भाजपा को चुनौती दे सकते हैं समाजवादी दिग्गज
भाजपा को चुनौती दे सकते हैं समाजवादी दिग्गज
अंबरीश कुमार
नई दिल्ली। समाजवादी धारा के छह राजनैतिक दलों की एकजुटता देश की मौजूदा राजनीति में सत्तारूढ़ दल के लिए एक चुनौती बन सकती है। खासकर गंगा के मैदान में जहाँ उतराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार से लेकर बंगाल तक जहाँ फिलहाल भाजपा सत्ता से बाहर है। ऐसे में यह चुनौती एक तरफ जहाँ जनता दल में शामिल रहे समाजवादी धारा वाले राजनैतिक दलों के सामने है, वही भाजपा के सामने भी है। ये दल मंडल की जिस राजनीति से शीर्ष पर पहुँचे थे उसकी धार बीते लोकसभा चुनाव में मोदी ने अपने मजबूत हिंदुत्व वाले व्यक्तित्व और गुजरात माडल के नाम पर भोथरी कर दी थी। यही वजह है कि ये ताकते फिर एकजुट हो रही है। लोकसभा में करीब इकतीस फीसद वोट भाजपा को मिले थे और बाकी बंट गए थे। यह कवायद इसी बंटवारे को भविष्य में रोकने की है। दूसरी तरफ समाजवादी धारा के छोटे-छोटे दलों और संगठनों ने समाजवादी समागम के मंच के जरिए देश में जो माहौल बनाना शुरू किया है उसका भी एक नैतिक और मनोवाज्ञानिक दबाव इसके पीछे माना जा रहा है। समाजवादी समागम में अलग अलग जगहों पर समाजवादी पार्टी से लेकर जनता दल यू के प्रतिनिधि शामिल हो चुके हैं। इनकी फिलहाल ताकत भले कम हो पर यह प्रक्रिया तेज होती जा रही है। दस को आगरा, ग्यारह को झाँसी और तेरह नवम्बर को मऊ में समाजवादी समागम के कार्यक्रम हैं तो उसके बाद दक्षिण के चारो राज्यों में यह सिलसिला चलेगा। ऐसे में इन छह राजनैतिक दलों के नेताओं की यह बैठक काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। नीतीश कुमार ने बैठक के बाद इन सभी दलों के विलय की सम्भावना से भी इंकार नहीं किया है।
समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता मुलायम सिंह यादव ने जनता परिवार के इन दलों के नेताओं को गुरूवार को अपने सरकारी आवास पर दोपहर की भोज बैठक में आमंत्रित किया था। बैठक में जदयू के शरद यादव और नीतीश कुमार, राजद के लालू प्रसाद, जद एस के एच़डी़ देवेगौड़ा, आईएनएलडी के दुष्यंत चौटाला और एसजीपी के कमल मोरारका उपस्थित हुए। बैठक में तय हुआ कि ये दल लोक महत्व के मुद्दों के साथ विभिन्न मुद्दों पर संसद में एकजुट रहेंगे। खास बात यह है कि यह नया गठबंधन वाम दलों के साथ भी संवाद करेगा तो तृणमूल कांग्रेस के साथ भी। एक तरीके से यह गैर कांग्रेस-गैर भाजपा गठबंधन बाद में बड़ा मोर्चा बन सकता है। दरअसल आर्थिक मुद्दों को लेकर एक तरफ जहाँ भाजपा और कांग्रेस की नीतियाँ एक जैसी है वही समाजवादी धारा के इन दलों का सैद्धांतिक रुख तो काफी कुछ अलग तो रहा ही है। ऐसे में खेती किसानी के साथ उद्योग धंधों को लेकर सत्तारूढ़ दल की नीतियों के खिलाफ यह एका रंग ला सकती है। वाम दलों के साथ इस कवायद को और तेज किया जा सकता है। दरअसल बीते लोकसभा चुनाव में इन दलों के साथ वाम ताकतों को भी बड़ा झटका लगा था। इन सबका आधार वोट बैंक भी बुरी तरह बिखर गया था। पर बाद के उप चुनाव में बिहार में लालू नीतीश तो उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह को बड़ी रहत मिल चुकी है। ऐसे में अब मोदी के लिए भी यह दोनों राज्य बहुत आसान नहीं माने जा रहे हैं। और इस नए गठबंधन का मनोवाज्ञानिक फायदा जनता दल परिवार के बिखरे हुए इन दलों को मिलना तय है।


