बोले समाजवादी-बड़े पैमाने पर किसान और आदिवासियों की जमीन छीनने की साजिश
बोले समाजवादी-बड़े पैमाने पर किसान और आदिवासियों की जमीन छीनने की साजिश
अंबरीश कुमार
पुणे। किसानों और आदिवासियों की जमीन छीने जाने के खिलाफ समाजवादी धारा के कार्यकर्त्ता देश भर में अभियान छेड़ेंगे। यह फैसला गुरूवार यहाँ हुए समाजवादी समागम में हुआ। इस आगाज के साथ ही मुंबई के पनवेल से शुरू हुई समाजवादियों की पहल रंग लाती नजर आ रही रही है। एक तरफ समाजवादी धारा के साथ गांधीवादी, वामपंथी और आम्बेडकर वादी साथ आ रहे है तो दूसरी तरफ वामपंथी ताकतें भी समाजवादी धारा के कार्यकर्ताओं के साथ संवाद शुरू कर चुकी हैं। यह प्रक्रिया देश में बदलाव की दिशा में हो रहे पहल का भी संकेत है।
पुणे के एसएम जोशी सोशलिस्ट फाउंडेशन में हुए समाजवादी समागम से यह साफ़ हो गया। यहाँ पर समाजवादी धारा के बीच बढ़ते संवाद और भविष्य के राजनैतिक कार्यक्रमों पर चर्चा हुई तो साथ ही वामपंथी और समाजवादी कार्यकर्ताओं के बीच हुए संवाद की भी जानकारी दी गई। समाजवादी समागम में देश भर से जो प्रमुख कार्यकर्त्ता पहुंचे इनमें मेधा पाटकर, योगेन्द्र यादव, विजयप्रताप, मंजू मोहन, सुभाष भटनागर, डा सुनीलम, लिंगराज, दयामनी बरला आदि शामिल थे। देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे जन आंदोलनों के प्रतिनिधियों के साथ दक्षिण भारत के चारो राज्यों से समाजवादी कार्यकर्त्ता पहुंचे थे। समाजवादी समागम मुख्य रूप से किसानों और आदिवासियों की जमीन के अधिग्रहण के अलावा असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के सवाल के साथ शिक्षा स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों पर फोकस करेगा।
समागम में पहले राज्यों से आए प्रतिनिधियों ने रपट रखी और भविष्य के कार्यक्रमों का ब्यौरा दिया। इसके साथ ही आगे के कार्यक्रम के लिए कामकाज का बंटवारा करते हुए टीम का गठन किया गया। इसके साथ ही कृषि, विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा विदेश सामाजिक और आर्थिक नीति पर चर्चा शुरू हुई। समागम में जल जंगल जमीन के साथ खनिज और विस्थापन का मुद्दा प्रमुख रूप से उठा और किसानों आदिवासियों पर मंडरा रहे खतरों की और इशारा किया गया। एक्सप्रेस वे के नाम पर उत्तर प्रदेश के साथ पंजाब से बंगाल और कोलकोता से चेन्नई तक प्रस्तावित परियोजनाओं की जानकारी दी गई जिसके चलते समूचे देश में किसानों की बहु फसलीय जमीनें छीनी जाएंगी।
पूर्वांचल से आए किसान नेता शोमनाथ त्रिपाठी ने कहा- वह गंगा एक्सप्रेस जो मायावती के राज में बंद हो गया था उसे फिर से शुरू करने की साजिश हो रही है। जिसके चलते बलिया से नोयडा तक तीन किलोमीटर चौड़ी खेत की जमीन अधिगृहित की जाएगी। इसके खिलाफ एक बड़े आन्दोलन की तैयारी शुरू करनी होगी। बाद में मेधा पाटकर ने इसमें सुधार करते हुए कहा सिर्फ तीन नहीं तीन सौ किलोमीटर चौड़ी खेती की जमीन ली जाएगी जिसके दायरे में किसान से लेकर जंगल में रहने वाला आदिवासी तक आएगा।
झारखण्ड से आई दयामनी बरला ने कहा कि अगर आदिवासियों को जंगल से बेदखल किया गया तो उनकी संस्कृति भाषा जीवन शैली सब नष्ट हो जाएगी। पर सरकार इस सबके बावजूद कारपोरेट क्षेत्र को जंगलों की जमीन लूटने की छूट दिए हुए है। इसका मुकाबला लगातार किया गया है और अब सबको साथ आकर यह लड़ाई लड़नी होगी।
योगेन्द्र यादव ने मौजूदा सन्दर्भ में समाजवाद की अवधारणा पर विस्तार से प्रकाश डाला।
इस मौके पर फरीदाबाद में असंगठित मजदूरों के बीच काम करने वाले जेएस वालिया ने खाद्य सुरक्षा कानून में हुए अघोषित बदलाव का जिक्र करते हुए कहा कि अब पचास वर्ग मीटर जमीन रखने वाले मजदूर को सस्ता अनाज देना बंद कर दिया गया है। यह नई सरकार ने किया है।
उड़ीसा से आये लिंगराज ने कहा कि नई सरकार ने कई ऐसे फैसले किये है जिससे किसानों के सामने ख़ुदकुशी के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। उन्होंने कहा कि देशभर में जिस छतीसगढ़ माडल को आदर्श माना जाता था उसे केंद्र सरकार के फैसले से बड़ा झटका लगा है। अब छतीसगढ़ में एक एकड़ में सिर्फ दस क्विंटल की सरकारी खरीद होगी और धान की खरीद पर जो बोनस राज्य सरकार देती थी उसे केंद्र ने बंद करने का आदेश दे दिया है। जबकि इस सरकार के प्रतिनिधि अंतरराष्ट्रीय मंच पर खाद्य सुरक्षा की बात करते है और देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत खरीदे जा रहे धान की मात्रा आधी से कम करने का निर्देश दे रहे है। इससे इनके दोहरे चरित्र को समझा जा सकता है।


