
बाजू भी बहुत हैं तो सर भी बहुत हैं -हिंसा और नरसंहार के खिलाफ जाग रहा है भारत का जनमनस अग्निपाखी।
मुंबई में सिंह गर्जना से जाहिर है कि दिल्ली और नागपुर के लठैतों की चलेगी नहीं।
बाजू भी बहुत हैं तो सर भी बहुत हैं!
हिंसा और नरसंहार के खिलाफ जाग रहा है भारत का जनमानस अग्निपाखी!

बुद्धं शरणमं गच्छामि कोई हिंदुत्व की तरह राजनीतिक धर्म नहीं है। यह भारत के इतिहास की गूंज है।
यह गूंज अब देशभर में तेज होने जा रही हैं ।
हिंसा, घृणा और नरसंहार उत्सव के खिलाफ नागपुर और कोलकाता में ही नहीं देशभर में अमन चैन के लिए शांति मार्च होने वाला है।
मीडिया का करिश्मा देख लें तनिक तो मजा ही मजा। दिल्ली में फासिज्म की निजी सेना ने हमारे बच्चों पर जो कहर ढाया और देश भर में उसकी जो तीखी प्रतिक्रिया है, उसके जबाव में जवाबी वीडियो वाइरल दिखाया गया कि छात्राएं उकसा रही थीं। यह दलील अमूमन बलात्कार को जायज टहराने की दलील होती है।
पद्मभूषण अनुपम खेर का बहुत बहुत धन्यवाद कि देर शाम तक साफ कर दिया कि पाकिस्तान के साहित्योत्सव में जिन अठारह लोगों को न्यौता भेजा गया है, उनमें वे एकमात्र हैं, जिनने पाकिस्तानी वीसा के लिए आवेदन ही नहीं किया। टीवी पर फिर उनने लाइव पलटी खाई कि कश्मीरी पंडित होने की वजह से पाकिस्तान उनके खिलाफ भेदभाव कर रहा है।
वरना इस मुद्दे पर दूसरा कारगिल किये बिना मीडिया वाले मानते नहीं। आज का दिन अनुपम खेर और सुप्रीम कोर्ट के लाइव प्रसारण के नाम रहा और कल की फासिस्ट बर्बरता की सुर्खियां बासी हो गयीं।
मुश्किल यह है कि रोहित के दलित या ओबीसी परिचय के रिसर्च पर जरूरत से जियादा ध्यान देने और मंडल कमंडल आग भड़काने से भी रोहित वेमुला की आत्महत्या के खिलाफ न्याय और समता की लड़ाई देश के कोने-कोने में रोज तेज होती जा रही है।
संघ के मुख्यालय नागपुर की दीक्षाभूमि से एक बहुत बड़ा मोर्चा संघ मुख्यालय तक गया और वहां ऐसा निरंतर होने वाला है।
बुद्धं शरणमं गच्छामि कोई हिंदुत्व की तरह राजनीतिक धर्म नहीं है। यह भारत के इतिहास की गूंज है।
यह गूंज अब देश भर में तेज होने जा रही हैं ।
हिंसा, घृणा और नरसंहार उत्सव के खिलाफ नागपुर और कोलकाता में ही नहीं देश भर में अमन चैन के लिए शांति मार्च होने वाला है।
रोहित वेमुला अब कोई चेहरा नहीं है।
रोहित वेमुला अब कोई अस्मिता भी नहीं है।
रोहित वेमुला फासिज्म के राजकाज के खिलाफ जनता के हक हकूक की लड़ाई का बवंडर है जो सत्तर साल से ठहरा हुआ था, अब शुरु हुआ है।
दूल्हों और दुल्हनों, बारातियों के शिकंजे से बाहर निकली बहुजन जनता देश के कोने-कोने में जाति दर्म के नाम आपस में लड़ते रहने की विरासत छोड़कर गोलबंद हो रहे हैं।
बाजू भी बहुत हैं और सर भी बहुत हैं।
यह हिंदुस्तान की सर जमीं मध्य बिहार का कोई इकलौता गांव नहीं है, जहां निजी सेनाएं नरसंहार करती रहेगी और जुल्म के खिलाफ हर आवाज कुचल दी जायेगी।
हिंदुस्तान इतना बड़ा मुल्क है कि कोई तानाशाह इसे कभी जीत नहीं पाया, इतिहास बदलने वाले लोग देख लें।
जागरण और नवजागरण की बात करने वाले लोग जान लें कि तुर्की से जो बाबर आये थे भारत जीतने, उसी तुर्की ने चौदहवीं सदी में बाबर के भारत विजय से पहले तक समूचे यूरोप को गुलाम बनाये रखा था। लगातार लगातार किसानों के आंदोलन ने न सिर्फ यूरोप की दुनिया की तस्वीर बदल दी है।
