ब्राह्मण जब ब्राह्मणवाद को चुनौती देगा तब बात बनेगी थोडुर मादाबुसी कृष्णा ने यही किया
ब्राह्मण जब ब्राह्मणवाद को चुनौती देगा तब बात बनेगी थोडुर मादाबुसी कृष्णा ने यही किया
अभिषेक श्रीवास्तव
बेजवाड़ा विल्सन को रेमन मैगसायसाय पुरस्कार मिला।
उन्हें बधाई। मैला ढोने वालों के बीच उनके काम से मोटे तौर पर हम सब परिचित हैं। पिछले कुछ साल से वे लगातार दिल्ली में दिखते रहे हैं इसलिए हिंदी के तमाम लेखक उनसे परिचित हैं।
क्या आप जानते हैं कि भारत में दूसरा मैगसायसाय पुरस्कार किसे मिला है?
अफ़सोस है कि सवेरे से उस आदमी का किसी ने नाम नहीं लिया। इस आदमी का नाम है थोडुर मादाबुसी कृष्णा। मेरी इस शख्स में विशेष दिलचस्पी इसके काम को लेकर है।
थोडुर मादाबुसी कृष्णा जाति से ब्राह्मण हैं। दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत में पारंगत।
खानदानी विरासत है। इन्होंने इस संगीत के सामाजिक आधार पर सवाल खड़ा कर दिया। पूछा कि आखिर शास्त्रीय संगीत पर ब्राह्मणों का कब्ज़ा क्यों है।
इन्होंने कला की राजनीति पर सवाल खड़ा किया, दलितों और गैर-ब्राह्मण समुदायों की कलाओं का अध्ययन किया। ...और कर्नाटक संगीत में जातिगत व वर्गीय समावेश न होने का विरोध करते हुए चेन्नई के सालाना संगीत समारोह का बहिष्कार कर डाला।
फिर कला के लोकतांत्रीकरण के लिए इन्होंने स्वतंत्र काम शुरू किया।
संगीत के माध्यम से इन्होंने गृहयुद्ध प्रभावित श्रीलंका में दो साल काम किया और सामाजिक तबकों को आपस में जोड़ा।
चेन्नई में मछुआरों, दलितों, उच्च-वर्गों के बीच शास्त्रीय संगीत से इन्होंने एकजुटता कायम की और सांस्कृतिक भेदभाव को कम किया।
दलित तो दलित की लड़ाई लड़ेगा ही, लेकिन ब्राह्मण जब ब्राह्मणवाद को चुनौती देगा तब बात बनेगी।
कृष्णा ने यही किया है। जातिगत और वर्गीय दरारों को संगीत से भरने और उपचारित करने के इस दुर्लभ प्रयास के लिए इन्हें मैगसायसाय मिला है।
क्या हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर ब्राह्मणों के कब्ज़े का सवाल उठाने वाले किसी शख्स को आप जानते हैं? पता हो तो बताइएगा। उसे मिलकर नोबल दिलवाया जाएगा।
शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण न ले पाने की मेरी पुरानी टीस भी कम होगी इसी बहाने।


