भाजपा-आरएसएस सशस्त्र बलों से दूर रहो!
हिंदुत्ववादी लक्ष्यों के लिए सेना के नाम का दुरुपयोग
0 प्रकाश कारात
आमतौर पर विजयादशमी के दिन हिंदुत्ववादी ताकतों के दो संबोधन खास हुआ करते थे। पहला, नागपुर में आरएसएस प्रमुख का संबोधन। दूसरा, मुंबई में शिव सेना प्रमुख का संबोधन। इस साल इनमें एक तीसरा ध्रुव और जुड़ गया-लखनऊ में रामलीला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन। इसने इस साल दशहरा से जुड़ी राजनीति को खास रंग दे दिया है।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और शिव सेना अध्यक्ष, उद्धव ठाकरे, दोनों ने अपने-अपने संबोधन में सीमा पार ‘‘सर्जिकल स्ट्राइक’’ के लिए मोदी की सराहना की है।
यह हिंदुत्ववादी खेमे में मोदी के बढ़े हुए रुतबे के ही स्वीकार किए जाने को दिखाता था।
आरएसएस प्रमुख ने वही सब कहा जिस की उनसे अपेक्षा की जाती थी। उन्होंने ‘‘गोरक्षकों’’ का बचाव किया, जोकि वास्तव में आरएसएस का ही खड़ा किया समूह है।

उन्होंने कहा कि ये गोरक्षक, कानून के अनुरूप गायों की रक्षा करने के लिए अच्छा काम कर रहे हैं। उनका कहना था कि जो कानून तोड़ते हैं, वे तो ‘‘गोरक्षक’’ हैं ही नहीं।
इस तरह उन्होंने एक ही झटके में इन स्वयंभू गोरक्षक गिरोहों द्वारा मुसलमानों तथा दलितों के खिलाफ फैलाए गए आतंक को सिरे से खारिज ही कर दिया।
आरएसएस के प्रमुख का इस तरह का बयान तब आया था, जबकि उत्तर प्रदेश, झारखंड, गुजरात तथा अन्य राज्यों में भी, ऐसे गिरोहों के एक के बाद एक हमले होते रहे हैं।

यह इसी का स्पष्ट इशारा था कि आरएसएस के संगठन, गोहत्या तथा गाय का मांस खाने से रोकने के नाम पर, मुसलमानों तथा दलितों के खिलाफ अपनी और धोंसपट्टी आगे भी जारी रखेंगे।

जहां तक नरेंद्र मोदी के लखनऊ धावे का सवाल है, जाहिर है कि उनकी नज़र तो उत्तर प्रदेश के आने वाले विधानसभाई चुनाव पर ही थी। मोदी ने अपने संदेश को धार्मिक रंग देने के लिए, दशहरे के धार्मिक त्यौहार का इस्तेमाल किया। उन्होंने ‘‘जय श्रीराम’’ के नारे लगवाने से अपना भाषण शुरू किया और रामायण के दृष्टांतों का सहारा लेकर, आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की बातें कहीं।

उनका संदेश एकदम स्पष्ट था-उत्तर प्रदेश चुनाव युद्ध धर्म तथा राजनीति को गड्डमड्ड करते हुए और उग्र सांप्रदायिक एजेंडा का सहारा लेकर लड़ा जाएगा। सेना के ‘‘सर्जिकल स्ट्राइक’’ को पहले ही उत्तर प्रदेश में भाजपा चुनाव प्रचार के एक नुक्ते में तब्दील कर चुकी है।

भाजपा के क्षुद्र दलगत हितों के लिए सेना के नाम का इस्तेमाल किया जाना, वाकई चिंताजनक है।
राजस्थान में भाजपायी मुख्यमंत्री, वसुंधरा राजे ने श्री मातेश्वर तनोट मंदिर में, ‘‘राष्ट्र रक्षा यज्ञ’’ नाम से एक धार्मिक समारोह में हिस्सा लिया। संस्कृत अकादमी द्वारा ‘शत्रुओं से सेना को बचाने’ के लिए इस यज्ञ का आयोजन किया गया था।

यह यज्ञ 6 अक्टूबर को हुआ, जिसे 21 ‘‘देशभक्त ब्राह्मणों’’ ने संपन्न किया।

राज्य की संस्कृत अकादमी की अध्यक्ष, जया दवे के अनुसार, ‘पहले भी जब क्षत्रिय युद्घ में जाते थे, ब्राह्मïण उनकी रक्षा के लिए ऐसे समारोह किया करते थे।’

इससे पहले, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर यह कह चुके थे कि, ‘भारतीय सेना पहले हनुमान की तरह थी, जिसे सर्जिकल स्ट्राइक से पहले अपनी शक्ति का बोध ही नहीं था।’

इस तरह, खुद सरकार ही सेना को हिंदुत्ववादी शब्दावली में पेश कर रही है और उसकी भूमिका को प्रस्तुत करने के लिए घोर जातिवादी तथा धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल कर रही है। यह बहुत ही खतरनाक चीज है, जो हमारे सशस्त्र बलों की धर्मनिरपेक्ष निष्ठा तथा उनके धर्मनिरपेक्ष आधार को खोखला करेगी।
खतरे की घंटियां साफ-साफ सुनी जा सकती हैं।
भाजपा-आरएसएस के राज में, सशस्त्र बलों समेत शासन की कोई भी संस्था, हिंदुत्ववाद के भीतरघात से अछूती नहीं रही है। देश के हरेक नागरिक के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए।

इतना ही नहीं, जो भी लोग भारतीय गणराज्य के धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक चरित्र की रक्षा करना चाहते हैं, उन्हें इसके खिलाफ अपनी आवाज उठानी चाहिए और भाजपा तथा आरएसएस से कह देना चाहिए-सशस्त्र बलों से दूर रहो! 0