बुरा हाल रेल का, फिर भी "प्रभु" के गुण गाये जा रहे हैं? आखिर सवाल करने वाले लोग कहाँ हैं?
बुरा हाल रेल का, फिर भी "प्रभु" के गुण गाये जा रहे हैं? आखिर सवाल करने वाले लोग कहाँ हैं?
जानिये यह साल रेलवे के लिए अब तक "खास" क्यूँ है
अजयेन्द्र त्रिपाठी
Ajayendra Tripathi
हमारी ज़िन्दगी में ट्रेन ने कितना कुछ बदला है न! मुझे मेरी पहली ट्रेन यात्रा नहीं याद लेकिन यह याद है कि पुलिस के बाद मैं सबसे ज्यादा टीटी से डरता था, टिकट होने के बाद भी जब तक वो चेक न हो जाए और टीटी चला ना जाए तब तक धुक-पुक-धुक-पुक होती रहती थी.
अनगिनत यात्रायें, अनगिनत किस्से, अनगिनत बहसें और ट्रेन में अकेले यात्रा करते वक़्त घर से दी जाने वाले अनगिनत चेतावनियाँ जिसको ध्यान से सुनने की एक्टिंग करना और बेपरवाही से कान से निकाल देना हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हुआ करती हैं.
कितनी अच्छी बुरी यादें हैं ट्रेन को लेके. मुझे याद है शाहगंज से अपने घर जाते हुए मेरा जूता चोरी हो गया था और मैं नंगे पाँव स्टेशन से उतर कर घर गया था. इस बला को पकड़ने के लिए 2 घंटे पहले ही घर से निकल जाते थे भले वो समय से 1 घंटा लेट आये. पहली बार एसी में यात्रा भी अभी कुछ 3-4 साल पहले ही की है और मारे ख़ुशी के बताया था घर. कुछ खास समझ नहीं आता था लेकिन बचपन से रेल बजट टीवी पर देखते थे और उसके सफलता का पैमाना ये था कि रेल-मंत्री ने हमारी तरफ से एक रेल गाड़ी नई चलाई या नहीं.
जब बड़े हुए तो यह देख के बड़ा अच्छा लगने लगा था कि ये भारत की सबसे सफल आर्गेनाइजेशन में से एक है, और हो क्यूँ नहीं 11000 से कुछ ऊपर ट्रेन्स का रोज चलना कोई मजाक तो नहीं है.
इस बार ट्रेन में चढ़े बहुत दिन हो गए थे, लगभग 8-9 महीने और इस बीच रपटों ने इसकी गुणवत्ता को सुधार दिया था. इस क्रांति के बारे में अखबारों, न्यूज चैनल्स, सोशल मीडिया में खूब चर्चा थी. एक ट्वीट पर रेल मंत्री पानी पहुँचाने से लेके भ्रष्टाचार तक पर नकेल कस रहे थे तो देख सुनके बहुत अच्छा लग रहा था.
फिर वो दिन आया जब हम इस बार होली मनाने के लिए छुट्टी लेके घर की तरफ निकले, और पता चला की ट्रेन को "Re-schedule" कर दिया गया है. खैर 2 बार "Re-schedule" होने के बाद ट्रेन शुरुआत में ही 7 घंटा लेट हो चुकी थी. हम ठहरे "इन्टरनेट" वाले सो "आनंद विहार" हम लेट ही निकले. कुल आठ-नौ सौ किलोमीटर की यात्रा के करके जब अगले दिन "बेल्थरा रोड" पहुंचे तो ट्रेन 15 घंटे लेट हो चुकी थी. एक आम भारतीय की तरह तसल्ली दी कि चलो कभी-कभार हो जाता है .
