ब्रेक्सिट संकट-मिथ्या हिंदुत्व के फर्जी एजंडे से कल्कि महाराज ने भारत को फिर यूनान बनाने की ठान ली
ब्रेक्सिट संकट-मिथ्या हिंदुत्व के फर्जी एजंडे से कल्कि महाराज ने भारत को फिर यूनान बनाने की ठान ली
जगत मिथ्या, अहम् ब्रह्मास्मि!
पलाश विश्वास
स्पेक्ट्रम नीलामी को हरी झंडी
ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन का हिस्सा बना रहेगा या नहीं, इस सवाल पर आज ब्रिटेन में जनमत संग्रह होने जा रहा है। चूंकि संसाधनों और सेवाओं की नालामी है राजकाज है, वही राजधर्म है तो मुनाफावसूली के भविष्य को लेकर सत्तावर्ग की नींद हराम है।
दरअसल इस जनमत संग्रह का मुद्रा एवं शेयर बाजार पर तो असर होगा ही, उन देसी कंपनियों पर भी फर्क पड़ सकता है, जिनका यूरोप में भारी निवेश है। इनमें टाटा स्टील और टाटा मोटर्स और सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं। ये कंपनियां अपने राजस्व का बड़ा हिस्सा यूरोप से हासिल करती हैं।
कहा जा रहा है कि आज का दिन पूरी दुनिया के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि आज होने वाली वोटिंग से ये फैसला हो जाएगा कि क्या यूरोपीयन यूनियन में ब्रिटेन बना रहेगा या फिर अलविदा कह देगा। ब्रेक्सिट पर घमासान मचा हुआ है। जो लोग यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के निकलने यानी ब्रेक्सिट की वकालत कर रहे हैं वो इसे अपने ही देश पर फिर से हक जमाने की लड़ाई मान रहे हैं।
खबरों के मुताबिक बिग बुल के नाम से मशहूर रेयर एंटरप्राइजेज के राकेश झुनझुनवाला का मानना है कि अगर ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन से बाहर जाता है तो यूरोपियन यूनियन बिखर जाएगा। वहीं डब्ल्यू एल रॉस एंड कंपनी के विल्बर रॉस का कहना है कि यूरोपियन यूनियन से अगर ब्रिटेन बाहर होगा तो ये यूके और यूरोपियन इकोनॉमी के लिए बेहद खराब होगा।
ब्रेक्सिट पर रिजर्व बैंक की भी नजर बनी हुई है। आरबीई गवर्नर रघुराम राजन के मुताबिक अगर ब्रेक्सिट के चलते बाजार में लिक्विडिटी की दिक्कत आती है तो उसे दूर किया जाएगा।
इतिहास में कोई ऐसा शासक हुआ नहीं है जिसने इतिहास से सबक सीखा है।
सारे के सारे शासकों ने हमेशा अपना इतिहास बनाने के लिए सारी ताकत झोंक दी। इसी में उनका उत्थान और इसी में फिर उनका अनिवार्य पतन। आखिर इतिहास उन्हीं का होता है। रोजमर्रे की जिंदगी में मरती खपती जनता को कोई इतिहास कहीं दर्ज नहीं होता, जैसे आम जनता के रोजनामचे का कोई अखबार नहीं होता। यह काम साहित्य और संस्कृति का कार्यभार है और आज तमाम माध्यम और विधायें कारपोरेट महोत्सव है औरबाजार भी कारपोरेट शिकंजे में हैं। इस महातिलिस्म में इकलौता विकल्प आत्म ध्वंस का है जिसे हम तेजी से अपनाते जा रहे हैं।
हमारे लिए रामायण और महाभारत कोई पवित्र धर्म ग्रंथ नहीं हैं बल्कि कालजयी महाकाव्य हैं जैसे यूनान के इलियड और ओडेशी।
