बुरहान मर सकता है, विचार नहीं, बंदूक से तो बिल्कुल नहीं
बुरहान मर सकता है, विचार नहीं, बंदूक से तो बिल्कुल नहीं
कश्मीर, कश्मीरी और हम
मनोज शर्मा
एक झूठ यदि दस बार बोला जाये, तो वह सच लगने लगता है, तो सोचो जो झूठ पिछले 68 सालों से लगातार हमसे बोला जा रहा है, क्या वह हमारे दिमाग पर अपनी अमिट छाप नहीं बना चुका होगा।
ऐसी ही है, कुछ कश्मीर की कहानी।
कश्मीर का नक्शा सब बयां करता है। हरे रंग से दर्शित पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, जो सन् 1948 में पाकिस्तान ने हमला कर हमसे अलग कर दिया था और लाल रंग से दर्शित चीन अधिकृत कश्मीर, जो हमने 1962 के युद्ध में खो दिया था, परन्तु हमें स्कूल में बचपन से ही कश्मीर का पूरा नक्शा भारत में दिखाया जाता रहा है।
हमें बचपन से पढ़ाया जाता रहा है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
पर ये कैसा अभिन्न अंग है, जिसका अपना अलग संविधान है, अलग कानून है, यहां तक कि झंडा भी अलग है, जिस पर भारत का कोई कानून लागू नही होता, जहां आप जमीन नही खरीद सकते, जहां भारत का झंडा जलाया जाना या भारत के विरूद्ध नारे लगाना अपराध नही है, क्योंकि धारा 370 के तहत उन्हे इसका अधिकार प्राप्त है।
पर फेसबुक पर भारतीय झंडे के जलते हुए फोटो डालकर हमारा खून खौला दिया जाता है और हम अंधे होकर देने लगने हैं कश्मीरियों को गालियां।
कश्मीर एक अलग रियासत थी, जिसे आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों खुद में मिलाना चाहते थे, ना पूरी तरह भारत ही मिला पाया और न ही पाकिस्तान। आजादी के समय नेहरू ने जनमत संग्रह का प्रस्ताव रखा था, जो जिन्ना को कुबूल नहीं था, तब कश्मीर की आवाम भारत के साथ विलय चाहती थी, आज पाकिस्तान जनमत संग्रह चाहता है, तो भारत बच रहा है, क्योंकि आज वहां की आवाम आजादी चाहती है।
नुकसान सिर्फ कश्मीर और कश्मीरियों का ही हुआ है
ऐसा नहीं है कि अशांति केवल भारत के कश्मीर में है, पाकिस्तान वाले हिस्से में भी कश्मीरी आजादी चाहते हैं। भारत पाक की इस रस्साकशी में किसको फायदा हुआ, ये तो नहीं पता, पर नुकसान सिर्फ कश्मीर और कश्मीरियों का ही हुआ है, जो हमेशा ठगे ही गये हैं। उनसे कोई नहीं पूछता कि उन्हें क्या चाहिये? उन्हें न तो भारत चाहिये और न पाकिस्तान चाहिये, उन्हें अपना आजाद कश्मीर चाहिये और आजादी के लिए लड़ना सबका अधिकार है।
पिछले 62 सालों में हमने कभी कश्मीर को ये अहसास नहीं होने दिया कि वह भारत का हिस्सा है, धारा 370 ने लगातार कश्मीर की भारत से दूरी को बनाये ही रखा है। धारा 370 कश्मीर का भारत में अस्थायी विलय हेतु प्रलोभन था, जिसे बाद में हटाना जरूरी था। दिल में गुलाब रखने वाले कभी खून की स्याही से इतिहास नहीं लिखा करते, किन्तु बाद में भी किसी के द्वारा कोई सार्थक प्रयास नही किया गया।
जनसंघ (आर.एस.एस.) के संस्थापकों में से एक डॅा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा सबसे पहले धारा 370 का विरोध किया गया और तब से आज तक यह भाजपा के एजेंडें में भी है, लेकिन लगता है, राम मंदिर की तरह धारा 370 को हटाने का मुददा भी सत्ता में आने का साधन मात्र था।
पानी पी पी कर कांग्रेस को कोसने वाले भाजपाई अब बतायें कि अब तो आप केन्द्र में भी हो और राज्य में भी अब क्या बाधा है, धारा 370 को हटाने में।
पर ये क्या कश्मीर से धारा 370 हटायेंगें, इन्होने तो नागालैंड को भी अलग पासपोर्ट और झंडा दे दिया। हटा दीजिए धारा 370 और बना दीजिए कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग, नही तो धारा 370 जब तक नहीं हटती, तब तक यासीन मलिक हो या अफजल गुरू इनको आतंकवादी कहने का भी आपको कोई अधिकार नहीं है। इन्हें अपनी आजादी के लिए लड़ने का उतना ही अधिकार है, जितना भगत सिंह और चंद्रशेखर को था।
