भगवा आतंक एक बड़ी चुनौती, न्यायपालिका को तोड़नी चाहिए चुप्पी
भगवा आतंक एक बड़ी चुनौती, न्यायपालिका को तोड़नी चाहिए चुप्पी
राजस्थान के राजसमंद में शंभू रेगर नाम के एक हिंदू आतंकी ने जिस तरह अफराजुल नाम के गरीब मज़दूर को बिना किसी अपराध के लव जेहाद के नाम पर दिन-दहाड़े जिस तरह मार डाल और पेट्रोल डाल कर जला दिया, उसका उदाहरण स्वतंत्र भारत के इतिहास में मिल पाना मुश्किल ही होगा। इस शख्स ने न सिर्फ एक निर्दोष इंसान की हत्या की, बल्कि उसका वीडियो भी बनाया और उसे सोशल साइट्स पर वायरल भी किया। जाहिर है, इस तरह की दुस्साहसिक गतिविधि अपने अकेले के दम पर कोई नहीं कर सकता। यह बात अब साबित हो रही है जब उसके समर्थन में कई हिंदू संगठन लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। राजसमंद में उनके प्रदर्शन और जुलूसों के अलावा फेसबुक, वॉट्सऐप आदि माध्यमों से कुत्सा प्रचार और एक समुदाय के प्रति घृणा की भावना भड़काने के साथ हिंसक गतिविधियों के प्रचार को देखते हुए प्रशासन को वहां धारा 144 लगाने के साथ इंटरनेट पर भी रोक लगानी पड़ी। लेकिन हिंदू संगठनों के लोग अपनी हरकतों से बाज आने को तैयार नहीं हैं। वे लगातार अपना काम करते जा रहे हैं। इसकी वजह ये है कि उन्हें पता है कि राजस्थान में सरकार भगवा की है जो उनके साथ है। प्रशासन उन्हें रोकने की औपचारिक कोशिश करेगा, पर इसमें सफल नहीं हो सकता, क्योंकि उसे भी रानी साहिबा के इशारे पर काम करना है।
अगले साल राजस्थान में चुनाव देखते हुए वसंधुरा राजे और संघ मंडली को इससे बेहतरीन मुद्दा शायद ही मिल सकता था, इससे हिंदू वोटों का जबर्दस्त पोलराइजेशन होगा। इसे देखते हुए इस विवाद को लगातार हवा दी जा रही है, क्योंकि इतनी नृशंस हत्या के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी या वसुंधरा राजे का एक भी बयान इसकी निंदा में नहीं आया। क्या इससे यह समझा जाए कि शंभू रेगर ने जो हत्या की, वह पूर्वनियोजित थी और उसके पीछे बड़ी साजिश थी, क्योंकि जिस तरह यह हत्या की और उसका वीडियो वायरल किया, वह बिना उच्च स्तरीय संरक्षण के संभव नहीं है।
अफराजुल की हत्या का कारण 'लव जिहाद' नही 'भगवा जिहाद' है !
अब ख़बर आई है कि मुस्लिम मज़दूर को मार और जला कर उसका वीडियो वायरल कराने वाले शंभू के लिए 516 लोगों ने उसकी पत्नी के खाते में तीन लाख रुपए जमा कराए हैं। एक नृशंस हत्यारे के लिए ऐसी सहानुभूति रखने वाले और आर्थिक सहयोग करने लोग कौन हैं, क्या केंद्र सरकार या राजस्थान सरकार ने इसके बारे में सोचा है? इन लोगों की पहचान किसी तरह छुप नहीं सकती। क्या सरकार ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने के बारे में सोचा है?
जो लोग बिहार और दूसरे राज्यों में जंगल राज की बातें करते रहते हैं, उन्हें बताना चाहिए कि आखिर ये कैसा राज है, जहां एक ख़तरनाक हत्यारे के समर्थन में हजारों की संख्या में लोग उमड़ रहे हैं और उसे जेल से छुड़वाने के लिए न्यायालय पर धावा बोल रहे हैं। 14 दिसंबर को उदयपुर जिला न्यायालय परिसर में जो हुआ, वह इस देश के लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है, पर न तो देश के प्रधानमंत्री के लिए यह कोई मुद्दा है, न ही राजस्थान की मुख्यमंत्री के लिए। हत्याकांड के मर्डर का लाइव वीडियो वायरल करने और धार्मिक भावना भड़काने का प्रयास करने के मामले में पुलिस ने पूछताछ में भड़के दो युवकों को शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार किया। उसके बाद कतिपय हिंदू संगठनों के लोगों ने शंभू के समर्थन में रैलियां निकालने की योजना बनाई।
| मनोज कुमार झा, वरिष्ठ-पत्रकार, कवि, सम्पादक, राजनीतिक टिप्पणीकार व समीक्षक हैं। |