इन चारों विश्वप्रसिद्ध महाकाव्यों में मिथकों की घनघटा है तो पल पल दैवी चमत्कार और अलंघ्य नियति के चमत्कार हैं। चारों महाकाव्यों में दैवी शक्तियों के मुकाबले मनुष्यता की अतुलनीय जीजिविषा है जहां ट्राय, सोने की लंका और कुरुक्षेत्र के दृश्य एकाकार हैं। सत्ता संघर्ष की अंतिम परिणति इन चारों महाकाव्यों में आत्मध्वंस की चकाचौंध है, जो आज मुकम्मल मुक्ता बाजार है।
भारतीय सत्ता वर्ग की नींद हराम हो गयी है। आम जनता के रोजमर्रे की जिंदगी की तकलीफों, समस्याओं की वजह से नहीं, बल्कि भारतीय पूंजी के विश्वबाजार में मुनाफावसूली पर अंकुश लगने के खौफ की वजह से क्योंकि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में बने रहने पर जनमत संग्रह शुरु हो चुका है।
इस जनमत संग्रह के नतीजे शुक्रवार तक आ जायेंगे। उसे हम किसी भी स्तर पर प्रभावित नहीं कर सकते लेकिन अब तय है कि इससे हम प्रभावित जरुर होगें क्योंकि इसके नतीजे के मुताबिक मुनाफावसूली का सिलसिला बनाये रखने के लिए नरसंहारी अश्वमेध अभियान और भयानक, और निर्मम होना तय है और हम गुलाम प्रजाजन अपनी नियति से लड़ने का दुस्साहस नहीं कर सकते।
जिन्होंने यूरोपीय यूनियन में ब्रिटेन के बने रहने का परचम थाम रखा है वो मानते हैं कि ये ब्रिटेन को बचाने का सबसे बड़ा मौका है।
लंदन से लेकर दिल्ली तक की नजर इस अहम दिन पर बनी हुई है।
ज्यादा दिन नहीं हुए महान यूनानी सभ्यता के उत्तराधिकारियों ने यूनान के इतिहास को जमींदोज करते हुए आत्मध्वंस की परिक्रमा अबाध पूंजी और मुक्तबाजार के तिलिस्म में संपूर्ण निजीकरण और संपूर्ण विनिवेश के रास्ते पूरी कर ली। फिर उनने अपने महाकाव्यों के किस देवता या किस देवी के नाम भव्यमंदिर कहां बनाया, एथेंसे से ऐसी कोई खबर नहीं है, लेकिन महान यूनानियों की फटेहाल जिंदगी और उनकी दिवालिया अर्थव्यवस्था जगजाहिर है।
मिथ्या हिंदुत्व के फर्जी एजंडे से राजा दुर्योधन की तरह विश्वविजेता बनने के फिराक में कल्कि महाराज ने भारत को फिर यूनान बनाने की ठान ली है। ब्रेक्सिट संकट निमित्तमात्र है।
बेहतर होता कि वे और भव्य राम मंदिर के उनके तमाम पुरोहित मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पुष्पक विमान से रेशम पथ की भी परिक्रमा कर लेते तो उन्हें शायद उस इतिहास के सबक से परहेज नहीं होता कि जिस सनातन भारतीय सभ्यता की बात वे करते अघाते नहीं हैं, वहां कोई सिंधु घाटी की विश्वविजेता वाणिज्यिक नगर सभ्यता भी थी और यूरोप में सभ्यता की रोशनी पहुंचने से पहले, अमेरिका का आविष्कार होने से पहले माया और इंका सभ्यताओं के जमाने में जब मिस्र, मेसोपोटामिया, यूनान, रोम और चीन की सभ्यताओं के मुकाबले हमारे पूर्वजों ने विश्व बंधुत्व के विविध बहुल तौर तरीके अपनाते हुए व्यापार और कारोबार, उद्यम में अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता, अपनी सभ्यता और संस्कृति के मूल्य पर कोई समझौता किये बिना रेशम पथ के जरिये पूरी दुनिया जीत ली थी और किसी पर हमला भी नहीं किया था यूरोप और अमेरिका की तरह। न प्रकृति से कोई छेड़छा़ड़ की थी उनने।
