संदर्भ-मध्य प्रदेश व्यापमं फर्जी भर्ती घोटाला
-जाहिद खान
मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाले की जांच की आंच अब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के परिवार तक पहुंच गई है। इस महाघोटाले में एक के बाद एक संघ और बीजेपी से जुड़े नेताओं के साथ प्रदेश के कई आईएएस और आईपीएस अफसरों के नाम सामने आ रहे हैं। हाल ही में प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस पूरे मामले की सीबीआई से जांच की मांग दोहराते हुए मुख्यमंत्री के परिजनों पर घोटले में शामिल होने का इल्जाम लगाया है। अपनी बात को पुख्ता साबित करने के लिए उसने मीडिया के सामने घोटाले से संबंधित कई एसएमएस ब्यौरे और दस्तावेज भी सार्वजनिक किए। इन एसएमएस ब्यौरों और कॉल डिटेल्स में जो बातें सामने निकलकर आई हैं, उनसे मालूम चलता है कि प्रदेश के कई प्रभावशाली लोगों ने अपने-अपने प्रतिभागियों की कामयाबी के लिए व्यापमं के तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी एवं मुख्य सिस्टम एनॉलिस्ट नितिन महेंद्रा सहित घोटाले के आरोपियों में शामिल भाजपा नेता एवं प्रसिद्ध खनन कारोबारी सुधीर शर्मा से सिफारिश की थी। शर्मा इन दिनों फरार है, और उस पर एसटीएफ ने पांच हजार रूपये का इनाम एलान किया हुआ है।
जाहिर है कि मामला बेहद संगीन है और यदि इस मामले की गंभीरता से जांच की गई, तो इसमें अभी और भी कई बड़े नाम सामने आ सकते हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में पिछले सात सालों में सरकारी भर्ती कराने वाले व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापमं ने विभिन्न श्रेणी के पदों के लिए भर्ती एवं व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए 168 प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित कीं। इन परीक्षाओं में 1 लाख 47 हजार परीक्षार्थी बैठे, जिनमें से एक हजार परीक्षार्थी जांच में फर्जी पाए गए हैं। सरकारी नौकरियों में 1000 लोगों की फर्जी भर्ती की बात खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा के अंदर स्वीकारी है। जाहिर है यह एक बड़ी संख्या है, जिसे यूं ही नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। व्यापमं भर्ती घोटाला दरअसल दो हिस्सों में बंटा हुआ है। पहला तो ये कि मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसी प्रवेश परीक्षाओं में धांधली हुई। वहीं दूसरा, सरकारी नौकरियों के लिए हुई परीक्षाओं में भी गड़बड़ी करके नाकाबिल लोगों को नौकरी दी गई। एसटीएफ की जांच में अभी तलक पुलिस आरक्षक, सब इंस्पेक्टर, संविदा शिक्षक, दुग्ध संघ भर्ती, खाद्य निरीक्षक भर्ती और वनरक्षक भर्ती परीक्षाओं आदि में धांधली सामने आ चुकी है। घोटाले खुलने की यह तो शुरूआत भर है, यदि एसटीएफ की जांच का दायरा बढ़ा, तो और भी कई परीक्षाएं शक के कठघरे में आ जाएंगी।
इस घोटाले में हालांकि अभी तलक कई प्रभावशाली लोग जेल की सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं, लेकिन फिर भी एसटीएफ 100 से ज्यादा आरोपियों की गिरफ्तारी की कोशिश में जुटी हुई है। खुद मध्य प्रदेश हाईकोर्ट इस पूरे मामले की जांच की निगरानी कर रही है। स्पेशल इनवेस्टीगेशन टीम की जांच का हर खुलासा लोगों को चौंका रहा है। एसटीएफ की जांच में जिस तरह से इस पूरे मामले में एक के बाद एक रसूखदारों के नाम सामने आ रहे हैं, उससे यह मालूम चलता है कि मामला कितना हाई प्रोफाइल है। प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से पीएमटी में फर्जीवाड़े के आरोप में अनेक छात्रों और उनके अभिभवकों को गिरफ्तार किया गया है। अब तक इस मामले में गिरफ्तार हुए छात्रों से जो पूछताछ हुई है, उसके मुताबिक ये धंधा इम्तिहान से लेकर नतीजों में हेर-फेर के जरिए बेरोक-टोक चल रहा था। मसलन अभ्यर्थी को फर्जी परीक्षार्थी के करीब बिठाया जाता था, ताकि वो नकल कर सके। अभ्यर्थी की जगह फर्जी छात्र बिठा दिए जाते थे। अभ्यर्थी आंसरशीट खाली छोड़ देता था, जिसे बाद में भरा जाता था। रिजल्ट के अंकों को बाद में बढ़ा दिया जाता था। फर्जीवाड़ा करने वाले फॉर्म पर छात्र की धुंधली फोटो लगवाते, तो कभी छात्रों की जगह डॉक्टरों से पर्चे दिलवाए जाते। इस पूरे फर्जीवाड़े में कॉलेजों के प्रिंसिपल और दलाल भी शामिल थे।
