भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में सत्ता की कमान संभालते ही सबसे पहले उन संवेदनशील मुद्दों को उठाया है जिनकी घोषणा पार्टी के नेताओं ने अपने चुनाव अभियान में की थी।

उत्तर प्रदेश में "अवैध" स्लाटर हाउसों पर प्रतिबंध दरअसल पार्टी की उसी बीफ़ पॉलिसी की अगली कड़ी है जिसकी शुरुआत बीफ़ खाने के नाम पर अख़लाक़ की हत्या किए जाने से हुई थी। वह दरअसल एक अख़लाक़ (आचरण) की हत्या नहीं थी बल्कि हर उस व्यक्ति के अख़लाक़ की हत्या थी जो स्वतंत्र और लोकतांत्रिक वातावरण में सांस लेने की इच्छा रखता है, चाहे उसका संबंध किसी भी धर्म या जाति से हो।

यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के एक फरमान के तहत् राज्य में पचासों स्लाटर हाउसों को पर्यावरण ट्रिब्यूनल के 'आदेशों का उल्लंघन' करने के नाम पर बिना कोई पूर्व सूचना दिए आनन-फ़ानन बंद कर दिया गया हैं।

भारत के 75 बड़े स्लाटर हाउसों में से 49 उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में स्थित हैं। इन 49 लाइसेंस वाले स्लाटर हाउसों में से भी 26 को कानून का पालन न करने के नाम पर बंद कर दिया गया है।

इंडयासपैंड' की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकार के इस फैसले से देश में और राज्य में दसों लाख लोग बेरोज़गारी के शिकार हो सकते हैं। इस बेरोज़गारी का सबसे ज्यादा असर 20 करोड़ आबादी वाले एक ऐसी राज्य (उत्तर प्रदेश) में होगा जिसकी गिनती भारत के सबसे गरीब राज्यों में होती है, और बेरोज़गारी में झारखंड के बाद देश में उसका दूसरा नंबर है।

राज्य को इस विनाश और बदहाली के कगार तक पहुंचाने में "बहुजन" कल्याण और "समाजवाद" का ढोंग करके प्राकृतिक संसाधनों को लूटने वाली पिछली सरकारें जिम्मेदार हैं।

भारत से 40 देशों को निर्यात होने वाले भैंस के मीट में उत्तर प्रदेश से भैंस के मीट का हिस्सा 43% है, जो मीट के व्यापार में मुख्य राज्यों आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सबसे अधिक है।

भारत ने 2015-2016 में 13.14 लाख मैटरिक टन मीट निर्यात से 26688.42 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा हासिल की है।

इसी तरह भारत के चमड़ा उद्योग में पच्चीस लाख से अधिक मेहनतकशों को रोजगार मिला हुआ है जिसमें एक तिहाई महिलाऐं हैं। भारत से समग्र चमड़ा निर्यात की एक तिहाई जरूरत भी उत्तर प्रदेश के औद्योगिक शहर कानपुर से ही पूरी होती है जहां चमड़ा उद्योग पहले ही संकट से जूझ रहा है।

इसके अलावा हजारों मेहनतकश हड्डी पाउडर बनाने वाले उद्योग, यानी हड्डी मिलों और संबंधित व्यवसाय में रोज़गार से जुड़े हैं। इनमें वे मासूम बच्चे भी शामिल हैं जो गलियों, मुहल्लों और सड़कों पर पड़े कचरे के ढेरों में से हड्डियों को इकट्ठा करके, शाम को उन्हें हड्डी मिलों के स्थानीय एजेंटों के हाथ बेचते हैं, और अपने परिवार का पेट पालने में अपने ग़रीब माता पिता की मदद करते हैं।

छोटे किसान, गरीब लोग और खेती में मेहनत-मजदूरी करने वाले 'भूमिहीन' मजदूर दूध और मीट पाने के लिए अपने घरों में भेड़, बकरी और भैंस पालते हैं और उनके गोबर से घर में चूल्हा जलाने के लिए ईंधन भी हासिल करते हैं। दूध और मीट से होने वाली आय उनकी दैनिक आजीविका का एक हिस्सा होती है। इसी तरह सूखा पड़ जाने से प्रभावित क्षेत्रों जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में पैदा होने वाली भुखमरी से बचने के लिए छोटे किसान अपने जानवर मीट का काम करने वालों को बेच देते हैं ताकि वे जीवित रहने के लिए इस पैसे का उपयोग कर लें।

इस परिस्थिति में हम अपने लिये यह ज़रूरी समझते हैं कि हम भारतीय जनता पार्टी की इस बीफ़ पॉलिसी को मेहनतकश और गरीब तबक़े के नज़रिए से देखें ताकि यह पता चले कि 'सब का विकास' का लुभावना नारा लगाने वाली यह पार्टी किस तरह 'विकास' की बजाऐ मेहनतकशों और ग़रीबों का, और उनकी अर्थ व्यवस्था का विनाश कर रही है।