गौरतलब है कि इस ब्रिटेन ने बायोमैट्रिक पहचान पत्र के सवाल पर सरकार गिरा दी थी और भारतीय आधार कार्ड परियोजना लागू होने से पहले नाटो की नागरिकों की निगरानी की इस आत्मध्वंसी प्रणाली को खारिज कर दी थी।
अब ब्रिटिश नागरिकों को अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता बनाये रखने और यूरोप व अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं से नाभि नाल संबंध तोड़ने का फैसला करना है तो नई दिल्ली में पसीने छूट रहे हैं और भारत के तमाम अर्थशास्त्री और मीडिया दिग्गज सर खपा रहे हैं कि पौंड का अवमूल्यन हुआ तो भारत के पूंजी घरानों का होना है, शेयर बाजार का क्या बनना है और आयात निर्यात के खेल फर्रूखाबादी क्या रंग बदलता है। यह है भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती।
इन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था, उत्पादन प्रणाली , भारत लोक गणराज्य या भारतीय जन गण की कोई चिंता नहीं है और तमाम बुद्धि भ्रष्ट रघुपति राजन की विदाई से घड़ा घड़ा आंसू बहा रहे हैं।
यह वैसा ही है कि कल्कि महाराज की नरसंहार संस्कृति से अघाकर हम मनमोहनी स्वर्गवास के लिए इतरा जाये।
जहर पीने के बजाये फांसी लगा लें।
नतीजा वही अमोघ मृत्यु है।
गौरतलब है कि करीब दो सौ साल तक हम इसी महान बरतानिया के खिलाफ आजादी का जंग लड़ते रहे हैं और हमारे पुरखों ने वह जंग जीत ली तो हमने बरतानिया का दामन छोड़कर फटाक से रूस, अमेरिका और इजराइल के गुलाम बनते चले गये तो अब मुक्तबाजार का विकल्प चुनकर हम मुकम्मल अमेरिकी उपनिवेश हैं।
अब भी भारतीय संसदीय प्रणाली, जनप्रतिनिधित्व, कानून का राज, न्यायपालिका से लेकर मीडिया तक ब्रिटिश हुकूमत की विरासत के अलावा कुछ नहीं है और हमने अपनी आजादी सिर्फ नरमेधी राजसूय की रस्म अदायगी तक सीमाबद्ध रखी है और आजाद जमींदारों, राजा रजवाड़ों के मातहत हम अब भी वही गुलाम प्रजाजन हैं।
दरअसल जो फिक्र है, वह भारत के हित के बारे में नहीं और न ही भारताय उद्योग और कारोबार के हित हैं ये।
यह सीधे तौर पर अमेरिकी हितों की चिंता है क्योंकि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने पर सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका को है और भारतीय सत्ता वर्ग हाय तौबा इसलिए मचाये हुए हैं कि अमेरिकी और इजरायली हितों से उनके नाभि नाल के संबंध बन गये हैं और भारत माता की जय जयकार करते हुए हिंदुत्व की दुहाई देकर यह राष्ट्रद्रोही सत्तावर्ग भारत, भारत के प्राकृतिक संसाधन, भारतीय उत्पादन प्रणाली, भारतीय श्रम, भारतीय बाजार, तमाम सेवाएं और बुनियादी जरुरतें, शिक्षा, चिकित्सा.ऊर्जा परमाणु ऊर्जा, बैंकिंग से लेकर रेलवे और उड़ान, बीमा से लेकर हवा पानी, नागरिकता, नागरिक अधिकार, मानव अधिकार सबकुछ अबाध विदेशी पूंजी के हवाले करता जा रहा है और उसी अबाध पूंजी पर मंडराते संकट के गहराते बादल से इन सबकी नींद हराम है।
संसाधनों और सेवाओं की नालामी है राजकाज है । मसलन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज बड़े पैमाने पर स्पेक्ट्रम नीलामी योजना को मंजूरी दे दी है।