पिछले लगभग तीन दशकों से हमने शांति और ताकत दोनों इस्तेमाल कर लिये, पर कश्मीर में शांति कायम हुई, हालात बद से बदतर हो रहे हैं। वजह संवाद की कमी रही है, जब भी संवाद की बात आयी, तो हर पार्टी ने हुर्रियत से ही बातचीत की है और हुर्रियत कश्मीरियत की राजनीतिक दलाल है, जो भारत और पाकिस्तान दोनों की सरकारों से बस अपना फायदा देखती है, कश्मीर का नहीं। हमने कभी सीधा संवाद कश्मीर के युवाओं से नही किया, जो कि सबसे आवश्यक था और आज भी युवाओं के साथ कोई संवाद नही हो रहा है।
मोदी जी कश्मीर के बहाने उत्तर प्रदेश के चुनावों पर निशाना साध रहे हैं,
यकीन नही तो चारों तरफ देख लो, हर कोई कश्मीर के बहाने मुसलमानों को गालियां दे रहा है, यही तो उनका मकसद था। हर हिन्दू का देशप्रेम उफन कर अपने चरम पर है। मोदी जी यकीनन एक अच्छे राजनीतिकार हैं, उन्होंने दिखा दिया कि राक्षस को मारना है, तो निशाना तोते पर लगाना चाहिये। राम मंदिर का मुददा चल नहीं सकता, उत्तर प्रदेश में दंगे करा नहीं सकते, तो इस बार ऐसे सही, उत्तर प्रदेश के चुनाव बीत जाने दो कश्मीर शांत हो जायेगा।
हिंसा किसी समस्या का हल नही है, आज कश्मीर का नौजवान चेहरे ढंक कर हमला नही कर रहा है, मतलब साफ है, कि उसे आवाम का पूरा सहयोग हासिल है और इसे आतंकवाद नहीं कहा जा सकता।
सेना की ये हिंसा कश्मीर के नौजवान के दिल से रहा सहा मौत का डर भी निकाल देगी और जब डर खत्म हो जाये, तो सिर्फ तबाही बचती है, वो किसी भी हो, कश्मीरियों की या सेना की, नुकसान दोनों तरफ से भारत का ही है। जहां एक तरफ वो सेना खोयेगा और दूसरी तरफ विश्वास।
यहां बैठकर बहुत आसान है किसी को आतंकवादी कहना।
कभी सोचा है किसी बेटे के सामने उसके बाप को उठा कर सेना ले जाये और फिर उसका कुछ पता नही न चले, क्या बीतेगी उस बेटे पर। किसी बाप के सामने उसके जवान बेटे को पुलिस ले जाये और फिर वो कभी न लौटे, मर गया ये सब्र करने के लिए लाश भी न मिले, बाप तो जैसे तैसे सब्र कर भी ले, पर मां की आंखे हमेशा इंतजार करती रहेंगीं।
पर बुरहान वानी के जनाजे में भीड़ आपसे कह रही है, कि अब कश्मीर में मांओं ने इंतजार करना छोड़ दिया है और ये बात बहुत खतरनाक है। ये भीड़ बुरहान वानी के जनाजे के पीछे नहीं आ रही थी। ये किसी विचार के पीछे थी, किसी मकसद के पीछे थी। आज आप एक बुरहान मारोगे, कल दस पैदा होंगें, आप दस मारोगे, ये सौ पैदा होंगें, आप सौ मारोगे, ये हजार पैदा होंगें।
बुरहान मर सकता है, विचार नहीं मर सकता।
इस विचार को प्यार और मुहब्बत से तो मारने का सोचा जा सकता है, बंदूक से तो बिल्कुल नहीं। जंगे आजादी के सिपाही के दो रूप होते हैं, जहां प्रजा के लिए वह उनका हीरो होता है, और वहीं सत्ता के लिए वह गद्दार होता है। नौजवानों के लिए उनका आदर्श होता है, वहीं सरकार के लिए आंतकवादी होता है।
जरूरत है कि कश्मीर के मुद्दे पर सभी राजनीतिक पार्टियों को एक होकर कश्मीर से संवाद करने की, कश्मीर के युवाओं से संवाद करने की। धारा 370 को हटाकर कश्मीर को अपने साथ मिलाने की, उसे अपना बनाने की। कश्मीर के हर नौजवान से आंतकवादी का तमगा हटाने की। भला ऐसा कौन सा दिल है, जो प्यार से नहीं पिघलाया जा सकता। मेरे या आपके कह देने से कोई आतंकवादी नहीं हो जायेगा, कश्मीरियों की निगाह में वो शहीद ही कहलायेगा और शहीद कभी मरते नहीं हैं।
हल एक ही है, कश्मीर से धारा 370 हटाकर कश्मीर को भारत की मुख्य धारा में जोड़ें, कश्मीर को अपनायें, कश्मीरी को अपनायें। वरना धारा 370 के हटने तक कश्मीर में मरने वाला हर बुरहान शहीद है।
ये नफरत बुरी है,
न पालो इसे, दिलों में खलिश है,
निकालो इसे,
ना तेरा, ना मेरा, ना इसका, ना उसका,
ये सबका वतन है, बचा लो इसे।"