सत्ता में आने के बाद से भारतीय जनता पार्टी ने जो आर्थिक सफर तय किया है, जिस में नोटबंदी और बीफ़बंदी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, उसके परिणाम में कुल मिलाकर रुपया आम आदमी से छीन कर सीधे या बैंकों द्वारा बड़े पूंजीपतियों के खातों और उद्योगों में पहुंचाया गया है जिस से पूंजीवाद को मजबूती मिली है और इस से पैदा होने वाले आर्थिक संकट से आम आदमी, ख़ास तौर पर मेहनतकश और ग़रीब तबक़ों की मुसीबतों में बढ़ोतरी हुई है।

कोई ऐसा भारतीय नहीं है जो यह कह सकता हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वादे के अनुसार भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पूंजीपतियों और धन्ना सेठों के काले धन से पंद्रह लाख रुपये छीनकर उसके बैंक खाते में डाल दिए हों! अलबत्ता देश में ऐसे करोड़ों आम आदमी मिलेंगे जिनकी जेब से रुपये छीन कर बैंकों द्वारा बड़े पूंजीपतियों तक पहुंचाये गये हैं। राष्ट्र की तमाम पूंजी का कुछ पूंजीपतियों के हाथ में एकत्रित होना ही पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का वह ज़हर है जिसको फैलाने के लिए पूंजीपति पार्टियां, उनके 'धार्मिक और सांस्कृतिक दलाल' और मौका परस्त तत्व काम करते हैं।

मीट खाने वाले सफेदपोश इलीट, स्लाटर हाउसों के मालिकों और मीट एक्सपोर्टरों के पास तो अपार धन दौलत है तथा जीवन में आराम और मौज-मस्ती की सभी सुविधाएं मौजूद हैं। इसलिए न तो वे कभी बेरोज़गार होंगे और न भुखमरी का शिकार।

सफेदपोश मध्यवर्ग से संबंधित लोग चाहे वे मीट खाना कम कर दें या बिल्कुल छोड़ दें, या फिर सुबह शाम खाएँ, इससे उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन असली सवाल यह है कि भारतीय जनता पार्टी की बीफ़ पॉलिसी लागू होने से उन लाखों मेहनतकशों का क्या होगा जो मीट, हड्डी और चमड़े के काम में जु्डे हुए हैं, और इसमें रोज़ाना मजदूरी करके दो वक्त की रोटी खाते हैं और अपने बच्चों का पेट पालते हैं?

इसके अलावा एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि अपना खून पसीना एक करने वाले मेहनतकश और गरीब लोगों को इतनी सस्ती प्रोटीन वाली खाद्य सामग्री कहाँ से मिलेगी जितनी मीट की सस्ती हंड्या में मिल जाती है, और आवश्यक प्रोटीन न मिलने से उनकी सेहत पर लंबे समय में क्या दुष्परिणाम हो होंगे?

क्या राज्य सरकार के पास ऐसी कोई समझ या घोषित पॉलffसी है कि वह स्लाटर हाउसों और बीफ़ के संबंध में अपना लाइसेंस राज लागू कर के जो पैसे नोटबन्दी की तरह अपने ख़ज़ाने में जमा करेगी, उस से वह मीट, हड्डी और चमड़े के व्यवसाय में लगे मेहनतकशों की ख़राब हालत को सुधारने के लिए कोई "न्यूनतम दैनिक या मासिक मजदूरी" का फ़ार्मूला तय करेगी, और बच्चों को हड्डियाँ इकट्ठा करके बेचने से कानूनी तौर पर रोक लगा कर उनकी मुफ्त शिक्षा और खाने पीने के लिये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध उतने ही उत्साह से करेगी जितने जोश और 'गर्व' से उसने अपने हिन्दुत्त्व के एजेंडे को लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है?

अब यह समय ही बताएगा कि मुल्क की जनता कब तक "बहुजन" कल्याण, "समाजवाद" और "हिन्दुत्त्व " के नाम पर धोखा खाती रहेगी, और वह समय कब आएगा जब क्रांतिकारी-लोकतांत्रिक ताक़तें जनता को वह मज़बूत विकल्प पेश करेंगी जो आम इन्सान की आरज़ूओं और आकांक्षाओं का प्रतीक होगा - एक ऐसा विकल्प जिसकी क्रांतिकारी सोच का आधार केवल इन्सानियत और इन्सानी उसूलों पर होगा और जिस में मेहनतकश और ग़रीब तबक़े को प्राथमिकता मिलेगी और उसका बोलबाला होगा।

दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है

लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

(फैज़)

ग़िज़ाल मैहदी

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

हिन्दू और जैनी हैं देश के सबसे बड़े बीफ एक्सपोर्टर | #hastakshep | #हस्तक्षेप