घोटाले की प्रारंभिक जांच के दौरान एसटीएफ के सामने जो सबूत उजागर हुए हैं, वे काफी सनसनीखेज हैं। एक ऐसा रैकेट, जिसमें प्रदेश के मंत्रियों से लेकर अधिकारी और दलालों का नेटवर्क काम कर रहा था। प्राप्त सबूतों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के परिवार की संलिप्तता के साथ-साथ आरएसएस के एक बड़े नेता के तरफ भी इशारा है। घोटाले में प्रदेश की एक और पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मंत्री का नाम भी शामिल है। कांग्रेस ने मीडिया के सामने जो तथ्य रखे, उसमें बताया गया है कि इस संबंध में मुख्यमंत्री निवास से कुल 139 कॉल किए गए। घोटाले में मुख्यमंत्री के पूर्व निजी सचिव प्रेम प्रसाद, प्रदेश के तत्कालीन परिवहन मंत्री जगदीश देवड़ा के निजी सचिव राजेन्द्र रघुवंशी, जनअभियान परिषद, जिसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री हैं, के उपाध्यक्ष डॉ. अजय शंकर मेहता, बीजेपी के दो सांसद, दो मंत्री और 25 से 30 आईएएस और 20 आईपीएस अफसरों के नाम भी शामिल हैं। काजल की इस कोठरी के दाग देश के ‘राष्ट्रवादी’ और ‘सांस्कृतिक’ संगठन आरएसएस के दामन पर भी हैं। पूर्व सरसंघचालक केएस सुदर्शन के सेवक मिहिर कुमार और मौजूदा सरसंघचालक मोहन भागवत के पर्सनल सेवक और उनके कई रिश्तेदारों ने भी इन परीक्षाओं में अपने-अपने परीक्षार्थियों को पास कराने के लिए सिफारिश की थी। यानी बहती गंगा में सबने हाथ धोए।
इस मामले में अभी तलक जो भी कार्यवाही और गिरफ्तारियां हुई हैं, वह अदालत के ही दवाब में हुई हैं। वरना प्रदेश सरकार ने तो इन अपराधियों को बचाने का ही प्रयास किया है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट इस मामले की लगातार निगरानी कर रहा है। अदालत की निगरानी और कड़ी फटकार का ही नतीजा है कि एसटीएफ को आखिरकार मुख्यमंत्री के चहेते और आरएसएस के करीबी पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी करनी पड़ी। सच बात तो यह है कि आरएसएस और मुख्यमंत्री से नजदीकता ने ही उन्हें भर्ती का फर्जी खेल खेलने का मौका दिया और मालूम चलने के बाद भी उस पर किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की। शर्मा की गिरफ्तारी शिक्षकों की भर्ती के मामले में हुई है और बाकी मामलों की अभी जांच चल रही है। लक्ष्मीकांत शर्मा पर इल्जाम ये भी है कि वह अपने रसूख का इस्तेमाल दूसरी भर्तियों में भी करता था। उमा भारती कैबिनेट से लेकर शिवराज सिंह की कैबिनेट तक लगातार दस साल तक प्रदेश के मलाईदार विभागों में मंत्री रहे लक्ष्मीकांत शर्मा का नाम, खनन मंत्री रहते हुए प्रदेश के खनन घोटाले में भी आया था, लेकिन सरकार ने बड़े ही बेशर्मी से उसे उस वक्त बचा लिया था। इस बार भी पर्याप्त सबूतों के बावजूद एसटीएफ पहले लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी टालती रही, मामले की जांच की आंच जब मुख्यमंत्री के परिवार तक पहुंची, तब जाकर उसकी गिरफ्तारी हुई।
कुल मिलाकर इस मामले की जांच में अभी तलक जो भी दस्तावेज सामने आए हैं, इन दस्तावेजों से साफ जाहिर होता है कि मध्य प्रदेश में कई सालों से दलालों, नौकरशाहों और शिक्षा माफिया का नापाक गठबंधन चल रहा है। यह गठबंधन, बेखौफ होकर शिक्षा और सरकारी नौकरियों को बड़े पैमाने पर नीलाम कर रहा था, जिसका फायदा अमीर और रसूखदार लोग उठा रहे थे। प्रतिभा की कीमत पर पैसे वाले और सिफारिशी मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले रहे थे। प्रतिभाशाली छात्र सरकारी नौकरी पाने के लिए दिन-रात एक करते रहे और नाकाबिल लोग पीछे के रास्ते से नौकरी पा गए। यदि व्यापमं घोटाले में दागी अफसर पंकज त्रिवेदी, नितिन मोहिंद्रा, ओपी शुक्ला और पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा एवं उनके करीबी सुधीर शर्मा की कॉल डिटेल्स निकाली जाए, तो बाकी आरोपियों के नाम भी सामने आ जाएंगे। सच बात तो यह है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो, तो प्रदेश के मुख्यमंत्री भी इससे बच नहीं पाएंगे। चूँकि इस घोटाले में कई रसूखदारों के नाम सामने आ रहे हैं, लिहाजा जरूरी है कि इस मामले की जांच जल्द से जल्द सीबीआई को सौंप दी जाए, जिससे इसकी व्यापक जांच हो सके। एसटीएफ की जांच पर इसलिए भी संदेह है, क्योंकि इस पर नियंत्रण अंततः राज्य सरकार का ही है। मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी सीबीआई जांच जरूरी है, लेकिन शिवराज सरकार मामले की सीबीआई जांच कराने से लगातार कतरा रही है। जब भी सीबीआई जांच की बात होती है, तो सरकार उसे टाल जाती है। ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला है। यदि प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनका परिवार इस घोटाले में बेदाग है, तो वे इस मामले की सीबीआई जांच से क्यों घबरा रहे हैं ?
जाहिद खान, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।