हम तो गुलामों की गुलामी को अपनी आजादी मानते रहे हैं जबकि दिल्ली की सत्ता का रंग चाहे जो हो, बाकी भारत न कभी गुलाम रहा है और न आज गुलाम है। भारत के आदिवासी और किसान कभी गुलाम थे ही नहीं और न आज हैं।
मीडिया के मुताबिक उनका आंदोलन थमने वाला नहीं है, जिनके पुरखे बंदूकों तोपों से मुकाबला करते रहे हैं।
इतिहास लिखने वाले यह सबक इतिहास का सबसे पहले सीख लें।
उसी गुलाम वंश के वारिसान आज का सत्तावर्ग है।
कुलीन नवजागरण की वजह से फ्रांसीसी क्रांति नहीं हुई, वह क्रांति हुई समूचे यूरोप में दैवी सत्ता और चर्च के खिलाफ किसान आंदोलनों के बवंडर उठने के बाद।
दैवी सत्ता भारत की विरासत कभी नहीं रही तो दैवी सत्ता की जमीन विदेशी है।
हमारे पुरखों ने कभी गुलामी मंजूर नहीं की और भक्ति आंदोलन भी दैवी सत्ता और सामंत प्रभुओं के खिलाफ महाविद्रोह रहा, जो आदिवासी किसान विद्रोहों की निरंतरता में हमारे इतिहास की लोक विरासत है।
इसे सब अल्टर्न कारपोरेट साहित्योत्सव वाले विद्वतजन न समझेंगे और न धर्मांध बजरंगी।
भरतीय जनमानस भी अग्निपाखी है जो बार-बार राख से जिंदा निकलता है क्योंकि भारत की आत्मा कभी मरी नहीं है।
यही हमारा धर्म है और हमारा इतिहास भी है, जिसके तहत हिंदू भारत की संस्कृति सत्य और अहिंसा है और बीजमंत्र फिर वहीं बुद्धम् शरणम् गच्छामि है।
मजहबी सियासत हिंदुत्व नहीं है और न मनुस्मृति हिंदुत्व है।
बौद्धधर्म का अवसान जरूर हुआ है लेकिन भारत की बौद्धमय इतिहास ही भारत की विरासत है सत्य और अहिंसा की।
फासिस्ट सत्ता ने खुद को लामबंद कर लिया है सत्य और अहिंसा की विरासत के खिलाफ और भारत की आत्मा को कुचलने चली है।
बहरहाल अनुपम खेर अभिनेता बेहद अच्छे हैं। उनकी पहली फिल्म आगमन के बाद नायक से चरित्र अभिनेता बने अनुपम हर किरदार में फिटमफिट हैं।
वैसे अभिनेत्री जयललिता भी बहुत अच्छी रही हैं।
अतुल्य भारत विज्ञापन में आमिर का सहिष्णुता विकल्प अमिताभ बच्चन भी हमारे छात्र जीवन से आज तलक अभिनय से जब तब कायल करते रहे हैं।
अभिनेता हमारे हिसाब से परेश रावल भी कम बड़े नहीं हैं और निदेशक श्माम बेनेगल की तो कोई सानी नहीं हैं।
राजनीति में अभिनय बड़े काम की चीज है।
जबसे भारत की राजधानी नागपुर में स्थानातंरित है, तब से पाठ हूबहू निभाने वाले अभिनेताओं और अभिनेत्रियां भारतीय राजनीति में सोने पर सुहागा हैं। यही राजनीतिक मार्केटिंग है मुक्त बाजार।
हम सारे लोग जानते हैं कि परदे पर उनका किरदार असल में उनका अपना किरदार होता नहीं हैं और न संवाद उनके अपने होते हैं और जो गीत उनपर फिल्माये जाते हैं, वे भी उनके नहीं होते हैं।
ऐसे रंग बिरंगे किरदार का हुनर अब भारतीय केसरिया सत्ता का सबसे बड़ा आकर्षण हैं। क्योंकि मुख्यालय नियंत्रित अखबारों में विज्ञापनों के अलावा मौलिक जैसा कुछ नहीं होता, वैसे ही राजनीति के परदे पर मौलिक संवाद भी कुछ नहीं होता।
यथार्थ सिर्फ राजनीतिक समीकरण होते हैं।
यही फासिज्म का राजकाज है।
SFI activists raise slogans at the Rohith Vemula protest in Delhi