होली के बाद फिर दिल्ली आने का दिन आया और "सीतामढ़ी" से "बेल्थरा रोड" स्टेशन आते-आते ट्रेन 6 घंटा लेट हो गई थी, और दिल्ली तक पहुचाते-पहुचाते कुल 14 घंटे लेट रही. इन सबमे एक बात बड़ी कमाल की हुई, हुआ यूँ कि मेरे आगे बैठे लोगों में उत्तर प्रदेश के चुनाव के नतीजों की बहस धीरे-धीरे ट्रेन पर आई और फिर "प्रभु" के किस्से शुरू हो गए. "उन्होंने ये किया है, उन्होंने वो किया है", रहा न गया तो कह दिया कि "ट्रेन वैसे 12 घंटे लेट चल रही है अभी!". बस इतना सुनना था कि दो लोगों में से एक ने स्वच्छता अभियान पर लपेट कर दोष लोगों को दिया और दूसरे ने ये बताया कि ये ट्रेन ही घटिया है.
मेरे लिए इस ट्रेन से पहली यात्रा नहीं थी, मैं दिल्ली से जब घर गया हूँ, लगभग इसी ट्रेन से गया और आया हूँ और 2-4 घंटे से ज्यादा कभी लेट नहीं रहा. बहरहाल, मैंने भी सोचा कि यह एक-दो बार का है और इसमें "प्रभु" को दोष देना ठीक नहीं है. पर निश्चय किया कि दिल्ली जाके सबसे पहले एक्सप्रेस ट्रेनों की एक लिस्ट निकालूँगा और 1-2 महीने में उनके लेट-लतीफी की एनालिसिस करूँगा. फिर ख्याल आया कि 1-2 महीने पहले तो कुहरा वगैरह था तो ट्रेन का थोड़ा लेट होना लाजिमी है इसलिए जितना पीछे का मिल पाए निकालूँगा. संयोग से 1 जनवरी 2014 से अब तक का डाटा पाने में सफलता मिल गयी, हालाँकि इसमें 3-4 दिन लग गए. कुल 16 लाख से ऊपर रिकार्ड्स. इनमे पसेंजर/लोकल/सुविधा/स्पेशल ट्रेन्स को शामिल नहीं किया था
अब जब इनकी एनालिसिस की तो जो आंकड़े आये उसका कुछ हिस्सा आप तक पंहुचा रहा हूँ.
मुझे नहीं पता कि इतनी लेट ट्रेन्स होने के बाद भी "प्रभु" के गुण क्यूँ गाये जा रहे हैं? आखिर सवाल करने वाले लोग कहाँ हैं?
अगर ट्वीट देखकर दूध का पहुंचना मीडिया देख सकता है तो यह नंगी आँखों का सच क्यूँ नहीं देख पा रहा है? कि 2016, 2015, 2014 के शुरूआती 3 महीनों के एवरेज से कई गुना एवेरेज लेट हैं ट्रेन्स. एक ट्रेन जिसका औसत लेट समय 2-4 घंटे था वो 80 बार चलने में 41 बार 15 घंटे से ज्यादा लेट रही है. जाने कितने ट्रेन्स के ये हालात हैं.
मैंने अपने और अपने मित्रों के सहयोग से हर स्तर पर यह रिपोर्ट मीडिया और नेताओं तक पहुचाने की कोशिश की है पर अफ़सोस की शायद ही किसी को इसमें दिलचस्पी दिखी. कारण अज्ञात है.
आखिर में आप तक सीधा पहुंचा रहा हूँ.
इस वेबसाइट पर आप अपने सुविधानुसार फ़िल्टर करके ट्रेन्स की स्थिति देख सकते हैं, पिछले तीन महीने की "समरी" और उसकी पिछले साल से तुलना सबसे ऊपर ही कर दी है.
आप इस पर सोच सकते हैं, इग्नोर कर सकते हैं, बधाई दे सकते हैं, गाली दे सकते हैं कि मैंने "प्रभु" पर ऊँगली उठाई, ट्रोल भी कर सकते हैं मेरे किसी पिछले फेसबुक या ट्विटर के पोस्ट के बिना पर या लोगों तक पहुंचा कर सरकार की जवाबदेही भी तय कर सकते हैं. यह आपकी मर्जी है कि आपको क्या करना है.
मैं अब मुक्त हूँ.
आपका,
अजयेन्द्र
ईमेल: [email protected]