उपदेश राणा नाम के एक हिंदूवादी कार्यकर्ता फेसबुक पोस्ट कर 14 दिसंबर को भारी संख्या में लोगों के उदयपुर में जुटने की बात कही थी। उसने फेसबुक पर लाइव संदेश में राजसमंद और उदयपुर में रैली निकालने की बात कही थी। इसे लेकर जिला कलेक्टर ने उपदेश के उदयपुर आने पर बैन लगा दिया था, बावजूद तमाम प्रतिबंधों के भारी संख्या में लोग वहां जुटे और प्रशासन को धता बताते हुए जिला न्यायालय परिसर में तिरंगा झंडा हटा कर भगवा ध्वज पहरा दिया। पुलिस बल पर रोड़ेबाजी-पत्थरबाजी की गई, जिसमें कई पुलिस अधिकारी भी घायल हो गए। यह कैसी घटना है? इतनी हिम्मत लोगों में कैसे आई कि उन्होंने न्यायालय परिसर में भगवा ध्वज पहरा दिया, न्याय के कथित मंदिर में और पुलिस-प्रशासन देखता रह गया, न्यायाधीश भी कुछ नहीं कर सके। लेकिन सत्ता को खुलेआम चुनौती देने का दुस्साहस इन हिंदूवादियों में कैसे आया? इसलिए कि इन्हें सत्ता से ही शह मिली हुई है, बाकी धारा 144, नेट पर रोक और लोगों की गिरफ्तारियां आदि दिखावा है।
सत्ता यदि चाह ले तो एक पत्ता नहीं हिल सकता, फिर हजारों की संख्या में लोग अदालत परिसर में जुट कैसे गए और तिरंगा हटा भगवा लहरा उन्होंने संविधान को कैसे चुनौती दे दी? सवाल है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या वंसुधरा की कोई जिम्मेदारी नहीं? पर वसुंधरा को इससे लाभ है। इससे पोलराइजेशन होगा और उन्हें चुनाव जीतने में मदद मिलेगी।
उदयपुर में एक हत्यारे के समर्थन में सनातन धर्म रक्षा समिति, विश्व हिंदू परिषद् और बंजरंग दल के कार्यकर्ता एकजुट हो गए हैं। पुलिस ने उपद्रव कर रहे जिन 200 लोगों को गिरफ्तार किया है, उन्हें छोड़ने का अल्टीमेटम इन्होंने प्रशासन को दिया है सनातन धर्म रक्षा समिति ने 19 दिसंबर को उदयपुर संभाग बंद किए जाने का आह्वान किया है।
विश्व हिंदू परिषद् और बजरंग दल के लोग गिरफ्तार लोगों को छुड़वाने के लिए रैलियां निकाल रहे हैं और प्रशासन को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं। प्रसाशन इसे निपटने के लिए एक ही तरीका अपना रहा है, वह है इंटरनेट का बंद किया जाना। पर यह कोई तरीका नहीं है। इंटरनेट बंद कर दिए जाने से तमाम काम ठप्प हो जाते हैं। प्रशासन कड़े कदम इसलिए नहीं उठा सकता, क्योंकि उपद्रवियों को जो हिंदूवादी संगठनों के प्रशिक्षित दंगाई हैं, रानी साहिबा का परोक्ष समर्थन मिला हुआ है। इसलिए ये बेलगाम हैं और इन्हें किसी का भय नहीं। इसी तरह, मुसलमान मज़दूर की हत्या कर उसे जलाने और उसका वीडियो जारी करने वाले शंभू को इन संगठनों की शह मिली हुई थी और संरक्षण भी हासिल था। ये चाहते हैं कि शंभू को जेल से छुड़वाया जाए। हत्यारे शंभू का ये एक हीरो की तरह प्रचार कर रहे हैं।
भूलना नहीं होगा कि नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से कभी लव जेहाद तो कभी गोमाता के नाम पर कई मुसमानों की नृशंस हत्या की गई। हत्या करने वाले हिंदू संगठनों को लोग रहे हैं। सबसे पहले पश्चिमी यूपी के दादरी में अख़लाक की नृशंस हत्या भीड़ ने गोमांस रखने के शक में कर दी। यह हत्या भी पूर्वनियोजित थी, ताकि मुसलमानों को आतंकित किया जा सके। इसके बाद झारखंड और अन्य राज्यों में हत्याएं हुईं, पर मोदी जी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। बाद में पता चला कि अख़लाक के हत्यारों को सरकारी नौकरी देकर पुरस्कृत किया गया। बहरहाल, राजस्थान के राजसमंद में जो हत्या हुई है, वह जघन्यतम है और फासीवाद का संकेत करने वाली है। इसे लेकर उदयपुर के न्यायालय में भगवा ध्वज का लहराया जाना देश के संविधान को सीधी चुनौती दिया जाना माना जाएगा। प्रधानमंत्री इस पर मौन हैं, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मौन हैं, पर न्यायाधीशों को इस पर चुप्पी तोड़नी चाहिए, अन्यथा संवैधानिक ढांचे को टूटने से बचाया नहीं जा सकेगा।
दूसरी, महत्त्वपूर्ण बात ये है कि सभी विरोधी दल यदि इस घटना के विरोध में राष्ट्रव्यापी विरोध-प्रदर्शन नहीं करते तो हिंदू आतंकवाद की इस चुनौती से निपटना आसान नहीं होगा। राजसमंद और उदयपुर की घटनाएं आने वाले ख़तरनाक समय का संकेत करने वाली हैं। इनसे समय रहते ही निपटने के लिए तैयार होना होगा।


